नयी दिल्ली, एक मई (भाषा) कांग्रेस ने बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से इस संबंध में अपना रुख स्पष्ट करने को कहा कि क्या वह अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा हटाएंगे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि कांग्रेस का घोषणा पत्र इस बात की गारंटी देता है कि एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत बढ़ाने के उद्देश्य से एक संवैधानिक संशोधन पारित किया जायेगा, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इसे ‘‘सांप्रदायिक रंग’’ देने की कोशिश कर रहे हैं।
यहां अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कांग्रेस महासचिव रमेश ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ‘‘संविधान बदलने के लिए ‘400 पार’ की बात कर रही है क्योंकि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक न्याय के खिलाफ हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘कांग्रेस इस बात की गारंटी देती है कि वह एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा बढ़ाने के लिए एक संवैधानिक संशोधन पारित करेगी।’’
रमेश ने कहा, ‘‘प्रधानमंत्री हमारे ‘न्याय पत्र’ को सांप्रदायिक रंग देना चाहते हैं और लोगों को गुमराह करना चाहते हैं। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि क्या वह एससी, एसटी और ओबीसी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा हटा देंगे?’’
उन्होंने कहा कि राहुल गांधी जन सभाओं में संविधान की प्रति अपने हाथ में रखते हैं क्योंकि उस (संविधान) पर हमला किया जा रहा है। उन्होंने दावा किया कि सबसे पहले प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार ने इस बारे में (संविधान बदलने) बात की, फिर भाजपा के कई उम्मीदवारों और सांसदों ने भी यह बात कही।
हाथ में संविधान की प्रति लेकर रमेश ने दावा किया कि 1949 से यह कोई पहली बार नहीं है जब आरएसएस ने बाबासाहब आंबेडकर के संविधान को बदलने की बात की हो।
उन्होंने कहा, ‘‘आज मैं कहना चाहता हूं कि ऐसा पहली बार नहीं है जब भाजपा और आरएसएस ने ‘संविधान बदलो’ का नारा दिया है। वर्ष 1949 से ही आरएसएस की मांग रही है कि संविधान में बदलाव की जरूरत है।’’
रमेश ने एक लेख का भी हवाला दिया जिसके बारे में उनका दावा है कि यह 30 नवंबर, 1949 को आरएसएस से जुड़े प्रकाशन ‘ऑर्गनाइजर’ में प्रकाशित हुआ था।
इस लेख के हवाले से रमेश ने कहा, ‘‘भारत के नये संविधान के बारे में सबसे बुरी बात यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है। संविधान का प्रारूप बनाने वालों ने इसमें ब्रिटिश, अमेरिकी, कनाडाई, स्विस और विविध अन्य संविधानों के तत्वों को शामिल किया है…मनु के नियम स्पार्टा के लाइकर्गस या फारस के सोलोन से बहुत पहले लिखे गए थे।’’
उन्होंने लेख के हवाले से कहा, ‘‘आज तक मनुस्मृति में बताए गए उनके कानूनों को दुनिया में प्रशंसा मिलती है लेकिन हमारे संवैधानिक पंडितों के लिए इसका कोई मतलब नहीं है।’’
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
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