‘कानून की किताबों को आग लगा दो’, ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुस्लिम संगठनों की तंजीमो ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस
Maulana Arshad Madani on Gyanvapi Case:मामले पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि हमने 1991 में बने कानून पर भी ऐतराज जताया था कि इस कानून से बाबरी मस्जिद को क्यों हटाया जा रहा है।
Arshad Madani on Gyanvapi Masjid Case
Maulana Arshad Madani on Gyanvapi Case: ज्ञानवापी मामले में जिला कोर्ट ने परिसर में पूजा पाठ की इजाजत दे दी है, इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने इसका विरोध किया है। ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुस्लिम संगठनों की तंजीमो ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की है। इस दौरान उन्होंने बाबरी मस्जिद का मुद्दा भी उठाया।
ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर पहली बार मुस्लिम संगठनों की तंजीमो ने की प्रेस कॉन्फ्रेंस , बाबरी मस्जिद का मुद्दा भी उठाया ,
भारत के लोगो को ये कॉन्फ्रेंस ज़रूर सुननी और शेयर करनी चाहिए , pic.twitter.com/nOBYyLYq7G
— Nargis Bano (@NargisBano70) February 2, 2024
इसके पहले ज्ञानवापी मामले में शुक्रवार (02 फरवरी) को इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई थी। अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 फरवरी को होगी। तब तक पूजा पर कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है और पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने का निर्देश दिया है। मामले पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि हमने 1991 में बने कानून पर भी ऐतराज जताया था कि इस कानून से बाबरी मस्जिद को क्यों हटाया जा रहा है।
जहां बाबरी मस्जिद वहां रामजन्मभूमि नहीं है, बाबरी मस्जिद के फैसले ने बताया कि ऐसे किसी भी मस्जिद के साथ हो सकता है। कानून की किताबों को आग लगा दो,अगर यही चलेगी किसी भी धर्म को फैसला नहीं मिलेगा। लॉ आप क्यों पढ़ाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि मुसलमान मुल्क की आजादी के बाद इस तरह के मसलों में घिरा हुआ है। बाबरी मस्जिद के बाद कई मस्जिदों के मसलों में घिरा हुआ है। इस समय जिस तेजी से ये मसले उठे हैं कि कोर्ट में ऐसी लचक और ढील पैदा हुई है कि जो लोग इबादतगाहों पर कब्जा करने वाले सफल हो रहे हैं।
‘फिर तो मंदिर मस्जिद कुछ नहीं बचते’
मौलाना ने कहा कि अगर मुसलमानों की ये सोच होती कि हमें सभी मंदिरों को तोड़ देना है, तो मंदिर-मस्जिद कुछ नहीं बचते। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने जल्दबाजी में फैसला किया। दूसरे पक्ष को बहस का मौका नहीं दिया गया। इंसाफ देने वाले इरादों को चोट पहुंची है। बाबरी मस्जिद के फैसले में ये कहा है कि मंदिर तोड़ कर मस्जिद नहीं बनाई गई। कोर्ट का काम आस्था पर फैसला करना नहीं है, दलील के हिसाब से इंसाफ किया जाता है। आपसी दूरी पैदा करने की कोशिश की जा रही है।
‘तो देश में दंगे शुरू हो जाएंगे’
जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष ने कहा कि 1991 का कानून अहम कानून है। इस कानून की सहायता से हम झगड़े बंद किया जा सकता है। इस कानून पर अगर मुल्क में इमानदारी से फैसला नहीं लाया जाएगा तो देश में दंगे शुरु हो जाएंगे। इंसाफ का एक ही पैमाना होना चाहिए। अगर इससे भरोसा लोगों का उठ जाए तो ये देश के लिए ठीक नहीं है। हम इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे। सही तौर से इसको कोर्ट में रखेंगे और सच्चाई सबके सामने लाएंगे।
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