नयी दिल्ली, 15 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड सरकार के प्रति कड़ी नाराजगी जताते हुए बुधवार को कहा कि जंगल में आग लगने की घटनाओं को नियंत्रित करने में राज्य का रवैया “उदासीन” रहा है।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 17 मई को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने और कोषों के इस्तेमाल व वन विभाग में खाली पदों के बारे में स्पष्टीकरण देने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत इसे “बहुत खेदजनक स्थिति” करार देते हुए कहा कि राज्य बस कोई न कोई बहाना ढूंढने की कोशिश कर रहा है।
पीठ ने निर्देश दिया कि राज्यों के वन विभाग के कर्मचारियों और वाहनों का इस्तेमाल चुनावों या ‘चार धाम यात्रा’ जैसे किसी अन्य कार्यों में न किया जाए।
न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भाटी और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की सदस्यता वाली पीठ ने कहा, “हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि आग पर काबू पाने में उत्तराखंड का रवैया निराशाजनक है। हालांकि कार्य योजनाएं तैयार कर उन्हें अंतिम रूप दिया गया, लेकिन कार्यान्वयन के लिए कोई कदम नहीं उठाया जा रहा।”
शीर्ष अदालत उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने की घटनाओं को लेकर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि जब प्रतिपूरक वनरोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (सीएएमपीए) से धन मिल चुका है और केंद्रीय प्राधिकरण से मंजूरी मिल चुकी है तो 2023-24 में उत्तराखंड में वन संबंधी गतिविधि के लिए 9.12 करोड़ रुपये में से केवल 3.41 करोड़ रुपये का उपयोग क्यों किया।
पीठ ने कहा कि उसे इस बात का भी कोई कारण नहीं दिखता कि शेष राशि का उपयोग वानिकी के लिए क्यों नहीं किया गया।
पीठ ने कहा, “एक और मुद्दा जिस पर ध्यान देने की जरूरत है वह उत्तराखंड राज्य के वन विभाग में भारी रिक्तियों से जुड़ा है।”
पीठ ने कहा कि राज्य ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष या राज्य आपदा प्रबंधन कोष के समय पर वितरण में विफलता को लेकर एक शिकायत की है।
पीठ ने कहा, ”हम यह नहीं समझ पा रहे कि राज्य को राज्य आपदा प्रबंधन निधि के वितरण के संबंध में शिकायत कैसे हो सकती है, जबकि उक्त धनराशि वितरित करना राज्य के अधिकार क्षेत्र में है।”
पीठ ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कोष और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत धन के समय पर वितरण के संबंध में अपनी स्थिति स्पष्ट करने का भी निर्देश दिया।
पीठ ने कहा, ”हम उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 17 मई को व्यक्तिगत रूप से इस अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश देते हैं…।”
भाषा जोहेब प्रशांत
प्रशांत
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