इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 'लिव इन' में रह रहे सरकारी कर्मचारी की बहाली का निर्देश दिया | Allahabad High Court directs restoration of government employee living in 'Live In'

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ‘लिव इन’ में रह रहे सरकारी कर्मचारी की बहाली का निर्देश दिया

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 'लिव इन' में रह रहे सरकारी कर्मचारी की बहाली का निर्देश दिया

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:46 PM IST, Published Date : July 19, 2021/12:49 pm IST

प्रयागराज, 19 जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पत्नी के रहते एक दूसरी महिला के साथ ‘लिव इन’ संबंध में रहने के कारण बर्खास्त हुए एक सरकारी कर्मचारी की बर्खास्तगी रद्द कर दी है और उस कर्मचारी को मामूली दंड के साथ बहाल करने का निर्देश दिया है।

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने पिछले बुधवार को यह आदेश पारित किया और राज्य सरकार के अधिकारियों को मामूली दंड लगाते हुए नए सिरे से आदेश पारित करने को कहा।

याचिकाकर्ता गोरे लाल वर्मा के खिलाफ बर्खास्तगी का आदेश इस आधार पर पारित किया गया था कि लक्ष्मी देवी के साथ शादीशुदा होने के बावजूद याचिकाकर्ता हेमलता वर्मा के साथ पति-पत्नी की तरह रह रहा है। इस संबंध से उसके तीन बच्चे भी हैं।

बर्खास्तगी का आदेश पारित करते हुए यह कहा गया था कि यह आचरण उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियम, 1956 के प्रावधानों के खिलाफ है और यह हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के भी खिलाफ है।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि इसी तरह के अनीता यादव के एक मामले में इस अदालत ने बर्खास्तगी का आदेश रद्द कर दिया था। हालांकि प्रतिवादियों को उनकी इच्छा के मुताबिक हल्का दंड लगाने का अवसर दिया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने आगे अपनी दलील में कहा कि इस निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी और इस अपील को उच्चतम न्यायालय में खारिज कर दिया गया था।

संबद्ध पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने बर्खास्तगी का आदेश दरकिनार कर दिया और कहा कि तथ्यों पर विचार करते हुए और अनीता यादव के मामले में इस अदालत के निर्णय को देखते हुए यह याचिकाकर्ता भी समान लाभ पाने का पात्र है।

अदालत ने कहा कि इस रिट याचिका को स्वीकार किया जाता है और प्रतिवादी अधिकारियों को याचिकाकर्ता को बहाल करने का निर्देश दिया जाता है। “हालांकि, याचिकाकर्ता को बर्खास्तगी की तिथि से आज की तिथि तक बकाया वेतन का भुगतान नहीं किया जाएगा। यह प्रतिवादियों पर छोड़ा जाता है कि वे मामूली दंड लगाने के लिए कानून के मुताबिक नए सिरे से आदेश पारित करें।”

भाषा राजेंद्र शफीक

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)