नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने का अधिकार देने की मांग वाली याचिका पर न्यायालय चार हफ्ते बाद करेगा सुनवाई |

नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने का अधिकार देने की मांग वाली याचिका पर न्यायालय चार हफ्ते बाद करेगा सुनवाई

नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने का अधिकार देने की मांग वाली याचिका पर न्यायालय चार हफ्ते बाद करेगा सुनवाई

:   Modified Date:  February 17, 2023 / 02:28 PM IST, Published Date : February 17, 2023/2:28 pm IST

नयी दिल्ली, 17 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह केंद्र और अन्य को एक उचित प्रणाली बनाने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने की मांग करने वाली एक याचिका पर चार सप्ताह बाद सुनवाई करेगा। याचिका में उक्त प्रणाली के तहत नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने और उनके द्वारा उजागर किए गए मुद्दों पर विचार-विमर्श शुरु करवाने का अधिकार देने की मांग की गई है।

यह याचिका न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आई।

केंद्र की ओर से पेश वकील ने इस मामले में हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा।

पीठ ने कहा, ‘‘प्रतिवादी संख्या एक (भारत संघ) ने हलफनामा दायर करने के लिए समय की मांग की है। इसे चार सप्ताह बाद सूची में शामिल करें। इस बीच हलफनामा दायर किया जाए।’’

शीर्ष अदालत ने 27 जनवरी को याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता करण गर्ग की ओर से पेश वकील से कहा था कि वह याचिका की एक प्रति केंद्र के स्थायी अधिवक्ता को दें।

याचिका में यह घोषणा करने की भी मांग की गई है कि संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (ए) और 21 के तहत नागरिकों का मौलिक अधिकार है कि वे अपनी याचिकाओं में उनके द्वारा उजागर किए गए मुद्दों पर बहस, चर्चा और विचार-विमर्श शुरू करने के लिए संसद में सीधे याचिका दायर करें।

याचिका में कहा गया है, ‘‘वर्तमान रिट याचिका में प्रार्थना की गई है कि प्रतिवादियों (केंद्र और अन्य) के लिए यह सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाना अनिवार्य है ताकि अनुचित बाधाओं और कठिनाइयों का सामना किए बिना संसद में नागरिकों की आवाज सुनी जा सके।’’

याचिका में याचिकाकर्ता ने महसूस किया है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदारी की बात आती है तो देश का एक सामान्य नागरिक ‘‘शक्तिहीन’’ महसूस करता है और जब लोग अपना वोट डालते हैं और प्रतिनिधियों को चुनते हैं, तो उसके बाद आगे किसी भी भागीदारी की कोई गुंजाइश नहीं है।

इसमें कहा गया है कि ऐसे किसी औपचारिक तंत्र का पूरी तरह से अभाव है जिसके द्वारा नागरिक सांसदों के साथ जुड़ सकें और यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठा सकें कि महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में बहस हो।

याचिका में कहा गया है, ‘‘इस तंत्र की अनुपस्थिति निर्वाचित प्रतिनिधियों और नागरिकों के बीच एक शून्य पैदा करती है। लोग कानून बनाने की प्रक्रिया से कटे हुए हैं। भारतीय लोकतंत्र में पूरी तरह से भाग लेने के लिए नागरिकों को उनके अंतर्निहित अधिकारों से दूर करना गंभीर चिंता का विषय है और यह एक ऐसा मुद्दा है जिसका तुरंत समाधान निकालने की आवश्यकता है।’’

याचिका में कहा गया है कि ब्रिटेन में एक प्रणाली पहले से ही लागू है जिसके जरिए नागरिक संसद में सीधे याचिका दायर कर सकते हैं और यह कई वर्षों से अच्छी तरह से काम कर रही है।

इसमें यह भी कहा गया कि यदि नागरिकों के पास केंद्र और संसद के साथ गहरे स्तर पर जुड़ने की क्षमता है, तो यह शीर्ष अदालत और उच्च न्यायालयों पर बोझ को कम कर सकता है क्योंकि सार्वजनिक हित के मुद्दों को आगे बढ़ाने के लिए एक प्रभावी और वैकल्पिक उपाय मौजूद हो सकता है।

याचिका में केंद्र और अन्य को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वे एक उपयुक्त प्रणाली या उचित नियम और विनियम बनाने के लिए तेजी से कदम उठाएं जो नागरिकों को संसद में याचिका दायर करने और उनके द्वारा उजागर किए गए मुद्दों पर बहस शुरू करने की मांग करने का अधिकार देते हैं।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र नरेश

नरेश

 

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