Edible Oil Price: किसानों के कम दाम पर बिकवाली नहीं करने से बड़ा झटका, तेल-तिलहन के दामों में हुई बढ़ोतरी |Edible Oil Price

Edible Oil Price: किसानों के कम दाम पर बिकवाली नहीं करने से बड़ा झटका, तेल-तिलहन के दामों में हुई बढ़ोतरी

Edible Oil Price: किसानों के कम दाम पर बिकवाली नहीं करने से बड़ा झटका, तेल-तिलहन के दामों में हुई बढ़ोतरी Cooking Oil Price

Edited By :   Modified Date:  May 15, 2024 / 09:07 PM IST, Published Date : May 15, 2024/9:03 pm IST

नई दिल्ली। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से 5-7 प्रतिशत दाम पर मंडियों में सरसों तिलहन की बिकवाली जारी रहने तथा किसानों द्वारा नीचे दाम पर बिकवाली से बचने के कारण देश के बाजारों में बुधवार को सरसों तेल-तिलहन के दाम मजबूती के साथ बंद हुए। सुस्त कारोबार के बीच बाकी तेल-तिलहनों के दाम पूर्वस्तर पर बने रहे। मलेशिया और शिकॉगो एक्सचेंज में सुधार चल रहा है। कल रात शिकॉगो एक्सचेंज गिरावट के साथ बंद हुआ था।

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बाजार सूत्रों ने कहा कि ब्रांडेड तेल बनाने वाली कंपनियों ने सरसों तिलहन के खरीद भाव में 50 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की है। जिससे सरसों तेल-तिलहन की मजबूती को बल मिला। वैसे देखा जाये तो मंडियों में सरसों एमएसपी से 5-7 प्रतिशत नीचे दाम पर ही बिक रहा है और किसान किसी भी सूरत में इस भाव पर बिकवाली से बचने का प्रयास करते दिख रहे हैं।

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सूत्रों ने कहा कि जिस तरह इस बार सोयाबीन और मूंगफली तिलहन की हालत हुई है वह तिलहन उत्पादन पर दूरगामी असर डाल सकता है। किसानों में इतना धैर्य नहीं है कि वे उत्पादन तो बढ़ायें और उसके खपने की प्रतिकूल स्थिति से जूझने के लिए इंतजार करें। इसके बजाय वे ऐसी फसल का रुख कर लेते हैं जिसके खपने की गारंटी हो और जिससे उन्हें लाभ की प्राप्ति हो। यही हालत कभी देश में सूरजमुखी के साथ हुआ था और इसी वजह से अब इसका एमएसपी बढ़ाने के बावजूद भी किसान इसकी खेती से कतराते हैं। आगे जाकर कम से कम मूंगफली और सोयाबीन की खेती के प्रभावित होने की आशंका है। ऐसा उस देश में होगा जो अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए लगभग 55 प्रतिशत आयात पर निर्भर करता है।

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सूत्रों ने कहा कि तेल-तिलहन उद्योग की जो हालत हो चली है उसे आसानी से काबू में नहीं लाया जा सकता है। आगे जाकर आयात शुल्क बढ़ायें या और कोई और रास्ता निकालें, किसान एक बार तिलहन फसलों से मुंह मोड़ेंगे तो उनको समझाना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा कि ऐसा पिछले लगभग 25 वर्षों से हो रहा है कि बाकी जिसों के दाम बढ़े तो इतना शोर नहीं होता जितना तिलहन के दाम बढ़ने पर होता है। उन्होंने कहा कि जो विशेषज्ञ समाचार माध्यमों पर विशेषज्ञ की तरह आते हैं, उनकी चिंता विदेशी तेलों के आयात या खाद्य तेलों के दाम तक सीमित रहती है।

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देश में तेल- तिलहन का उत्पादन और उसका बाजार कैसे बढ़े, कैसे हम आत्मनिर्भरता की ओर बढ़े, कपास और उससे मिलने वाले बिनौला तेल खली का उत्पादन क्यों बढ़ाना जरूरी है, नकली बिनौला खल कैसे कपास उत्पादन को प्रभावित कर रहा है, देशी तिलहन पेराई मिलों की क्या समस्यायें हैं और कैसे उन्हें इससे निजात दिलाई जाये, इन बातों पर अधिक गौर नहीं किया जा रहा। इन विशेषज्ञों को देश के तेल-तिलहन उद्योग की वस्तुस्थिति की जानकारी को लेकर भी कई बार संदेह होता है।

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तेल-तिलहनों के भाव इस प्रकार रहे

सरसों तिलहन – 5,600-5,650 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली – 6,125-6,400 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली तेल मिल डिलिवरी (गुजरात) – 14,800 रुपये प्रति क्विंटल।

मूंगफली रिफाइंड तेल 2,240-2,540 रुपये प्रति टिन।

सरसों तेल दादरी- 10,600 रुपये प्रति क्विंटल।

सरसों पक्की घानी- 1,805-1,905 रुपये प्रति टिन।

सरसों कच्ची घानी- 1,805-1,820 रुपये प्रति टिन।

तिल तेल मिल डिलिवरी – 18,900-21,000 रुपये प्रति क्विंटल।

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सोयाबीन तेल मिल डिलिवरी दिल्ली- 9,950 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन मिल डिलिवरी इंदौर- 9,750 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन तेल डीगम, कांडला- 8,310 रुपये प्रति क्विंटल।

सीपीओ एक्स-कांडला- 8,775 रुपये प्रति क्विंटल।

बिनौला मिल डिलिवरी (हरियाणा)- 9,800 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन आरबीडी, दिल्ली- 9,875 रुपये प्रति क्विंटल।

पामोलिन एक्स- कांडला- 9,000 रुपये (बिना जीएसटी के) प्रति क्विंटल।

सोयाबीन दाना – 4,860-4,880 रुपये प्रति क्विंटल।

सोयाबीन लूज- 4,660-4,700 रुपये प्रति क्विंटल।

मक्का खल (सरिस्का)- 4,075 रुपये प्रति क्विंटल।

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