कानून स्पष्ट शब्दों में क्यों नहीं कहता कि खनिज पर कर लगाने का अधिकार केवल संसद के पास : न्यायालय |

कानून स्पष्ट शब्दों में क्यों नहीं कहता कि खनिज पर कर लगाने का अधिकार केवल संसद के पास : न्यायालय

कानून स्पष्ट शब्दों में क्यों नहीं कहता कि खनिज पर कर लगाने का अधिकार केवल संसद के पास : न्यायालय

:   Modified Date:  March 12, 2024 / 10:01 PM IST, Published Date : March 12, 2024/10:01 pm IST

नयी दिल्ली, 12 मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से पूछा कि कानून स्पष्ट शब्दों में यह क्यों नहीं कहता कि केवल संसद के पास ही खनिजों पर कर लगाने की शक्ति है और राज्यों को इस तरह की वसूली करने का अधिकार नहीं है।

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या उनकी यह दलील कि संघ एकरूपता लाने के लिए खनिजों पर कर तय करता है, संविधान में निहित शक्ति के संघीय वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

संविधान पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे।

पीठ ने कहा, ‘‘कानून यह क्यों नहीं कहता कि यह वह कर है जो संघ वसूल करेगा और उस हद तक राज्य की शक्ति का हनन होगा या ऐसा कुछ? आपको इसे अनुमान के आधार पर क्यों कहना पड़ेगा?’

मेहता ने अपनी दलीलों में कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (एमएमडीआरए) की संपूर्ण संरचना खनिजों पर कर लगाने की राज्यों की विधायी शक्ति की सीमा से जुड़ी है।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यह एक वांछनीय दलील है कि करों में एकरूपता के लिए केंद्र इसे तय कर सकता है और यह नीतिगत मामल है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह संविधान के तहत शक्ति के संघीय वितरण पर असर डालेगा।’’

उन्होंने कहा कि सूची-2 (राज्य सूची) की प्रविष्टि 53 के तहत, राज्य सरकारें बिजली की बिक्री और खपत पर कर लगा सकती हैं और सूची 2 की प्रविष्टि 54 के तहत प्राकृतिक गैस के लिए भी यही बात लागू होती है।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘यह हमारे संविधान की योजना है कि विभिन्न राज्य बिजली की खपत पर या प्राकृतिक गैस या पेट्रोलियम उत्पादों के मामले में अलग-अलग कर लगा सकते हैं। एकरूपता तर्क यहां भी लागू किया जा सकता है और यह संघीय योजना पर प्रभाव डाल सकता है। उन्होंने सॉलिसिटर जनरल से कहा, ‘खनिजों के बारे में ‘सुई जेनेरिस’ (अद्वितीय) जैसा कुछ नहीं है कि इसमें एकरूपता होनी चाहिए।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि संसद अधिक से अधिक ऐसी सीमा लगा सकती है कि कर एक विशेष राशि से अधिक नहीं हो सकता और विभिन्न खनिजों के लिए अलग-अलग सीमाएं हो सकती हैं।

मेहता ने जोर देकर कहा, ‘‘एमएमडीआरए की धारा नौ के तहत, केंद्र सरकार के पास रॉयल्टी तय करने की शक्ति है।’’

सुनवाई पूरी नहीं हुई और बुधवार को भी जारी रहेगी।

नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ 1989 के फैसले से उत्पन्न इस जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या खनन पट्टों पर केंद्र द्वारा एकत्र रॉयल्टी को कर माना जा सकता है। सात-सदस्यीय संविधान पीठ ने 1989 में रॉयल्टी को कर माना था।

भाषा सुरेश रंजन

रंजन

 

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