भोपाल: प्रदेश में कई जगहों से खाद की किल्लत के बाद किसानों की गुस्से और आंदोलन की तस्वीरों ने प्रदेश का सियासी पारा भी चढ़ा दिया। विपक्ष ने किसानों की हालात के लिए पूरी तरह से सरकार को जिम्मेदार बताते हुए। सरकार के संरक्षण में कालाबाजारी होने का आरोप लगाया है। हालांकि सत्तापक्ष का दावा है कि सरकार खाद की कृत्रिम कमी पैदा करने वाले लोगों पर रासुका के तहत कार्रवाई करेगी क्योंकि प्रदेश के पास पर्याप्त खाद है। बड़ा सवाल ये कि अगर प्रदेश में खाद का पर्याप्त स्टॉक है तो फिर ये कमी क्यों हैं? ये कतारें और ये संकट किस वजह से है…कौन इसके लिए जम्मेदार है?
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मध्यप्रदेश के कई क्षेत्रों में खाद की कमी का भारी संकट खड़ा हो गया है। रबी फसलों की बुआई का समय आ गया है और किसानों के पास खाद नहीं है। हालांकि ये पहली बार नहीं है जब बुआई से पहले खाद अचानक मार्केट से गायब हो गई हो। खाद की कालाबाजारी की शिकायत कोई नई बात नहीं है, प्रदेश में खाद की किल्लत को लेकर प्रदेश की ये तीन तस्वीरें बयान करती है कि खाद का संकट सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बना हुआ है। खाद की कालाबाजारी की शिकायतों के बाद अब सरकार ने ऐसे लोगों पर रासुका के तहत कार्रवाई करने का फैसला किया है। हालांकि सरकार बार बार किसानो से अपील कर रही है कि खाद को लेकर घबराने की जरूरत नहीं है प्रदेश के पास पर्याप्त खाद है।
प्रदेश में कई जिलों में खाद की किल्लत है, सबसे ज्यादा ग्वालियर-चंबल अंचल में खाद की लगातार कालाबाजारी की शिकायतें मिल रही है। भिंड के गोरमी में पुलिस ने व्यापारी संजय जैन के खाद के गोदाम पर छापा मारकर डीएपी की 130 बोरियां जब्त की है। पुलिस को सूचना मिली थी कि व्यापारी 1200 रुपए की जगह 1500 रुपए बोरी की दर से खाद बेच रहा था। वहीं मुरैना में खाद खरीदने आए किसानों पर पुलिस ने दौड़ा-दौड़ा कर पीटा। खाद लेने आए किसानों को जब खाद खत्म होने का पता चला तो उन्होंने हंगामा शुरु कर दिया। जिसके बाद किसानों की जमकर नोंक-झोंक हुई। खाद को लेकर किसानों के विरोध और आक्रोश का सामना सरकार के मंत्रियों को भी करना पड़ रहा है। भिंड जिले में खाद की कमी पर किसान जब राज्य मंत्री ओपीएस भदौरिया से अपनी गुहार लगाने पहुंचे तो मंत्री जी भड़क गए।
किसानों को डीएपी और यूरिया नसीब नहीं हो रहा। आरोप कालाबाजारी के भी लग रहे हैं. साथ ही जिला प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। वहीं विपक्ष खाद की कमी के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहा है। कुल मिलाकर खाद न मिल पाने के कारण किसान परेशान हैं। उनकी पूरी फसल दांव पर लगी है। अगर समय रहते उन्हें खाद नहीं मिला तो उनका परिवार भूखों मर जाएगा। किसानों की इस मजबूरी का फायदा अब मुनाफाखोर भी उठा रहे हैं, लेकिन हैरानी इस बात से है कि खुद को किसानों की हितैषी बताने वाली सरकारें आखिर इस बुनियादी समस्या का हल क्यों नहीं खोज पाती है?
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