नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा) ओलंपिक पदक के लिए भारत के सबसे मजबूत दावेदारों में से एक माने जाने वाले भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ने रविवार को कहा कि इन खेलों से पहले अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं की कमी के कारण उनकी तैयारी काफी चुनौतीपूर्ण रही है लेकिन वह इस बड़े आयोजन के लिए सकारात्मक रहने की कोशिश कर रहे हैं।
चोपड़ा ने कहा कि 23 जुलाई को शुरू होने वाले खेलों से पहले एक अवसर (प्रतियोगिता) को छोड़कर, उन्हें विश्व स्तरीय प्रतिस्पर्धा की ‘स्वाभाविक भावना’ की कमी खल रही है।
उन्होंने जिस एक प्रतियोगिता का जिक्र किया वह 26 जून को फिनलैंड में कुओर्टेन खेलों का आयोजन था। चोपड़ा ने इसमें 86.79 मीटर के प्रदर्शन के साथ कांस्य पदक जीता था। इस प्रतियोगिता में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतने के दावेदार जर्मनी के जोहान्स वेटर ने 93.59 मीटर की दूरी के साथ स्वर्ण जीता था।
चोपड़ा ने स्वीडन के उपसाला में अपने प्रशिक्षण केंद्र से ऑनलाइन बातचीत के कहा, ‘‘ फिनलैंड में मुझे एक नया अनुभव हुआ। ओलंपिक की तैयारियों के दौरान मैंने एक शीर्ष-स्तरीय प्रतियोगिता का वास्तविक अनुभव किया। आप में इस तरह की नैसर्गिक प्रदर्शन की भावना तभी आती है जब आप बहुत सारे विश्व स्तरीय आयोजनों में भाग लेते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ मेरे लिए, वह एकमात्र अवसर था।’’
कोविड-19 महामारी के कारण लागू प्रतिबंधों के कारण मिली चुनौतियों के बारे में चोपड़ा ने कहा कि उनकी कोशिश सकारात्मक सोच बनाये रखने की है।
उन्होंने कहा, ‘‘ जब मैं चाहता था तब मुझे अच्छी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं नहीं मिलीं। मुझे अभ्यास और प्रतियोगिता कार्यक्रम में कई बदलाव करने पड़े। लेकिन, मेरी सोच सकारात्मक है क्योंकि इस खेल में बहुत कुछ उस दिन विशेष के प्रदर्शन पर निर्भर करता है। मैं बस अपना सर्वश्रेष्ठ देने और देश के लिए स्वर्ण जीतने के अपने सपने को साकार करने की उम्मीद कर रहा हूं।’’
वीजा समस्या के कारण वह ब्रिटेन के गेट्सहेड में होने वाले डायमंड लीग में भाग नहीं ले पायेंगे। वह 26 जुलाई को तोक्यो रवाना होने से पहले अब किसी और प्रतियोगिता में भाग नहीं लेंगे।
उन्होंने कहा कि वह अपनी तकनीक में सुधार पर ध्यान दे रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘ फिनलैंड में मेरा प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ नहीं था। कुछ तकनीकी मुद्दे है, भाला की ऊंचाई एक मुद्दा था। मेरा भाला उस दिन कार्यक्रम स्थल पर नहीं पहुंच सका । मुझे दूसरा भाला इस्तेमाल करना पड़ा। एशियाई खेलों और राष्ट्रमंडल खेलों में मैंने स्वर्ण पदक जीता था लेकिन वहां भी भाले को अधिक ऊंचाई से फेंक रहा था। मैं भाले की लंबाई कम करने पर काम कर रहा हूं ताकि वह ज्यादा दूरी तय कर सके।’’
भाषा आनन्द पंत
पंत
आनन्द
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