उच्च न्यायालय परिसर को नैनीताल से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाने के आदेश पर लगी रोक |

उच्च न्यायालय परिसर को नैनीताल से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाने के आदेश पर लगी रोक

उच्च न्यायालय परिसर को नैनीताल से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाने के आदेश पर लगी रोक

:   Modified Date:  May 24, 2024 / 07:24 PM IST, Published Date : May 24, 2024/7:24 pm IST

नयी दिल्ली, 24 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें राज्य सरकार को उच्च न्यायालय परिसर को नैनीताल से बाहर स्थानांतरित करने के लिए कदम उठाने के आदेश दिये गये थे।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में राज्य सरकार से कहा था कि वह उच्च न्यायालय की नयी इमारत के निर्माण और अन्य अपेक्षित बुनियादी ढांचे की स्थापना के लिए पहाड़ी शहर नैनीताल के बाहर ‘सर्वोत्तम उपयुक्त भूमि’ की तलाश करे।

उच्च न्यायालय ने आठ मई को राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया था कि एक महीने के अंदर भूमि चिह्नित करने की कवायद पूरी करने के बाद सात जून तक वह एक रिपोर्ट सौंपें।

उत्तराखंड के उत्तर प्रदेश से अलग होकर नया राज्य बनने पर उत्तराखंड उच्च न्यायालय की स्थापना नैनीताल में की गई और यहां यह नौ नवंबर, 2000 से काम हो रहा है।

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति संजय करोल की अवकाश पीठ ने उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन की याचिका पर ध्यान दिया और इस मुद्दे पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित वकीलों की दलीलें सुनीं।

पीठ ने बार निकाय की याचिका पर नोटिस जारी किया और उच्च न्यायालय के आठ मई के आदेश पर अमल पर रोक लगा दी।

मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय की नयी पीठों की स्थापना संसद के अधिकार क्षेत्र में है और विवादित आदेश राज्य सरकार को जनमत संग्रह की तरह भूमि को अंतिम रूप देने के लिए एक प्रशासनिक प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश देता है।

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने उनकी दलील का विरोध किया और कहा कि इस कवायद पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए क्योंकि उच्च न्यायालय परिसर को नैनीताल के बाहर स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है।

वकील विपिन नायर उच्च न्यायालय बार निकाय की ओर से पेश हुए और उच्च न्यायालय के निर्देश की आलोचना की। पीठ ने बार निकाय की याचिका को ग्रीष्म अवकाश के बाद आगे की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि जब उत्तराखंड का निर्माण हुआ था तो अदालत में न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या केवल तीन थी।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘20 वर्षों के भीतर यह संख्या 11 हो गई है। अगले 50 वर्षों में यह संख्या कम से कम आठ गुना बढ़ने की संभावना है। इसलिए अगले 50 वर्षों के भीतर हमें 80 न्यायाधीशों के लिए भूमि की आवश्यकता है। इसलिए हम मुख्य सचिव को उपरोक्त निर्देशों पर विवेक का इस्तेमाल करने का निर्देश दे रहे हैं।’’

बार निकाय की ओर से कहा गया कि मुख्य सचिव को उच्च न्यायालय की इमारत की स्थापना, न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों, अदलत कक्ष, कम से कम 7000 वकीलों के लिए कक्ष आदि के लिए सबसे उपयुक्त भूमि चिह्नित करने के लिए निर्देश दिया गया है और यह पूरी कवायद उन्हें महीने भर के अंदर पूरी करनी है।

भाषा संतोष माधव

माधव

 

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