मंगल पर रोवर उतराने के बाद अब भेजा जाएगा ड्रोन, जानिए क्या है नासा की तैयारी | NASA plans to send drones now after rover landed on Mars

मंगल पर रोवर उतराने के बाद अब भेजा जाएगा ड्रोन, जानिए क्या है नासा की तैयारी

मंगल पर रोवर उतराने के बाद अब भेजा जाएगा ड्रोन, जानिए क्या है नासा की तैयारी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:32 PM IST, Published Date : February 19, 2021/11:02 am IST

नई दिल्ली, 19 फरवरी (भाषा) मंगल की सतह पर रोवर ‘पर्सवियरन्स’ के शुक्रवार को सफलतापूर्वक उतरने के बाद अब नासा किसी अन्य ग्रह के वायुमंडल में ड्रोन उड़ाने वाली विश्व की पहली अंतरिक्ष एजेंसी बनने जा रहा है। नासा का यह कदम भविष्य के ऐसे अन्वेषण अभियानों का मार्ग प्रशस्त करेगा जिनमें नयी हवाई निगरानी पद्धति शामिल होगी।

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नासा ने कहा है कि रोवर मंगल पर जेजेरो क्रेटर (महाखड्ड) के आसपास अतीत में मौजूद रहे जीवन के साक्ष्य तलाशने में जुट गया है, वहीं अब से 31 वें दिन ‘इंगेनुइटी’ हेलिकॉप्टर (ड्रोन) की संभावित उड़ान एक महत्वपूर्ण परीक्षण साबित होने वाला है। इस ड्रोन का वजन करीब 1.8 किग्रा है और यह 0.49 मीटर लंबा है। इसमें दो पंख (ब्लेड) लगे हैं। कैलिफोर्निया स्थित नासा के जेट प्रोपल्सन लैबोरेटरी (जेपीएल) के सीनियर रिसर्च वैज्ञानिक गौतम चटोपाध्याय ने पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘यह ड्रोन एक प्रौद्योगिकी प्रस्तुति है, इसका यह मतलब है कि हम एक नयी प्रौद्योगिकी को प्रदर्शित करने जा रहे हैं और ऐसा कर कोई वैज्ञानिक डेटा एकत्र करने नहीं जा रहे हैं।’’

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इस ड्रोन के अपने अभियान के तहत पांच उड़ान भरने की उम्मीद है, जो एक बार में करीब 90 सेकेंड की होगी। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि भविष्य में अन्य ग्रहों पर अन्वेषण अभियानों में ड्रोन के इस्तेमाल के लिए इससे मार्ग प्रशस्त होगा। नासा के वैज्ञानिक ने कहा, ‘‘अब, यदि हमारे पास एक हेलिकाप्टर या इस तरह की उड़ने वाली कोई चीज हो, जो वहां जा सके, कुछ निगरानी कर सके, डेटा एकत्र कर रोवर को भेज सके तथा फिर रोवर यह फैसला करे कि क्या उस डेटा के आधार पर और कुछ क्षेत्रों में और अधिक अन्वेषण करने की जरूरत है, यह कहीं अधिक दिलचस्प होगा।’’

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हालांकि, जेपीएल के जे. (बॉब) बलराम सहित नासा के इंजीनियरों ने कहा है कि अपने संचालन में पूरी आजादी रखने वाले एक ड्रोन को मंगल के वायुमंडल में उड़ाने में कई नयी चुनौतियां हैं, जिनका यहां पृथ्वी पर सामना नहीं करना पड़ता है। बलराम और उनके सहकर्मियों ने एक अध्ययन में इन चुनौतियों के बारे में विस्तार से बताया है, जिसे एयरोस्पेस रिसर्च सेंट्रल वेबसाइट पर पोस्ट किया गया है।

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‘अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स ऐंड एस्ट्रोनॉटिक्स साइंस टेक 2019 फोरम’ में पेश किये गये अध्ययन में इस बात का जिक्र किया गया कि लाल ग्रह (मंगल) का पतला कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल पृथ्वी के वायुमंडल के घनत्व का मात्र एक प्रतिशत है जो धरती से 35 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी के वायु घनत्व के बराबर है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन ऐंड रिसर्च (आईआईएसईआर) कोलकाता के खगोलविद भौतिकविद दिव्येंदु नंदी ने कहा, ‘‘चूंकि यह (मंगल का) बहुत ही कम घनत्व वाला वायुमंडल है, हम मंगल पर बहुत ऊंचाई पर कोई चीज नहीं उड़ा सकते हैं। ’’ वैज्ञानिकों का मानना है कि इंगेनुइटी प्रौद्योगिकी दूसरे ग्रहों पर भविष्य में ड्रोन अभियानों के द्वार खोल सकती है।