नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य सभी रूपों को अमान्य एवं असंवैधानिक घोषित किए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका पर 22 जुलाई को सुनवाई के लिए सोमवार को सहमत हो गया।
वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी तथा न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से आग्रह किया कि इस याचिका पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है, क्योंकि याचिकाकर्ता महिला को तलाक के तीन नोटिस मिले हैं, जिससे यह वापस नहीं लिये जाने योग्य हो गये हैं।
प्रधान न्यायाधीश रमण ने उनके अनुरोध को स्वीकार कर लिया और इसे चार दिन बाद सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
पिछले कुछ महीनों के दौरान कई बार तत्काल सुनवाई के लिए इस याचिका का जिक्र किया गया है।
यह याचिका गाजियाबाद निवासी बेनजीर हिना ने दायर की है। उन्होंने दावा किया कि वह ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक-ए-हसन’ का शिकार हुईं। उन्होंने केंद्र को सभी नागरिकों के लिये तलाक के तटस्थ और एकसमान आधार तथा प्रक्रिया की खातिर दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया।
तलाक-ए-हसन में, तीन महीने की अवधि के दौरान महीने में एक बार तलाक बोला जाता है।
याचिकाकर्ता ने इस तरह का तलाक दिए जाने का दावा किया है। उन्होंने दलील दी कि पुलिस और अधिकारियों ने उन्हें बताया कि शरिया के तहत तलाक-ए-हसन की अनुमति है।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय के जरिए दायर इस याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) संबंधी कानून, 1937 से गलत धारणा बनती है कि कानून ‘तलाक-ए-हसन’ और एकतरफा न्यायेतर तलाक के अन्य सभी रूपों को मंजूरी देता है, जो विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए बेहद हानिकारक है। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि इससे देश के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 तथा अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार संधियों का भी उल्लंघन होता है।
इसमें दावा किया गया है कि कई इस्लामी राष्ट्रों ने इस तरह की प्रथा पर रोक लगा दी है, जबकि यह भारतीय समाज और खास तौर पर याचिकाकर्ता की तरह मुस्लिम महिलाओं को अब भी परेशान कर रही है।
भाषा अविनाश दिलीप
दिलीप
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