‘वैभव’ फेलोशिप के तहत देश के संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान कार्य करेंगे भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिक |

‘वैभव’ फेलोशिप के तहत देश के संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान कार्य करेंगे भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिक

‘वैभव’ फेलोशिप के तहत देश के संस्थानों के साथ मिलकर अनुसंधान कार्य करेंगे भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिक

:   Modified Date:  January 23, 2024 / 09:32 PM IST, Published Date : January 23, 2024/9:32 pm IST

नयी दिल्ली, 23 जनवरी (भाषा) केंद्र सरकार ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता से लेकर क्वांटम प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में देश के अग्रणी संस्थानों में सहयोगात्मक अनुसंधान परियोजनाएं चलाने के लिए भारतीय मूल के 22 वैज्ञानिकों को ‘वैभव’ फेलोशिप दिये जाने की मंगलवार को घोषणा की।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने शीर्ष वैज्ञानिकों आरोग्यस्वामी जे पॉलराज और प्रोफेसर जितेंद्र मलिक को क्रमश: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बंबई और आईआईटी कानपुर में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कम्प्यूटर विज्ञान के क्षेत्रों में ‘वैभव अध्येताओं’ के रूप में सहयोगात्मक अनुसंधान परियोजनाएं संचालित करने का प्रस्ताव रखा है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार एके सूद तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव अभय करंदीकर की उपस्थिति में यह घोषणा की।

‘वैभव’ या वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक अध्येता के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जितेंद्र सिंह ने कहा कि ‘वैभव’ फेलो ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फिनलैंड, जापान, सिंगापुर, स्वीडन, स्विट्जरलैंड, ब्रिटेन (यूके), अमेरिका के शीर्ष संस्थानों से हैं और अगले 3 वर्षों के दौरान संयुक्त रूप से पहचानी गई समस्याओं पर काम करने के लिए इन्हें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) आदि भारतीय संस्थानों से जोड़ा जाएगा।

कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (काल्टेक) पैसाडेना में अंतरिक्ष विज्ञान विभाग में प्रोफेसर मानसी मनोज कासलीवाल डेटा विज्ञान के क्षेत्र में आईआईटी मुंबई में काम करेंगी और सदर्न कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से मुरली अन्नावरम बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान में वैज्ञानिकों के साथ काम करेंगे।

इसी तरह अन्य देशों के भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को चुना गया है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर अभय करंदीकर ने कहा, “हमारा यह मानना ​​है कि अन्य देशों में काम करने वाले भारतीय प्रवासी अपने ज्ञान और अनुभवों से भारतीय शोधकर्ताओं के क्षितिज का विस्तार करने में सक्षम होंगे। वे अपनी अनूठी विचार प्रक्रिया से हमारे भारतीय शोधकर्ताओं की मदद और मार्गदर्शन भी कर सकते हैं।”

भाषा वैभव पवनेश

पवनेश

 

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