ओवेश अहमद शेख, बड़वानी: Barwani Jeevshala बड़वानी आदिवासी बहुल बड़वानी जिले के ग्रामीण इलाके समय के साथ चलने में असफल रहे हैं। ये गाँव दूर-दराज के इलाकों में बसे हैं। यहां तक आने के लिए किसी तरह का कोई साधन नहीं है। गाँव में पक्की सड़कें नहीं हैं और बिजली भी अधिकतर गुल ही रहती है। ऐसा ही एक गाँव है खारया भादल जो जिला मुख्यालय से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर है। भील, बारेला आदिवासियों के कई बच्चे स्लेट पर कुछ लिखने में व्यस्त है। सामने बैठा शिक्षक उनके लिखने के तरीके पर नजर गड़ाए हुए हैं।
दरअसल यह सरदार सरोवर बांध से प्रभावित आदिवासी परिवारों के बच्चों के लिए स्थापित एक स्थानीय स्कूल जीवन शाला है जहां उन्हें पढ़ाया जा रहा है। बच्चे भी पूरी तन्मयता के साथ अपनी पढ़ाई में व्यस्त है और यहां मिल रही शिक्षा का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। जीवनशाला के शिक्षक निर्भय सिंह सस्ते ने बताया कि यहां पढ़ने आने वाले ज्यादातर बच्चों के माता-पिता प्रवासी मजदूर है। जब उनके बच्चे हिंदी मराठी में लिखते या बोलते हैं, तो उन्हें काफी गर्व महसूस होता है। हम इन बच्चों को यहां प्राइमरी शिक्षा मुहैया कराते हैं।
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2004 में इस जीवनशाला की स्थापना नर्मदा बचाओ आंदोलन और गांव के लोगों ने मिलकर की थी। इस जीवनशाला में आसपास के 8 से 10 गांव के करीब 112 बच्चें पढ़ते है,जिनके पढ़ने लिखने से लेकर रहने खाने पीने तक कि जिम्मेदारी जीवनशाला की रहती है,यहाँ कक्षा नर्सरी से कक्षा 5 वीं तक बच्चों को पढ़ाया जाता है। मध्यप्रदेश में दो और महाराष्ट्र के नंदुरबार में ऐसी चार जीवनशालाएं हैं। ये संस्थान एक तरह से प्राइमरी स्कूल की जिम्मेदारी निभाने का काम कर रहे हैं।
Barwani Jeevshala सरकारी स्कूलों में टीचर नहीं आते इतनी दूर और पढ़ाई भी नहीं हो पाती बच्चों की इसलिए बच्चें यहीं पढ़ने आते है। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ता राहुल यादव ने बताया कि इन सभी जीवनशालाओं के प्रबंधन और फंड की जिम्मेदारी नर्मदा नव निर्माण अभियान की तरफ से उठाई जा रही है। यह मुबंई स्थित एक ट्रस्ट है, जो गुजरात में सरदार सरोवर बांध के निर्माण से विस्थापित समुदायों के पुनर्वास और सहायता के लिए काम करता है।
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