पुनर्योजी खेती, कवर फसलें पैदावार बढ़ाने व पराली जलाने में कमी लाने में मदद करेंगी: आईडीएच सीईओ |

पुनर्योजी खेती, कवर फसलें पैदावार बढ़ाने व पराली जलाने में कमी लाने में मदद करेंगी: आईडीएच सीईओ

पुनर्योजी खेती, कवर फसलें पैदावार बढ़ाने व पराली जलाने में कमी लाने में मदद करेंगी: आईडीएच सीईओ

:   Modified Date:  March 29, 2024 / 11:27 AM IST, Published Date : March 29, 2024/11:27 am IST

(थिरुमोय बनर्जी)

नयी दिल्ली, 29 मार्च (भाषा) विकास एजेंसी आईडीएच के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (वैश्विक) डैन वेन्सिंग ने कहा कि पुनर्योजी खेती (रीजनरेटिव फार्मिंग), मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए कवर फसलें उगाने और पोषक तत्वों को वापस मिट्टी में पहुंचाने से न केवल किसानों को आर्थिक रूप से मदद मिलेगी, बल्कि पराली जलाने के मामलों में भी कमी आएगी।

कृषि में ‘कवर’ फसलें वे पौधे हैं जो कटाई के उद्देश्य से नहीं बल्कि मिट्टी को ढकने के लिए लगाए जाते हैं ताकि हवा से भूमि का क्षरण न हो।

हालांकि, उन्होंने कहा कि इन मुद्दों के दीर्घकालिक समाधान के लिए सार्वजनिक और निजी भागीदारी आवश्यक होगी।

वेन्सिंग ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आप पुनर्योजी खेती कैसे कर सकते हैं? कृषि क्षेत्र का विस्तार किए बिना आप पैदावार कैसे बढ़ा सकते हैं?’’

उन्होंने कहा, ‘‘ इसके लिए नई प्रौद्योगिकी, नए समाधान की जरूरत है। हम इन नए समाधानों पर काम करने और विभिन्न परिदृश्यों में उनका परीक्षण करने के लिए सार्वजनिक व निजी कंपनियों के साथ साझेदारी कर रहे हैं।’’

वेन्सिंग ने कहा, ‘‘हमें विभिन्न प्रक्रियाओं के जरिए पराली को बाहर निकालने, पोषक तत्वों को वापस मिट्टी में पहुंचाने के तरीके खोजने की जरूरत है।’’

उन्होंने उर्वरता बनाए रखने के लिए मिट्टी में कार्बनिक कार्बन सामग्री को बढ़ाने के लिए नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने की वकालत की।

वेन्सिंग ने कहा कि पराली जलाने (जो उत्सर्जन का कारण बनता है) के बजाय … मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए नए तरीकों को लागू करने से पैदावार बढ़ाने और सीओ2 उत्सर्जन को कम करने के दोहरे उद्देश्य की पूर्ति होगी।

सीईओ ने कहा कि दुनिया भर में किसानों के विरोध प्रदर्शनों की संख्या में वृद्धि मुख्यतः इसलिए है क्योंकि ‘‘उन्हें उचित दाम नहीं मिल रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ यहां तक कि मेरे गृह देश (नीदरलैंड) में भी किसानों ने विरोध प्रदर्शन किया…. इसकी मुख्य वजह देश से परे यह है कि किसान मूल्य श्रृंखला के अंतिम छोर पर है।’’

वेन्सिंग ने कहा, ‘‘ एक समाज के तौर पर हम जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के कारण पर्यावरण स्थिरता चाहते हैं। इसकी जिम्मेदारी अक्सर पूरी तरह से किसानों पर आ जाती है। यदि हम बदलाव के इस दौर में उनका समर्थन नहीं करते हैं और यदि हम सारा जोखिम तथा लागत किसान पर डालते हैं, तो उनके पास कोई रास्ता नहीं रह जाएगा।’’

आईडीएच इंडिया के ‘कंट्री डायरेक्टर’ जगजीत सिंह कंडल ने कहा कि देश के कई हिस्सों में मिट्टी में जैविक कार्बन की मात्रा घटकर एक प्रतिशत से नीचे आ रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘ यह अधिक उपज वाली फसलें उगाने के लिए अनुकूल नहीं होगा। हमें रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम करने तथा प्राकृतिक खेती के तरीकों पर वापस जाने की जरूरत है जहां हम कचरे को खाद में बदल देते हैं।’’

किसानों की आय दोगुनी करने पर ध्यान देने के लिए केंद्र सरकार की सराहना करते हुए कंडल ने कहा, ‘‘ किसानों को दो चीजों की जरूरत है… एक सुनिश्चित बाजार और उनकी उपज के लिए एक सुनिश्चित कीमत। हमें प्रयास करना चाहिए और उन्हें ये प्रदान करना चाहिए।’’

नीदरलैंड स्थित आईडीएच कृषि मूल्य श्रृंखला पर काम करता है। महाद्वीपों के कई देशों में यह मौजूद है। भारत में, यह 10 राज्यों में काम कर रहा है और पहले से ही सरकारों के साथ-साथ निजी क्षेत्र के साथ भी साझेदारी कर चुका है।

भाषा निहारिका मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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