बैलेंस का चक्कर...छूट रहा पसीना! आखिर संगठन को तालमेल बिठाने में क्यों हो रही है मुश्किल? | Balance affair… sweating out! After all, why is it difficult to keep pace with the organization?

बैलेंस का चक्कर…छूट रहा पसीना! आखिर संगठन को तालमेल बिठाने में क्यों हो रही है मुश्किल?

बैलेंस का चक्कर...छूट रहा पसीना! आखिर संगठन को तालमेल बिठाने में क्यों हो रही है मुश्किल?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:24 PM IST, Published Date : February 11, 2021/5:26 pm IST

रायपुरः प्रदेश में करीब तीन साल बाद विधानसभा चुनाव की जंग लड़ी जानी है, जिसकी कवायद में बीजेपी और कांग्रेस संगठन अभी जुट गई है। संगठन को विस्तार देने का काम जारी है, लेकिन इसे लेकर दोनों ही दलों में खींचतान और घमासान मचा है। यही वजह है कि हाईकमान को भी नेताओं को एडजेस्ट करने में पसीना छूट रहा है। दोनों ही सियासी पार्टियों के थिंक टैंकर अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर चुनाव से पहले संगठन में बैलेंस नहीं बना, तो पार्टी को उसका नुकसान चुनाव में उठाना पड़ेगा। यही वजह है कि दोनों दल एक एक कदम फूंक-फूंक कर रख रहे हैं। ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर संगठन को तालमेल बिठाने में क्यों हो रही है मुश्किल?

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अपनों को साधने में कितनी मश्क्कत करनी पड़ती है। ये दलों की मौजूदा स्थिति से साफ है। लंबी जद्दोजहद और दर्जनों मीटिंग के बाद घोषित भारतीय जनता युवा मोर्चा प्रदेश कार्यकारिणी और जिला अध्यक्षों की नियुक्ति में विवाद बढ़ता जा रहा है। कार्यकारिणी में जगह पाने से चूके कार्यकर्ताओं का सीधा आरोप है कि 35 साल से अधिक उम्र वाले दर्जनभर से अधिक को युवा मोर्चा कार्यकारिणी में जगह दी गई है, जिला अध्यक्ष बनाया गया जो कि पहले से तय नियम और क्राइटेरिया का खुला उल्लंघन है। असंतुष्ट युवा नेताओं ने आलाकमान से शिकायत की है कि कार्यकारिणी में 35 से अधिक उम्र वाले पूर्व सांसद के भतीजे ,पूर्व मंत्री के खास और भाजपा नेता के बेटे को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई है। जिलाध्यक्ष के एक दावेदार ने तो प्रदेश कार्यकारिणी में जगह ना मिलने से व्यथित होकर ऑफिशियल वॉट्स एप्प ग्रुम में आत्मदाह की धमकी तक दी है। मुद्दे पर भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष अमित साहू कुछ भी बोलने को तैयार नहीं जबकि पार्टी के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुताबिक वरिष्ठ नेताओं निर्णय सबको स्वीकार्य होता है।

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इधर,कांग्रेस में भी असंतोष कम नहीं है। निगम-मंडल,बोर्ड में नियुक्तियों का इंतजार कर रहे नेताओं का इंतजार बढ़ता जा रहा है। बल्कि दावदारों को साधने के लिए निगम-मंडल से पहेल प्राधिकरणों की सूची जारी कर दी गई, वहां ही ज्यादा से ज्यादा नेताओँ को एडजस्ट करने के लिए पदाधिकारियों की संख्या बढ़ा दी गई है। अध्यक्ष,उपाध्यक्ष,महामंत्री ,विशेष आमंत्रित,स्थाई सदस्यों हर श्रेणी में नियुक्ति की संख्या बढ़ाकर सबको साधने का प्रयास किया है। हालांकि, प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया ने पहले ही ये कहकर संकेत दे दिया है कि निगम मंडल में जगह केवल उन्हीं नेताओं को मिलेगी जिन्हें विधानसभा की टिकट नहीं मिला या फिर जिन्होंने 15 साल तक कांग्रेस के लिए जमीन पर लड़ाई लड़ी, पार्टी को उम्मीद है इस टीम के जरिए 2023 फतह हो सकेगी। तो वहीं भाजपा ने तंज कसते हुए कहा कि गुटबाजी चरम पर है इसलिए पदों की रेवड़ी बांटी जा रही है।

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कुल मिलाकर दोनों तरफ कवायद का मदसद साफ है। 2023 के लिए सबको साधकर रखना, कांग्रेस हो या भाजपा अगर अपनों को ना साधा तो नफे से ज्यादा नुक्सान हो सकता है। लेकिन इस कवायद में उपजे असंतोष को दूर कर सबको साथ रखने में कौन सा दल ज्यादा कामयाब होता है ये देखा दिलचस्प रहेगा।

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