बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की |

बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की

बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:53 PM IST, Published Date : May 28, 2022/3:13 pm IST

(उज्मी अतहर)

नयी दिल्ली, 28 मई (भाषा) बाल अधिकारों की दिशा में काम करने वाले गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) ने पिछले दो वर्षों में कोविड-19 महामारी के सामाजिक प्रभाव के कारण बच्चों की गुमशुदगी के मामलों में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की है।

स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए इन संगठनों ने ग्राम स्तर पर बाल संरक्षण समितियों को तत्काल मजबूत करने और अभिभावकों को संवेदनशील बनाने तथा उन्हें जरूरी प्रशिक्षण देने का आह्वान किया है। उन्होंने सरकार से इस बाबत पर्याप्त बजट आवंटित करने का आग्रह भी किया है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत में 59,262 बच्चे लापता हुए थे, जबकि पिछले वर्षों में खोए 48,972 बच्चों का पता नहीं लगाया जा सका था, जिससे देश में गुमशुदा बच्चों की कुल संख्या बढ़कर 1,08,234 पर पहुंच गई थी।

एनसीआरबी के अनुसार, साल 2008 से 2020 के बीच बच्चों की गुमशुदगी के सालाना मामले लगभग 13 गुना बढ़ गए। 2008 में देश में लापता हुए बच्चों की संख्या 7,650 थी।

कैलाश सत्यार्थी फाउंडेशन की सहयोगी संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ (बीबीए) के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने बताया कि पिछले दो वर्षों में बीबीए ने देशभर में लगभग 12,000 बच्चों को बचाया है।

टिंगल ने ”पीटीआई-भाषा” से कहा, ‘हमारे पास यह साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि महामारी की दस्तक के बाद बाल तस्करी कई गुना बढ़ गई है।’

एनजीओ ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राई) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 में मध्य प्रदेश में रोजाना औसतन 29 और राजस्थान में 14 बच्चे लापता हुए। यह रिपोर्ट सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत दायर एक आवेदन से मिली जानकारी पर आधारित है।

टिंगल ने कहा, ”कुछ बच्चों की तस्करी उनके माता-पिता की सहमति से की जा रही थी, जबकि कुछ अपनी मर्जी से तस्करों के साथ गए। बहरहाल, इनमें से अधिकांश बच्चे लापता हैं।’

उन्होंने रेलवे, रोडवेज और अन्य परिवहन सेवाओं के कर्मचारियों से आग्रह किया कि अगर उन्हें कोई अकेला बच्चा या भीख मांगने वाला बच्चा दिखता है तो वे तुरंत इसकी सूचना दें।

टिंगल ने कहा, ‘ऐसे बच्चों को सरकारी सुरक्षा के दायरे में लाया जाना चाहिए।’

‘सेव द चिल्ड्रन’ में बाल संरक्षण से जुड़े मामलों के उप-निदेशक प्रभात कुमार ने कहा, ”बढ़ती गरीबी बच्चों के लापता होने या तस्करी का शिकार बनने का एक प्रमुख कारण है।”

उन्होंने कहा कि स्कूली शिक्षा तक पहुंच न होने और कोविड-19 के कारण सीखने की प्रक्रिया बाधित होने के कारण भी स्थिति खराब हुई है।

क्राई की क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) सोहा मोइत्रा ने कहा, “ग्रामीण क्षेत्रों में कई परिवार पहले से ही कर्ज में डूबे थे। महामारी के कारण उन पर आर्थिक बोझ और बढ़ गया है। ऋण वापस करने के दबाव ने ऐसे परिवारों के बच्चों की तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह को बढ़ावा दिया है।”

उन्होंने कहा कि मास्क के इस्तेमाल की अनिवार्यता से अक्सर तस्करों और अपहरणकर्ताओं की पहचान करना मुश्किल हो जाता है।

मोइत्रा के अनुसार, ‘संबंधित सरकारी विभागों को स्थानीय प्रशासनिक निकायों और नागरिक समाज संगठनों के सहयोग से बच्चों की शिक्षा के महत्व को लेकर जागरूकता फौलाने के लिए नियमित रूप से आगे आना चाहिए।’

2020 में लगभग चार महीने (मार्च से जून तक) पूर्ण लॉकडाउन होने के बावजूद कुल 59,262 बच्चों की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जिनमें 13,566 लड़के, 45,687 लड़कियां और नौ ट्रांसजेंडर शामिल हैं।

एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, लापता लड़िकयों की संख्या 2018 में लगभग 70 प्रतिशत से बढ़कर 2019 में 71 प्रतिशत और 2020 में 77 प्रतिशत हो गई।

दूसरी ओर, पिछले वर्षों में लापता बच्चों की संख्या 2018 में कुल गुमशुदा बच्चों का लगभग 42 प्रतिशत, 2019 में 39 प्रतिशत और 2020 में 45 प्रतिशत थी।

भाषा फाल्गुनी पारुल

पारुल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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