भगवान शिव को किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है: दिल्ली उच्च न्यायालय |

भगवान शिव को किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है: दिल्ली उच्च न्यायालय

भगवान शिव को किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है: दिल्ली उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  May 29, 2024 / 08:59 PM IST, Published Date : May 29, 2024/8:59 pm IST

नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) ‘भगवान शिव को किसी के संरक्षण की आवश्यकता नहीं है।’ दिल्ली उच्च न्यायालय ने यमुना नदी के डूब क्षेत्र में अनधिकृत तरीके से निर्मित मंदिर को हटाने से संबंधित याचिका में भगवान शिव को पक्षकार बनाने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि यमुना नदी के तलहटी क्षेत्र और बाढ़ वाले इलाकों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाता है तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।

अदालत ने डूब क्षेत्र के निकट गीता कॉलोनी में स्थित प्राचीन शिव मंदिर को ध्वस्त करने संबंधी आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील द्वारा आधे-अधूरे मन से दी गई यह दलील कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी इस मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, उसके सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताशाजनक प्रयास है।’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारे संरक्षण की जरूरत नहीं है। बल्कि, हम, लोग, उनसे सुरक्षा और आशीष चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर यमुना नदी के तलहटी क्षेत्र और डूब वाले इलाकों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाता है तो भगवान शिव अधिक खुश होंगे।’’

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मंदिर आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है, जहां नियमित रूप से 300 से 400 श्रद्धालु आते हैं।

याचिका में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता सोसायटी को मंदिर की संपत्ति की पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदार प्रबंधन को बनाये रखने के उद्देश्य से 2018 में पंजीकृत किया गया था।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता सोसायटी भूमि पर अपने स्वामित्व, अधिकार या हित के संबंध में कोई दस्तावेज दिखाने में पूरी तरह विफल रही है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मंदिर का कोई ऐतिहासिक महत्व है।

अदालत ने कहा कि सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने और उन्हें किसी अन्य मंदिर में स्थानांतरित करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है।

अदालत ने कहा कि यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं तो दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए।

अदालत ने कहा, ‘‘डीडीए को अनधिकृत निर्माण को गिराने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी और उसके सदस्य ऐसी प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे। स्थानीय पुलिस और प्रशासन कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए उक्त प्रक्रिया में पूरी सहायता प्रदान करेंगे।’’

भाषा

देवेंद्र नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)