Prashant Kishor's shadow on Congress's Chintan Shivir, see how his name

कांग्रेस के चिंतन शिविर पर प्रशांत किशोर की छाया, देखिए कैसे आ रहा उनका नाम!

Prashant Kishor's point can be discussed in Congress Chintan Shivir : कांग्रेस के 13 से 15 मई तक होने जा रहे बड़े चिंतन शिविर से पार्टी के लिए क्या—क्या रत्न निकलने वाले हैं यह अंदाजा लगाना कठिन है। लेकिन यह माना ही जा रहा है कि पार्टी आंतरिक स्तर पर व्यापक बदलाव कर सकती है।

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:30 PM IST, Published Date : May 12, 2022/9:20 pm IST

बरुण सखाजी। कांग्रेस के 13 से 15 मई तक होने जा रहे बड़े चिंतन शिविर से पार्टी के लिए क्या—क्या रत्न निकलने वाले हैं यह अंदाजा लगाना कठिन है। लेकिन यह माना ही जा रहा है कि पार्टी आंतरिक स्तर पर व्यापक बदलाव कर सकती है। इन बदलावों में राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला भी शामिल है। वहीं पार्टी भाजपा के राजनीतिक रणनीतिक तौर तरीकों का काट खोजने पर चर्चा करेगी। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक कांग्रेस उदयपुर के इस शिविर के बाद आमूल-चूल बदली नजर आना चाहती है। उदयपुर के चिंतन शिवर में प्रमुख रूप से संगठन की मजबूती, पार्टी की राष्ट्रीय छवि, 2024 के लिए मुद्दे, भारतीय मतदाता के मन-मानस के अनुकूल प्रचार रणनीति, क्षेत्रीय नेताओं के कंधों पर राष्ट्रीय नेताओं की छवि सुधारने जैसी जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं।

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पचमढ़ी की तरह कामयाब बनाने की कोशिश

1990 से अब तक कांग्रेस ने अनेक चिंतन शिविर किए, लेकिन उदयपुर और 1998 का पचमढ़ी चिंतन शिविर सबसे बड़े माने जा सकते हैं। 1996 के आम चुनावों में कांग्रेस की करारी हार और पहली बार भाजपा का बतौर भाजपा सरकार में आना बड़ी घटनाएं थी। सीताराम केसरी से कांग्रेस का छीना जाना। शरद पवार का अभ्युदय, तिवारी कांग्रेस की शकल में अर्जुन सिंह जैसे दिग्गजों की बगावत। कांग्रेस का वह दौर सबसे कठिन था, तब सोनिया के हाथ में कमान आई। लेकिन पार्टी का प्रदर्शन गिरता ही गया। तब सोनिया गांधी ने  मध्यप्रदेश के पचमढ़ी में 3 दिवसीय चिंतन शिवर किया। इस शिविर के बाद से कांग्रेस देशभर में यह संदेश देने में कामयाब रही कि अब पार्टी नए कलेवर और तेवर में हाजिर है। आज 24 साल बाद भी वैसा ही माहौल है। फिलवक्त सीताराम केसरी की भूमिका में तो कोई नहीं है, लेकिन जी-23 के नाम से अघोषित नेता-समूह कांग्रेस पर लगातार दबाव बना रहा है।

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बीते 2014 से अब तक राष्ट्रीय स्तर के 2 दर्जन से अधिक नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। कांग्रेस से छिटककर कोई पार्टी भले ही नहीं बन रही, लेकिन पार्टी में अंदर-अंदर कइयों गुट सक्रिय हैं। पचमढ़ी का शिविर कामयाब रहा था। इसका असर तबके मध्यप्रदेश पर दिखा था, जहां दिग्विजय सिंह ने छह महीने बाद दूसरी बार सरकार बनाने में कामयाबी हासिल की थी। जबकि पार्टी राजग के मुकाबले अन्य दलों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही थी। अब यही उम्मीद राजस्थान उदयपुर के चिंतन शिविर से की जा रही है।

