एक ही धर्म के जोड़े की शादी के संबंध में ‘पर्सनल’ कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहींः मंत्रालय | Notice period of 30 days appropriate under Special Marriage Act: Centre

एक ही धर्म के जोड़े की शादी के संबंध में ‘पर्सनल’ कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहींः मंत्रालय

एक ही धर्म के जोड़े की शादी के संबंध में ‘पर्सनल’ कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहींः मंत्रालय

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:52 PM IST, Published Date : February 9, 2021/3:10 pm IST

नयी दिल्ली: केंद्र ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा है कि विशेष विवाह कानून के तहत शादी के लिए 30 दिन का नोटिस देने समेत कई प्रक्रिया और शर्तें ‘उचित और तार्किक’ हैं और यह संविधान के अनुरूप हैं। विधि और न्याय मंत्रालय ने मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ के समक्ष दाखिल एक हलफनामे में यह दलील दी है।

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एक अंतर धार्मिक दंपति ने विशेष विवाह कानून के तहत शादी पर आपत्तियां दर्ज करने के लिए सार्वजनिक नोटिस जारी करने के प्रावधान को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की है। उसी के जवाब में यह हलफनामा दाखिल किया गया। मंत्रालय ने अपने जवाब में कहा है कि कानून के पीछे की मंशा इससे जुड़े विभिन्न पक्षों के हितों का संरक्षण करना है।

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मंत्रालय ने दावा किया, ‘‘अगर कोई व्यक्ति 30 दिनों के भीतर (विशेष विवाह कानून के तहत) ऐसी शादी पर आपत्ति जताता है तो अधिकारी मामले में आपत्ति की पड़ताल किए बिना शादी नहीं होने देते। कानून की धारा सात के तहत अगर शादी के पहले 30 दिन का समय ना दिया जाए तो व्यक्ति की विश्वसनीयता की पुष्टि कर पाना संभव नहीं हो सकता।’’

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मंत्रालय ने आगे दावा किया कि विवाह के पंजीकरण के लिए इस कानून में निर्धारित प्रकिया वाजिब और तार्किक हैं। अंतरधार्मिक दंपति की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह ने दलील दी कि 30 दिनों की नोटिस अवधि जोड़े को शादी से हतोत्साहित करने जैसा है। उन्होंने कहा कि एक ही धर्म के जोड़े की शादी के संबंध में ‘पर्सनल’ कानून के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

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दंपति ने अपनी याचिका में विशेष विवाह कानून के कई प्रावधानों को चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि आपत्ति दर्ज कराने के लिए 30 दिन का समय देना याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों का सरासर उल्लंघन है। इस पर, मंत्रालय ने दलील दी है कि मौलिक अधिकार शर्तों के अधीन है और उन पर वाजिब पाबंदी लगायी जा सकती है। याचिका में कानून के उस प्रावधान को अवैध, अमान्य करार देने का अनुरोध किया गया है जिसमें आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए 30 दिन का नोटिस देने का प्रावधान है।

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