जातीय समूहों का दांव..आ गया चुनाव! क्या टिकट के लिए मोहरा बन रहे जातीय संगठन?

जातीय समूहों का दांव..आ गया चुनाव! क्या टिकट के लिए मोहरा बन रहे जातीय संगठन? Are ethnic organizations becoming pawns for tickets?

जातीय समूहों का दांव..आ गया चुनाव! क्या टिकट के लिए मोहरा बन रहे जातीय संगठन?
Modified Date: April 4, 2023 / 10:35 pm IST
Published Date: April 4, 2023 10:28 pm IST

भोपाल। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा है, वैसे-वैसे ही सत्ता में हिस्सेदारी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा तीव्र होने लगी है। खासकर जातीय सामाजिक संगठनों ने सियासी दलों पर रणनीतिक दबाव बनाना शुरू कर दिया है। अलग-अलग जातीय संगठन राजधानी भोपाल में भीड़ जुटाकर टिकट देने का दबाव बना रहे हैं। सवाल है कि वाकई सामाजिक संगठन प्रेशर पॉलिटिक्स कर रहे हैं, क्या टिकट के लिए मोहरा बन रहे जातीय संगठन और क्या सियासी दलों पर होगा प्रेशर पॉलिटिक्स का असर।

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सत्ता में हिस्सेदारी का सपना संजोने वाले सामाजिक संगठनों की महत्वकांक्षाएं चुनावी साल में हिलौरे मारने लगी हैं। इस साल की शुरूआत से अब तक दर्जनभर से ज्यादा सामाजिक और जातीय संगठन राजधानी भोपाल में शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। 7 जनवरी को जंबूरी मैदान में करणी सेना का तीन दिवसीय आंदोलन हुआ। इसके बाद 10 फरवरी को आदिवासी सुरक्षा मंच ने 80 हजार आदिवासियों के साथ डी-लिस्टिंग रैली निकाली।

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इसके अगले ही दिन 11 फरवरी को गोविंदपुरा दशहरा मैदान में भीम आर्मी और पिछड़ा वर्ग कीअधिकार रैली में प्रदेशभर से 10 हजार आदिवासी दलित शामिल हुए। हाल ही में 31 मार्च को संघ के बैनर तले सिंधु महासभा का महासम्मेलन हुआ, जिसमें 70 देशों से सिंधी समाज के लोग आए और राजनीतिक संरक्षण की मांग की। इसी महीने 2 अप्रैल को साहू तैलिक समाज ने हुंकार सभा की और समाज के करीब 50 हजार लोगों ने शक्ति प्रदर्शन किया। अब 15 अप्रैल को यादव समाज की शक्ति प्रदर्शन की तैयारी है। कांग्रेस के बैनर तले यादव समाज सरपंच से लेकर विधायकों तक अपने तमाम जनप्रतिनिधियों का सम्मेलन करने की तैयारी में है।

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चुनावी समीकरण में जाति सत्ता पाने की अहम सीढ़ी है। यही वजह है कि जातीय और सामाजिक संगठनों के कार्यक्रमों में भाजपा और कांग्रेस के तमाम दिग्गज भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।

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जातिगत राजनीति वो बदनुमा दाग है, जो हर दल के दामन में करीने से सजाया गया है। इसे सियासी दलों की मजबूरी कहें या चुनावी हथकंडा। लेकिन जाति को साधे बिना चुनाव में जीत बेहद मुश्किल है। इस समीकरण को जातीय संगठन भी समझतें हैं, यही वजह है कि प्रेशर पॉलिटिक्स के जरिए टिकट पाने की ट्रिक्स आजमाई जा रही है।

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