इस साल मॉनसून पर दिखा जलवायु परिवर्तन का असर: विशेषज्ञ |

इस साल मॉनसून पर दिखा जलवायु परिवर्तन का असर: विशेषज्ञ

इस साल मॉनसून पर दिखा जलवायु परिवर्तन का असर: विशेषज्ञ

:   Modified Date:  August 24, 2023 / 07:27 PM IST, Published Date : August 24, 2023/7:27 pm IST

(गौरव सैनी)

नयी दिल्ली, 24 अगस्त (भाषा) देशभर में संचयी बारिश को छोड़ दें तो इस साल मॉनसून असामान्य रहा और कई विशेषज्ञ इसका अंतर्निहित कारण जलवायु परिवर्तन को बता रहे हैं।

निजी पूर्वानुमान एजेंसी ‘स्काईमेट वेदर’ के उपाध्यक्ष (जलवायु परिवर्तन और मौसम विज्ञान) महेश पलावत ने कहा कि अरब सागर में सबसे लंबे समय तक रहने वाले समुद्री तूफान से लेकर पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी राज्यों में विनाशकारी बाढ़ से इस साल जलवायु परिवर्तन के निशान स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होते हैं।

जून की शुरुआत में चक्रवात बिपरजॉय के कारण केरल में मॉनसून के आगमन में देरी होने के साथ इसके दक्षिणी भारत और अन्य हिस्सों में आगे बढ़ने की गति भी धीमी रही।

मौसम विज्ञानियों का कहना है कि शुरुआत में चक्रवात की तीव्रता तेजी से बढ़ी और अरब सागर के असामान्य रूप से गर्म होने के कारण इसकी तीव्रता बरकरार रही।

वे इस बात पर जोर देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में चक्रवाती तूफान तेजी से तीव्र हो रहे हैं और लंबे समय तक अपनी क्षमता बरकरार रख रहे हैं।

एक अध्ययन ‘उत्तरी हिंद महासागर पर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की बदलती स्थिति’ के अनुसार, अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति, अवधि और तीव्रता में मॉनसून के बाद की अवधि में लगभग 20 प्रतिशत और मॉनसून-पूर्व अवधि में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

अरब सागर में चक्रवातों की संख्या में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि बहुत गंभीर चक्रवातों की संख्या में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

इस वर्ष के मॉनसून की खासियत इस तथ्य से स्पष्ट है कि इसने 21 जून 1961 के बाद पहली बार 25 जून को दिल्ली और मुंबई, दोनों महानगरों को एक साथ भिगोया।

भारत मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जून में देशभर के 377 केंद्रों पर बहुत भारी बारिश की घटनाएं (115.6 मिमी से 204.5 मिमी) दर्ज की गईं, जो पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक हैं।

जुलाई में भारी बारिश की घटनाओं की संख्या में काफी वृद्धि देखी गई, जिसमें 1,113 केंद्रों पर बहुत भारी वर्षा हुई और 205 केंद्रों पर अत्यधिक भारी वर्षा (204.5 मिमी से ऊपर) हुई। दोनों पिछले पांच वर्षों में सबसे अधिक हैं।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन राजीवन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘संदेश स्पष्ट है: मॉनसून अधिक परिवर्तनशील होता जा रहा है। बढ़ी हुई परिवर्तनशीलता का मतलब है अधिक प्रतिकूल मौसम और शुष्क दौर। अब हम जो देख रहे हैं वह भारतीय मॉनसून पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के अध्ययन से मेल खाता है।’’

जुलाई में आई अभूतपूर्व बाढ़ के कारण विभिन्न राज्यों में 100 से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी और मुंबई में जुलाई में सर्वाधिक बारिश हुई। इसी तरह दिल्ली में यमुना का जल स्तर रिकॉर्ड 208.66 मीटर तक पहुंच गया।

एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर वाई पी सुंदरियाल ने कहा कि वैश्विक ताप में बढ़ोतरी के कारण हिमालय लगातार असुरक्षित हो रहा है और पहाड़ी राज्य अपनी नाजुक पारिस्थितिकी और लगातार बारिश से निपटने की सीमित क्षमता के कारण खतरे में हैं।

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के वरिष्ठ वैज्ञानिक डी एस पई ने कहा, ‘‘मॉनसून के साथ प्राकृतिक परिवर्तनशीलता जुड़ी हुई है। वर्षा का होना या ना होना केवल तापमान पर निर्भर नहीं करता है। लेकिन कोई भी इस विचार को खारिज नहीं कर सकता है कि बारिश कराने वाली वर्षा-वाहक प्रणाली को जलवायु परिवर्तन और अधिक अस्थिर बना रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन से ‘अल नीनो’ की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ रही है, जिसके परिणामस्वरूप अत्यधिक वर्षा की घटनाएं हो सकती हैं और मॉनसून के खंडित रहने की अवधि लंबी हो सकती है।’’

भाषा संतोष अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)