प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों को कभी याद नहीं रखा गया: समीक्षा | Indian soldiers killed in World War I never remembered: Review

प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों को कभी याद नहीं रखा गया: समीक्षा

प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों को कभी याद नहीं रखा गया: समीक्षा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:14 PM IST, Published Date : April 22, 2021/3:41 pm IST

लंदन, 22 अप्रैल (भाषा) एक नयी समीक्षा में सामने आया है कि पूर्वाग्रह,पक्षपात और व्यापक नस्लवाद के कारण प्रथम विश्व युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की तरफ से लड़ने और शहीद होने वाले भारतीय सैनिकों को उस तरह से याद नहीं रखा गया जैसा कि अन्य शहीदों को।

‘राष्ट्रमंडल युद्ध कब्रग्रह आयोग’ (सीब्ल्यूसीसी) दोनों विश्व युद्धों में मारे गए 17 लाख सैनिकों की याद में बनाया गया है उसने 2019 में एक विशेष समिति बना कर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान और बाद में मारे गए सैनिकों के बीच संभावित भेदभाव की जांच की।

इसने पाया कि भारतीय, पूर्व अफ्रीका,पश्चिम अफ्रीका, मिस्र और सोमालिया के मारे गए 45,000-54,000 सैनिकों के सम्मान में भेदभाव बरता गया।

समीक्षा में पाया गया कि इनके अलावा मारे गए 116,000 सैनिकों में से कम से कम 350,000 सैनिकों को नाम के साथ श्रद्धांजलि नहीं दी गई या उन्हें कभी श्रद्धांजलि दी ही नहीं गई।

ब्रिटेन के रक्षा मंत्री बेन वॉल्स ने इस समीक्षा के संबंध में हाउस ऑफ कॉमन्स में सरकार की तरफ से माफी मांगी है।

मंत्री ने सांसदों से कहा,‘‘ इसमें कोई शंका नहीं है कि आयोग के कुछ फैसलों में कुछ पूर्वाग्रह था।’’

उन्होंने कहा,‘‘ राष्ट्रमंडल युद्ध कब्र आयोग और तत्कालीन तथा वर्तमान सरकार दोनों की तरफ से मैं माफी मांगता हूं और दुख व्यक्त करता हूं कि स्थिति को सुधारने में इतना वक्त लग गया। हम अतीत को नहीं बदल सकते, हम सुधार कर सकते हैं और कार्रवाई कर सकते हैं।’’

समीक्षा समीति के सदस्य एस बासू ने बताया कि शोध के दौरान जो सबसे स्तब्ध कर देने वाला तथ्य सामने आया वह यह है कि 50,000 भारतीय सैनिकों को मेसोपोटामिया, फिलिस्तीन और मिस्र में कभी सम्मानित ही नहीं किया गया।

बासू ने कहा कि भारतीय सेना के एक जनरल ने तत्कालीन इंपीरियल वार ग्रेव कमीशन (आईडब्ल्यूजीसी) को ‘‘बड़ी बेपरवाही ’’ से बताया था कि हिंदू और मुस्लिम सैनिक अपनी कब्रों पर नाम लिखने को ज्यादा तवज्जो नहीं देते हैं इसलिए उनका जिक्र स्मारक टैब्लेट्स में किया जा सकता है।

बासु कहते हैं,‘‘ अपने शोध से मुझे मालूम है कि इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है। वे चाहते थे कि उन्हें याद रखा जाए।’’

भाषा शोभना माधव

माधव

 

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