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जी-23 तैयार हुआ तो राहुल फिर अध्यक्ष

कांग्रेस तमाम मुद्दों पर बात करेगी, लेकिन सबसे अहम बात राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर हो सकती है। लगातार जी-23 के हमले से आहत गांधी परिवार इसे लेकर मुखर हो सकता है। इसके संकेत सोनिया गांधी ने पिछली बैठक में दे दिए थे। उन्होंने कहा था, पार्टी में सुधारने के लिए आलोचनाएं अपनी जगह हैं, लेकिन इससे कार्यकर्ता का आत्मविश्वास प्रभावित नहीं होना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि कांग्रेस अपने लिए पहले अध्यक्ष चुनना चाहती है। पार्टी अध्यक्ष के लिए जी-23 को छोड़कर बाकी सभी राहुल गांधी के नाम को लेकर सहमत हैं। अगर सहमति नहीं बनती तो पार्टी अध्यक्ष का चुनाव सितंबर तक टाल सकती है।

एक परिवार एक भूमिका

पार्टी इस चिंतन शिविर में पार्टी में एक परिवार एक भूमिका का फॉर्मूला भी ला सकती है। इसका अर्थ है अगर परिवार का कोई सदस्य संगठन में सक्रिय है तो उसके दूसरे सदस्य को टिकट नहीं मिलेगा। या कोई एक व्यक्ति किसी जगह से कांग्रेस से टिकट ले चुका है तो दूसरे किसी सदस्य को टिकट नहीं मिलेगा।

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जमीनी सर्वे पर ही टिकट की पैरवी

इस शिवर में टिकट देने के दूसरे फॉर्मूले में जमीनी सर्वे को तवज्जो देगी। प्रशांत किशोर के साथ पार्टी की मीटिंग में यह मुद्दा अहम था। किसी बड़े नेता के कहने भर से किसी को टिकट नहीं मिलेगा। यह फॉर्मूला 2018 के चुनावों में  छत्तीसगढ़ में सफल भी रह चुका है।

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भाजपा के राष्ट्रवाद का मुकाबला खोजना

चिंतन शिविर में भाजपा के राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के मिक्सचर का तोड़ खोजने पर बात की जाएगी। इस दिशा में कांग्रेस ऐसे नेताओं को फ्रंटियर बना सकती है, जिनकी छवि जनता के साथ मिलकर चलने की है। इनमें सबसे मजबूत नाम छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, कमल नाथ शामिल हैं।

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शिविर में पीके के प्वाइंट्स भी

कांग्रेस के इस चिंतन मंथन से 4 बातें प्रमुखता से सामने आ सकती हैं। ये चार बातें बीते दिनों प्रशांत किशोर के साथ चले कांग्रेस के संवाद से निकली हैं। इनमें से सबसे ऊपर है भाजपा के राष्ट्रवाद का काट। इसे राष्ट्रवादी होकर काउंटर किया जा सकता है। वहीं दूसरी प्रमुख बात कांग्रेस संगठन स्तर पर व्यापक बदलाव कर सकती है। तीसरी बात सोशल मीडिया पर कांग्रेस की रीच, अप्रोच, टूल को और शार्प बनाने को लेकर है। कांग्रेस इस चिंतन शिवर में चौथा प्रमुख प्वाइंट कांग्रेस को मजबूत करके ही गठबंधन के बारे में बात की जाएगी। बताया गया है कि इस बैठक में मीटिंग को लेकर बहुत गोपनीयता बरती गई है। भाग लेने वालों के फोन भी बाहर रखवा दिए गए हैं। बैठक के दौरान किसी को बाहर आने की इजाजत नहीं होगी। मीडिया में कोई भी मैसेज औपचारिक रूप से ही दिया जाएगा। अगर कांग्रेस इस सबसमें कामयाब रही तो इस मीटिंग का निचोड़ मीडिया तक 15 मई को ही सामने आ पाएगा। लेकिन कांग्रेस का इतिहास बताता है कि यह ऐसी गोपनीयताएं कम सफल हुई हैं।

 

 
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