गैर-तार्किक अंतिम आदेश पारित करने की परिपाटी बंद होनी चाहिए : शीर्ष अदालत |

गैर-तार्किक अंतिम आदेश पारित करने की परिपाटी बंद होनी चाहिए : शीर्ष अदालत

गैर-तार्किक अंतिम आदेश पारित करने की परिपाटी बंद होनी चाहिए : शीर्ष अदालत

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:37 PM IST, Published Date : April 19, 2022/10:05 pm IST

नयी दिल्ली, 19 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि किसी तर्क के बिना अंतिम आदेश सुनाने की परिपाटी समाप्त होनी चाहिए और इसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने हत्या के एक मामले में आरोपी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा बरी किये जाने के आदेश को भी निरस्त कर दिया।

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 30 मार्च 2019 के उस फैसले का संज्ञान लिया, जिसमें उच्च न्यायालय ने बगैर तर्क वाला अपना अंतिम आदेश सुनाया था, जिसमें दो आरोपियों -संतोष सिंह और अवधेश सिंह- को 2012 के हत्या मामले में बरी कर दिया गया था। उच्च न्यायालय ने पांच महीने बाद इस संबंध में तार्किक फैसला दिया था।

न्यायमूर्ति एम. आर. शाह और न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, ‘‘1984 में और उसके बाद बार-बार इस अदालत ने सख्त टिप्पणियां की है, इसके बावजूद बिना तर्क के फैसले का मुख्य अंश पढ़ने और तार्किक आदेश कुछ समय बाद जारी करने का प्रचलन समाप्त नहीं हुआ है। बिना तर्क के अंतिम आदेश जारी करने की परिपाटी को रोका और हतोत्साहित किया जाना चाहिए।’’

पीठ के लिए फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति शाह ने एक आपराधिक मामले में दोषियों को बरी करने के फैसले के मुख्य अंश का उल्लेख किया।

न्यायालय ने कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि तार्किक आदेश करीब पांच माह बाद सुनाया और अपलोड किया गया। हम मामले के गुण-दोषों में गये बिना उच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गये आदेश को निरस्त करते हैं।’’

पीठ ने कहा, ‘‘हम इस अपील को उच्च न्यायालय के पास वापस भेजते हैं, ताकि वह कानून के दायरे में और गुण-दोष के आधार पर नये सिरे से इस पर विचार करे। हम उच्च न्यायालय से आग्रह करते हैं कि वह जल्द से जल्द अपीलों का निपटारा करे।’’

न्यायालय ने मौजूदा आदेश की प्राप्ति की तारीख के छह माह के भीतर इन अपीलों के निपटारे का आदेश दिया।

शीर्ष अदालत ने, हालांकि, आरोपी को नये सिरे से होने वाली सुनवाई के दौरान आत्मसमर्पण न करने की छूट दी है।

न्यायालय ने कहा कि यदि निचली अदालत की दोषसिद्धि को उच्च न्यायालय बरकरार रखता है तो आरोपी को इस आदेश की तारीख से दो सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करना पड़ेगा।

भाषा सुरेश उमा

उमा

 

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