मिशन ‘आजादी’! एक स्कूल..जो बन गया है बंधक! क्या राजधानी के इस स्कूल को मुक्त करा पाएंगे अफसर?
मिशन 'आजादी'! एक स्कूल..जो बन गया है बंधक! क्या राजधानी के इस स्कूल को मुक्त करा पाएंगे अफसर? responsible officers be able to free you from the shackles of this school
राजेश राज/रायपुर। देश की आजादी के 75 साल होने पर आजादी का अमृतकाल मनाया जा रहा है। ऐसे में अंधेरगर्दी की बातें कल्पना से परे हैं लेकिन हम आज एक ऐसी अंधेरगर्दी का खुलासा करेंगे, जिसकी हकीकत आपको हैरान कर देगी।
अंधेरगर्दी की ये तस्वीरें छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के फूल चौक के पास अमीनपारा स्कूल की है। जिस स्कूल की स्थापना आजादी से भी 13 साल पहले यानी 1935 में हुई हो, वो स्कूल आजादी के 75 साल बाद भी बेड़ियों में जकड़ा है। 8 कमरे होने के बावजूद यहां पहली से 5वीं तक की क्लास एक ही कमरे में चल रही है और यही कमरा स्टाफ रूम भी है। बच्चे ना सुकून से बैठ पाते हैं और ना ही टीचर इत्मिनान से पढ़ा पाते हैं। दूसरी ओर इसी स्कूल के बाकी कमरों में किराएदार मौज काट रहे हैं और मैदान गैराज और कंस्ट्रक्शन कंपनी की गाड़ियों से पटा पड़ा है। इस सरकारी स्कूल से कलेक्ट्रेट महज 1 किलोमीटर के फासले पर है, जिला शिक्षा अधिकारी का दफ्तर करीब 3 किलोमीटर और स्कूल शिक्षा मंत्री का बंगला भी 5 किलोमीटर से ज्यादा दूर नहीं है।
नयापारा मस्जिद से सटे इस स्कूल का मामला कहीं न कहीं वक्फ बोर्ड से भी जुड़ रहा है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस स्कूल की जमीन पर वक्फ बोर्ड सालों से अपना हक जताता रहा है। इस मामले में वक्फ बोर्ड से भी सवाल किया गया लेकिन उन्होंने कैमरे के सामने जवाब देने से मना कर दिया।
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एक तरफ तो सरकारें स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नए-नए प्रयोग अमल में ला रही हैं लेकिन राजधानी रायपुर के बीचों बीच चल रही ये अंधेरगर्दी प्रशासनिक उदासीनता का जीता जागता प्रमाण है। बहरहाल, सवाल ये है कि क्या इस सरकारी स्कूल की बदनसीबी कभी खत्म होगी। क्या बच्चों का भविष्य और उनके सपने कब्जाई मानसिकता से बाहर आ पाएंगे। क्या जिम्मेदार अफसर इस स्कूल को बंधनों से आजाद करा पाएंगे।

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