दिव्यांग लोगों के लिए बने कानूनों को 'भावना के अनुरूप' लागू किया जाना चाहिए : बंबई उच्च न्यायालय |

दिव्यांग लोगों के लिए बने कानूनों को ‘भावना के अनुरूप’ लागू किया जाना चाहिए : बंबई उच्च न्यायालय

दिव्यांग लोगों के लिए बने कानूनों को 'भावना के अनुरूप' लागू किया जाना चाहिए : बंबई उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  February 28, 2024 / 08:37 PM IST, Published Date : February 28, 2024/8:37 pm IST

मुंबई, 28 फरवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि दिव्यांग व्यक्तियों के लिए बने कानून केवल कानून की किताब में ही नहीं रहने चाहिए बल्कि सभी प्राधिकारियों को इन कानूनों को संवेदनशीलता के साथ लागू करना चाहिए।

न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एम एम सथाये की खंडपीठ ने रेलवे में सहायक के पद पर चयनित 31 वर्षीय दृष्टिबाधित महिला की उम्मीदवारी रद्द करने के फैसले को मंगलवार को खारिज कर दिया। पीठ ने रेलवे भर्ती प्रकोष्ठ को छह सप्ताह के भीतर महिला की उम्मीदवारी के संबंध में प्रकिया शुरू करने का निर्देश दिया।

पीठ ने कहा कि यह मामला दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक उदासीनता दिव्यांग व्यक्तियों की मदद के लिए बनाए गए ‘‘दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016’’ के प्रावधानों को विफल कर सकती हैं।

अदालत शांता सोनावणे नामक एक दिव्यांग महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रेलवे में सहायक के रूप में उनकी उम्मीदवारी रद्द करने को चुनौती दी गई थी। सोनावणे की उम्मीदवारी उनके जन्म वर्ष के बारे में फॉर्म में त्रुटि होने के कारण खारिज कर दी गई थी।

पीठ ने कहा कि अगस्त 2023 में जब याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार की गयी थी, अदालत ने रेलवे को सोनावणे की याचिका का अंतिम निपटारा होने तक सहायक का एक पद खाली रखने और अधिकारियों को उसके मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया था।

हालांकि, अधिकारियों ने कहा कि सोनावणे के फॉर्म में त्रुटि के कारण उनकी उम्मीदवारी स्वीकार नहीं की जा सकी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों (रेलवे) द्वारा अपनाया गया कठोर रुख अनावश्यक रूप से दमनकारी और कठोर है तथा दिव्यांगता अधिनियम के उद्देश्य को नाकाम करता है।

सोनावणे ने अपनी याचिका में कहा कि दृष्टिबाधित होने के कारण उन्होंने फॉर्म भरते समय एक इंटरनेट कैफे में एक अजनबी की मदद मांगी थी। उन्होंने कहा कि उस व्यक्ति ने अनजाने में यह गलती की।

बंबई उच्च न्यायालय ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा, ‘‘ दिव्यांग लोगों के लिए बने कानून केवल कानून की किताब में ही नहीं रहने चाहिए, बल्कि इस कानून के पीछे की भावना को सभी अधिकारियों द्वारा उचित संवेदनशीलता और लचीलापन दिखाते हुए इसे व्यावहारिक रूप से लागू किया जाना चाहिए। ’’

भाषा रवि कांत अविनाश

अविनाश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)