भारत को संविधान से बंधा नागरिक राष्ट्र बना देना उसके इतिहास और सभ्यता की उपेक्षा : पंडित |

भारत को संविधान से बंधा नागरिक राष्ट्र बना देना उसके इतिहास और सभ्यता की उपेक्षा : पंडित

भारत को संविधान से बंधा नागरिक राष्ट्र बना देना उसके इतिहास और सभ्यता की उपेक्षा : पंडित

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:56 PM IST, Published Date : May 20, 2022/1:52 pm IST

नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने शुक्रवार को कहा कि भारत को संविधान से बंधा हुआ एक ‘नागरिक राष्ट्र’ (सिविक नेशन) बना देना उसके इतिहास, प्राचीन धरोहर, संस्कृति और सभ्यता की उपेक्षा करने के समान है।

दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में पंडित ने कहा कि भारत एक “सभ्यता वाला राज्य” है और धर्म से परे जाकर इतिहास को स्वीकार करना “बेहद जरूरी” है।

उन्होंने कहा, “भारत को संविधान से बंधा हुआ एक नागरिक राष्ट्र बना देना उसके इतिहास, प्राचीन धरोहर और सभ्यता की उपेक्षा करने जैसा है। मैं भारत को एक सभ्यता वाले राष्ट्र के तौर पर देखती हूं। केवल दो ऐसे सभ्यता वाले राष्ट्र हैं, जहां परंपरा के साथ आधुनिकता, क्षेत्र के साथ उसका प्रभाव तथा बदलाव के साथ निरंतरता मौजूद है। ये दो राष्ट्र भारत और चीन हैं।”

प्रोफेसर पंडित ने तीन दिवसीय संगोष्ठी ‘स्वराज से नए भारत के विचारों पर पुनर्विचार’ के दूसरे दिन अपने विचार व्यक्त किए। जेएनयू की कुलपति ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रतिस्पर्धी नहीं, बल्कि सहयोगी हैं।

ब्रिटिश इतिहासकार ईएच कार के सिद्धांत, “तथ्य स्थिर हैं और उनकी व्याख्या अलग हो सकती है” का हवाला देते हुए पंडित ने कहा, “दुर्भाग्य से स्वतंत्र भारत और कुछ हद तक मैं जिस विश्वविद्यालय से ताल्लुक रखती हूं, उसने इस सिद्धांत को उलट दिया है।”

उन्होंने कहा, “व्याख्या स्थिर है और तथ्य बदल सकते हैं और ये बदल भी गए हैं।”

भाषा यश पारुल

पारुल

 

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