नयी दिल्ली, 18 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि ‘व्हाट्सऐप’ की नई निजता नीति स्वीकार करना ‘स्वैच्छिक’’ है और यदि कोई इसकी शर्तों एवं नियमों से सहमत नहीं है, तो वह इसका इस्तेमाल नहीं करने का विकल्प चुन सकता है।
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पेशे से वकील एक याचिकाकर्ता ने व्हाइट्सऐप की नई निजता नीति को चुनौती दी थी, जो फरवरी में लागू होने वाली थी, लेकिन अब इसे मई तक के लिए टाल दिया गया है।
न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने कहा, ‘‘यह एक निजी ऐप है। इसमें शामिल नहीं हों। यह स्वैच्छिक है, इसे स्वीकार नहीं कीजिए। किसी और ऐप का इस्तेमाल कीजिए।’’
अदालत ने कहा कि यदि मोबाइल ऐप की शर्तें एवं नियम पढ़े जाएं, तो अधिकतर ऐप के बारे में ‘‘आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आप किन बातों पर सहमति जता रहे हैं’’।
अदालत ने कहा, ‘‘यहां तक कि ’गूगल मैप्स’ भी आपके सभी डेटा को एकत्र करता है।’’
उसने कहा कि इस मामले पर विचार-विमर्श की आवश्यकता है, इसलिए सोमवार को समय के अभाव के कारण इस मामले को 25 जनवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।
केंद्र सरकार ने भी अदालत की इस बात पर सहमति जताई कि इस मामले के विश्लेषण की आवश्यकता है।
व्हाट्सऐप और फेसबुक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल और मुकुल रोहतगी ने अदालत से कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है और इसमें उठाए गए कई मुद्दों का कोई आधार ही नहीं है।
उन्होंने कहा कि परिवार के सदस्यों एवं मित्रों के बीच निजी बातचीत कूट रहेगी और उसे व्हाट्सऐप एकत्र नहीं कर सकता तथा नई नीति में यह स्थिति नहीं बदलेगी।
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वकीलों ने कहा कि नीति में बदलाव से व्हाट्सऐप पर कारोबारी बातचीत ही प्रभावित होगी।
याचिका में कहा गया है कि निजता की नई नीति संविधान के तहत निजता के अधिकारों का हनन करती है।
याचिका में दावा किया गया है कि व्हाट्सऐप की निजता संबंधी नई नीति उपयोगकर्ता की ऑनलाइन गतिविधियों पर पूरी पहुंच की अनुमति देती है और इसमें सरकार की कोई निगरानी नहीं है।
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नई नीति के तहत उपयोगकर्ता या तो इसे स्वीकार करता है या ऐप से बाहर हो जाता है, लेकिन वे अपने डाटा को फेसबुक के स्वामित्व वाले दूसरे मंच या किसी अन्य ऐप के साथ साझा नहीं करने का विकल्प नहीं चुन सकते हैं।
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