जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में अप्रैल में लू की आशंका 45 गुना अधिक: वैज्ञानिक |

जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में अप्रैल में लू की आशंका 45 गुना अधिक: वैज्ञानिक

जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशिया में अप्रैल में लू की आशंका 45 गुना अधिक: वैज्ञानिक

:   Modified Date:  May 15, 2024 / 05:39 PM IST, Published Date : May 15, 2024/5:39 pm IST

नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) ओडिशा के भुवनेश्वर की अन्नू मिश्रा को अपना फूड स्टॉल काफी लंबे समय तक बंद रखना पड़ा क्योंकि यहां अप्रैल में लगातार 17 दिन तक तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर रहा। वर्ष 1969 के बाद इतनी भीषण गर्मी की यह सबसे लंबी अवधि रही जिससे लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका पर बुरा असर पड़ रहा है।

मिश्रा ने कहा, ‘‘भीषण गर्मी के कारण गैस स्टोव के पास खड़ा होना बेहद मुश्किल हो गया है।’’ उन्होंने बताया कि उनका फूड स्टॉल अब से पहले केवल 2019 में आये चक्रवात के दौरान इतने लंबे समय के लिए बंद रहा था।

प्रमुख जलवायु वैज्ञानिकों ने मौसम के आंकड़ों का हवाला देते हुए बुधवार को बताया कि इसी तरह की भीषण गर्मी का सामना प्रत्येक 30 साल में एक बार करना पड़ सकता है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहले से ही इसकी संभावना लगभग 45 गुना अधिक हो गई है।

‘वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन’ (डब्ल्यूडब्ल्यूए) समूह नामक वैज्ञानिकों की टीम ने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन के कारण प्रचंड लू पूरे एशिया में गरीबी में रहने वाले लोगों के जीवन को और अधिक मुश्किल बना रही है।

साधारण लेकिन कमजोर पड़ रहे ‘अल नीनो’ और वातावरण में गर्मी को रोकने वाली ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती सांद्रता के बीच, दक्षिण एशिया में लाखों लोगों को अप्रैल में भीषण गर्मी का सामना करना पड़ा।

भारत के कई हिस्सों में अधिकतम तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ दिया, जिससे सरकारी एजेंसियों को स्वास्थ्य संबंधी चेतवानियां जारी करनी पड़ीं और कई राज्यों ने तो स्कूलों में कक्षाएं तक बंद कर दीं।

भीषण गर्मी ने फिलीपीन, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया और म्यांमा में भी तापमान के रिकॉर्ड तोड़ दिए।

जलवायु परिवर्तन के कारण सीरिया, लेबनान, इजराइल, फलस्तीन और जॉर्डन सहित पश्चिम एशिया में अप्रैल में 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान के साथ लू चलने का यह मौसम चक्र जल्द-जल्द लौट रहा है।

चूंकि वैश्विक औसत तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पश्चिम एशिया में हर 10 साल में एक बार इसी तरह की गर्मी का सामना करना पड़ सकता है। यदि तापमान दो डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है तो हर पांच साल में लगभग एक बार इसी तरह की प्रचंड लू का सामना करना पड़ेगा।

लू घातक साबित हो सकती है खास तौर पर बुजुर्गों और बच्चों के लिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1998 से 2017 के बीच लू के कारण 1,66,000 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है।

भाषा खारी नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)