नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) संयुक्त राष्ट्र ने मंगलवार को एक नयी रिपोर्ट में कहा कि प्राकृतिक चारागाह से संबंधित विश्व की 50 प्रतिशत तक वन भूमि के नष्ट हो जाने का अनुमान है जिससे खाद्य आपूर्ति और अरबों लोगों के अस्तित्व के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
मंगोलिया के उलनबटोर में जारी की गई ‘ग्लोबल लैंड आउटलुक थीमैटिक रिपोर्ट’ में जलवायु परिवर्तन के लिए विशाल प्राकृतिक चारागाहों और अन्य वन भूमि के क्षरण को जिम्मेदार बताया गया।
मरुस्थलीकरण रोधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीडी) मामलों के कार्यकारी सचिव इब्राहीम थियाव ने कहा, ‘‘जब हम किसी जंगल को काटते हैं, जब हम 100 साल पुराने पेड़ को गिरते देखते हैं, तो यह हममें से कई लोगों में भावनात्मक प्रतिक्रिया पैदा करता है। दूसरी ओर, प्राचीन चारागाहों के इस्तेमाल में तब्दीली पर बहुत कम सार्वजनिक प्रतिक्रिया होती है।’’
थियाव ने कहा, ‘अफसोस की बात है कि इन विस्तृत भू-क्षेत्रों और इन पर निर्भर चरवाहों तथा पशुपालकों को आम तौर पर कम महत्व मिलता है।’
दुनिया भर में दो अरब लोग- छोटे स्तर के चरवाहे, पशुपालक और किसान, गरीब और हाशिए पर रहने वाले लोग स्वस्थ वनभूमि पर निर्भर हैं।
यूएनसीसीडी के अनुसार, कई पश्चिम अफ्रीकी देशों में पशुधन उत्पादन 80 प्रतिशत आबादी को रोजगार देता है। मध्य एशिया और मंगोलिया में 60 प्रतिशत भूमि क्षेत्र का उपयोग चारागाहों के रूप में किया जाता है। पशुधन को चराने से क्षेत्र की लगभग एक तिहाई आबादी को मदद मिलती है।
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि विडंबना यह है कि ज्यादातर शुष्क क्षेत्रों में प्राकृतिक चारागाहों को फसल उत्पादन क्षेत्र में परिवर्तित करके खाद्य सुरक्षा और उत्पादकता बढ़ाने के प्रयासों के परिणामस्वरूप भूमि का क्षरण हुआ है और कृषि उपज कम हुई है।
भारत में प्राकृतिक चारागाह क्षेत्र लगभग 12.1 करोड़ हेक्टेयर में फैला हुआ है और इनमें से एक बड़ा हिस्सा (लगभग 10 करोड़ हेक्टेयर) अल्प-उपयोगी माना जाता है। इसमें निम्नीकृत वन भूमि, फसल उत्पादन के लिए अनुपयुक्त भूमि, खड्ड और बंजर भूमि शामिल है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में लगभग 12 करोड़ हेक्टेयर भूमि- जल क्षरण से 8.2 करोड़ हेक्टेयर, पवन क्षरण से 1.2 करोड़ हेक्टेयर, रासायनिक प्रदूषण से 2.5 करोड़ हेक्टेयर और भौतिक क्षरण से 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र खराब हो गया है।
भारत में जल कटाव के कारण फसल संबंधी नुकसान 3.5 अमेरिकी डॉलर का होने का अनुमान है।
भूमि क्षरण तटस्थता (एलडीएन) और पारिस्थितिकी तंत्र बहाली पर अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध भारत ने राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, हरित भारत मिशन सहित कई एलडीएन-संबंधित कार्यक्रम शुरू या पुनर्जीवित किए हैं।
इन कार्यक्रमों से कुल मिलाकर 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बहाल करने में मदद मिलने की उम्मीद है।
भाषा
नेत्रपाल माधव
माधव
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