स्थानीय प्रशासन की पाबंदियों के कारण जम्मू-कश्मीर में मीडिया को ‘दबाया’ जा रहा है : पीसीआई समिति |

स्थानीय प्रशासन की पाबंदियों के कारण जम्मू-कश्मीर में मीडिया को ‘दबाया’ जा रहा है : पीसीआई समिति

स्थानीय प्रशासन की पाबंदियों के कारण जम्मू-कश्मीर में मीडिया को ‘दबाया’ जा रहा है : पीसीआई समिति

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:48 PM IST, Published Date : March 14, 2022/5:19 pm IST

नयी दिल्ली, 14 मार्च (भाषा) जम्मू-कश्मीर पर भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) की तीन सदस्यीय तथ्यान्वेषी समिति ने कहा है कि स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए व्यापक प्रतिबंधों के कारण केंद्र शासित प्रदेश, विशेष रूप से घाटी में समाचार मीडिया को “धीरे-धीरे दबाया जा रहा” है।

भारत में प्रेस के निगरानीकर्ता के तौर पर कार्य करने वाले एक वैधानिक अर्ध न्यायिक निकाय के तौर पर कार्य करने वाले पीसीआई ने पिछले साल सितंबर में पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती की शिकायत पर सदस्यों सुमन गुप्ता और गुरबीर सिंह के साथ प्रकाश दुबे (संयोजक) की अध्यक्षता में समति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट परिषद को सौंप दी है जिस पर अभी बहस होना और इसे स्वीकार किया जाना बाकी है।

समिति ने पिछले हफ्ते अपनी रिपोर्ट में कहा, “जम्मू- कश्मीर क्षेत्र में और विशेष रूप से घाटी में समाचार मीडिया को धीरे-धीरे मुख्य रूप से स्थानीय प्रशासन द्वारा लगाए गए व्यापक प्रतिबंधों के कारण दबाया जा रहा है।”

तथ्यान्वेषी समिति ने जम्मू और श्रीनगर का दौरा करने और सभी पक्षकारों से मुलाकात के बाद कहा, “हमारा निष्कर्ष और सिफारिश बहुत विशिष्ट है: किसी भी आपराधिक कृत्य में शामिल लोग, अपने पेशे का पालन कर रहे पत्रकार नहीं हैं। यदि कोई ‘पत्रकार’ हथियार लिए हुए है या हथगोले और अन्य गोला-बारूद ले जा रहा है, तो वह पत्रकार नहीं है, वह एक आतंकवादी है और उसके साथ वैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए।”

उसने कहा, “हालांकि, सुरक्षा प्रतिष्ठान सरकारी नीतियों के खिलाफ लेखन, या सशस्त्र बलों की ज्यादतियों के बारे में एक खबर में किसी परिवार या नागरिक स्रोतों का हवाला देते हुए दी गई जानकारी या किए गए किसी ट्वीट को लेकर ‘फर्जी समाचार’ या ‘राष्ट्र-विरोधी गतिविधि’ के रूप में इंगित करने का ठप्पा लगाने और फिर पत्रकार को ‘देशद्रोही गतिविधियों’ के आरोप में गिरफ्तार करने का काम नहीं कर सकते। सरकारी नीतियों या विकास कार्यों का समर्थन करना पत्रकारों का काम नहीं है।”

इसमें कहा गया है कि एक पत्रकार का काम समाचार को उसी रूप में रिपोर्ट करना है जैसा कि वह घटित हुआ है, भले ही वह सरकारी अधिकारियों को ‘कड़वा’ लगे।

रिपोर्ट में कहा गया, “सभी आलोचनात्मक रिपोर्टिंग और राय को ‘राष्ट्र-विरोधी’ के रूप में देखने की प्रवृत्ति को रोकना चाहिए। एक संघर्ष क्षेत्र में कई घटक और घटनाओं के कई पहलू सामने आते हैं। एक पत्रकार को सरकारी पक्ष की अनदेखी नहीं करनी चाहिए लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वह सरकार के प्रवक्ता नहीं हैं।”

रिपोर्ट में चिंता के साथ कहा गया है कि विभिन्न सरकारी विभागों के जनसंपर्क का काम पुलिस ने अपने हाथ में ले लिया है।

समिति ने कहा, “यह बंद होना चाहिए क्योंकि यह एक लोकतांत्रिक सरकार के विभिन्न अंगों के कामकाज की भावना के खिलाफ है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी एजेंसियों और पुलिस के साथ-साथ आतंकवादियों के लगातार दबाव के कारण पत्रकारों में उच्च स्तर का तनाव है और वे अब भी ऐसे विषम वातावरण में अपना काम कर रहे हैं जो सराहनीय है।

भाषा प्रशांत उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)