सावरकर के जीवन और संघर्ष को दर्शाती है 'विनायक दामोदर सावरकर' |

सावरकर के जीवन और संघर्ष को दर्शाती है ‘विनायक दामोदर सावरकर’

सावरकर के जीवन और संघर्ष को दर्शाती है 'विनायक दामोदर सावरकर'

:   Modified Date:  March 31, 2024 / 04:18 PM IST, Published Date : March 31, 2024/4:18 pm IST

नयी दिल्ली, 31 मार्च (भाषा) हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर के संबंध में आनेवाली पुस्तक ‘‘विनायक दामोदर सावरकर : नायक बनाम प्रतिनायक’’ में हिंदू राष्ट्र की अवधारणा, भारत विभाजन, सनातन धर्म, अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के संबंध में उनके विचारों के साथ ही उनके जीवन के संघर्ष और आजादी की लड़ाई में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।

पुस्तक में सावरकर के हवाले से लिखा गया है, ‘‘इस देश को अपनी मातृभूमि और पुण्यभूमि मानने वाला हर व्यक्ति हिंदू है। यह परिभाषा समाज में और अधिक बिखराव एवं अलगाव को रोकने तथा हिंदुओं को भारत के लोगों का एक समुदाय बनाने में सशक्त भूमिका अदा करेगी।’’

लेखक कमलांत त्रिपाठी लिखित इस पुस्तक में भारत के विभाजन के संबंध में कहा गया है कि मोहम्मद अली जिन्ना जहां हिंदुस्तान को दो भागों में बांटे जाने के समर्थक थे, तो वहीं सावरकर ने कहा था कि दोनों राष्ट्र एक ही संविधान के तहत एक ही देश में रह सकते हैं, किंतु संविधान ऐसा होना चाहिए जिसमें हिंदू राष्ट्र की प्रधानता रहे और मुस्लिम राष्ट्र उसके साथ सहयोग करे।

लेखक कहते हैं कि सावरकर इस व्यवस्था को इस आधार पर साकार करना चाहते थे कि इसमें हर व्यक्ति का, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, एक वोट होगा और इसमें मुसलमानों को कोई ऐसा लाभ नहीं मिलेगा जो हिंदुओं को उपलब्ध न हो।

पुस्तक के अनुसार, उनका कहना था ‘‘किसी समुदाय की अल्पसंख्या उसके किसी विशेषाधिकार के लिए औचित्य प्रदान नहीं करती। इसी तरह किसी समुदाय की बहुसंख्या उसके किसी अधिकार से वंचित करने के दंड का भी आधार नहीं बन सकती।’’

किताबघर प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में लेखक लिखते हैं कि जब हम सावरकर को तिरस्कारपूवर्वक ‘माफीवीर’ कहकर उनकी खिल्ली उड़ाते हैं तो पहले हमें उन दिनों के सेल्युलर जेल में दस साल के बजाय दस दिन भी रह पाने की अपनी क्षमता पर दृष्टि डालनी चाहिये। अंध ‘पक्षधरता’ हमें अपने देश के नायकों के प्रति किस हद तक असंवेदनशील बना देती है!

हिंदी अकादमी, दिल्ली से श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार (1991) और बेलगाम में संगति साहित्य अकादमी से भारतीय भाषा पुरस्कार (2003) जैसे कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित लेखक कमलांत त्रिपाठी की यह पुस्तक 16 मार्च मार्च को बाजार में आ रही है।

त्रिपाठी का कहना है कि सावरकर के चारों ओर घूमते विवादों के बावजूद, यह पुस्तक उनके (सावरकर) योगदान को यथार्थ रूप से प्रस्तुत करने और राजनीतिक पक्षपात से होने वाली किसी भी गलतफहमी को सुधारने का लक्ष्य रखती है।

भाषा नरेश सुरेश रंजन

रंजन

 

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