‘डीपफेक’ के युग में व्यभिचार का आरोप लगाने वाली तस्वीरों को साक्ष्य के तौर पर साबित करना होगा: अदालत |

‘डीपफेक’ के युग में व्यभिचार का आरोप लगाने वाली तस्वीरों को साक्ष्य के तौर पर साबित करना होगा: अदालत

‘डीपफेक’ के युग में व्यभिचार का आरोप लगाने वाली तस्वीरों को साक्ष्य के तौर पर साबित करना होगा: अदालत

:   Modified Date:  June 8, 2024 / 08:51 PM IST, Published Date : June 8, 2024/8:51 pm IST

नयी दिल्ली, आठ जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘डीपफेक’ के युग में, पति या पत्नी द्वारा दूसरे साथी पर व्यभिचार का आरोप लगाते हुए पारिवारिक अदालत के समक्ष दाखिल की गई तस्वीरों को साक्ष्य के तौर पर साबित करना होगा।

अदालत ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की उस दलील पर गौर करते हुए की जिसमें उसने अपनी पत्नी पर व्यभिचार संबंधी आरोप लगाये थे।

उच्च न्यायालय ने पारिवारिक अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए पति द्वारा दायर अपील खारिज कर दी। पारिवारिक अदालत ने व्यक्ति को पत्नी और नाबालिग बेटी को 75,000 रुपये का भरण-पोषण देने का निर्देश दिया था।

जब याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत का ध्यान व्यक्ति की पत्नी की कुछ तस्वीरों की ओर आकृष्ट किया तो न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कहा, ‘‘यह स्पष्ट नहीं है कि तस्वीरों में मौजूद व्यक्ति क्या प्रतिवादी/पत्नी ही है, जैसा कि अपीलकर्ता/पति के वकील ने कहा है।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान ले सकते हैं कि हम ‘डीपफेक’ के युग में रह रहे हैं और इसलिए, यह एक ऐसा पहलू है जिसे अपीलकर्ता/पति को पारिवारिक अदालत के समक्ष साक्ष्य के माध्यम से साबित करना होगा।’’

पीठ द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पत्नी की याचिका पर पति के उत्तर में व्यभिचार के इस कथन का उल्लेख किया गया था, पति के वकील ने माना कि जवाब में इस पहलू का कोई उल्लेख नहीं था।

पीठ ने कहा कि चूंकि पति द्वारा तलाक के लिए दायर याचिका पर निर्णय लंबित है, इसलिए यदि इस मुद्दे पर जोर दिया जाता है, तो अदालत पक्षकारों को अपने-अपने मामलों के समर्थन में साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दे सकती है।

पति के वकील ने दावा किया कि इस पहलू को पारिवारिक अदालत के समक्ष उठाया गया था, हालांकि, निर्णय सुनाते समय इसे नजरअंदाज कर दिया गया।

अदालत ने कहा, ‘‘यदि यह स्थिति थी, तो अपीलकर्ता/पति के लिए सबसे अच्छा तरीका पारिवारिक अदालत के समक्ष समीक्षा के लिए आवेदन करना है। हालांकि, पति द्वारा ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है।’’

पेशे से आर्किटेक्ट व्यक्ति ने पारिवारिक अदालत के 15 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें उसे अलग रह रही उसकी पत्नी और बच्चे को मासिक भरण-पोषण के रूप में 75,000 रुपये देने का निर्देश दिया गया था।

दंपति का 2018 में विवाह हुआ था और उनकी पांच साल की एक बच्ची है। अदालत को बताया गया कि पत्नी स्नातकोत्तर है, लेकिन वर्तमान में बेरोजगार है और पति से अलग होने के बाद अपने माता-पिता के साथ रह रही है।

महिला ने अपने पति से मासिक गुजारा भत्ता के रूप में दो लाख रुपये का अनुरोध किया था, लेकिन पारिवारिक अदालत ने पति को 75,000 रुपये देने का आदेश दिया।

भाषा अमित शफीक

शफीक

 

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