अदालतों ने कई मामलों में राजद्रोह कानून की आलोचना की थी |

अदालतों ने कई मामलों में राजद्रोह कानून की आलोचना की थी

अदालतों ने कई मामलों में राजद्रोह कानून की आलोचना की थी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:14 PM IST, Published Date : May 11, 2022/10:53 pm IST

नयी दिल्ली, 11 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को ब्रिटिश कालीन राजद्रोह कानून के तहत मामले दर्ज करने पर रोक लगाने का आदेश दिया, वहीं हाल के दिनों में कई अदालतों ने इस कठोर कानून की आलोचना की तथा कुछ मामलों में तो याचिकाकर्ताओं को दंडित भी किया जिन्होंने इसके प्रावधानों को लागू करने का अनुरोध किया था।

पिछले साल मार्च में, रजत शर्मा और नेह श्रीवास्तव ने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ राजद्रोह कानून के तहत मामला दर्ज किया जाए। उन्होंने दावा किया था कि पूर्व मुख्यमंत्री ने पूर्व राज्य की विशेष स्थिति को बहाल करने के लिए चीन से मदद मांगी थी।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने न सिर्फ याचिका को खारिज कर दिया था बल्कि इस तरह के दावे करने के लिए याचिकाकर्ताओं पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया था और उन्हें सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में वह राशि जमा करने का निर्देश दिया था।

पीठ ने कहा था कि ऐसे विचार की अभिव्यक्ति जो केंद्र सरकार के फैसले से अलग है, उसे राजद्रोही नहीं कहा जा सकता है। अदालत ने कहा था कि ‘असहमति’ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक रूप है।

देश की सर्वोच्च अदालत ने पिछले साल हिमाचल प्रदेश पुलिस की आलोचना की थी जब उसने प्रसिद्ध पत्रकार दिवंगत विनोद दुआ के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया था। दुआ के खिलाफ मामले को खारिज करते हुए, न्यायालय ने कहा था कि ‘हर पत्रकार केदार नाथ सिंह फैसले के तहत सुरक्षा का हकदार है।’

टूलकिट केस के नाम से मशहूर दिशा ए रवि मामले में, कार्यकर्ता को 13 फरवरी, 2001 को बेंगलुरु से गिरफ्तार कर दिल्ली लाया गया था। उन्हें 10 दिन बाद रिहा कर दिया गया था और जमानत आदेश में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने सरकार के कदम की आलोचना की थी।

इसी प्रकार अदालत ने असम की रजनी परबीन सुल्ताना मामले में भी कानून की आलोचना की थी।

भाषा अविनाश पवनेश

पवनेश

 

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