आकांक्षा बनाम आशंका | Blog by saurabh tiwari on Citizenship amendment bill

आकांक्षा बनाम आशंका

आकांक्षा बनाम आशंका

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:56 PM IST, Published Date : December 12, 2019/12:26 pm IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान इस वादे के साथ दोबारा प्रधानसेवकी मांगी थी कि उनका ये कार्यकाल तो ‘आवश्यकताओं’ की पूर्ति का रहा है, लेकिन दूसरा कार्यकाल ‘आकांक्षाओं’ की पूर्ति का रहेगा। मोदी अपने वादे पर खरे उतरे हैं। नागरिकता संशोधन बिल के संसद से पारित हो जाने के बाद भाजपा के कोर वोटरों की एक और आकांक्षा पूरी हो गई। मोदी समर्थकों के खाते में 15 लाख की एक और किश्त आ गई है।

विपक्ष का आरोप है कि भाजपा नागरिक संशोधन बिल के जरिए अपना राजनीतिक एजेंडा लागू करना चाहती है। भाजपा को इससे इंकार भी कहां है? आखिर मतदाताओं ने भाजपा को इतना इफरात बहुमत उसके घोषणा पत्र को लागू करने के लिए ही तो दिया है। विपक्ष नागरिकता संशोधन विधेयक को असंवैधानिक बता रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि घोषणा पत्र में किया गया कोई वादा विधेयक के रूप में संविधान में उल्लिखित विधायी प्रक्रिया का पालन करते हुए दोनों सदनों में बहस के बाद पूर्ण बहुमत से पारित कराना असंवैधानिक कैसे हो गया? विपक्ष की असंवैधानिकता की परिभाषा के लिहाज से तब तो उसे भाजपा द्वारा पारित करवाए जा रहे विधेयकों की बजाए उसके घोषणा पत्र को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहिए। ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी। सनद रहे कि समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून और एनआरसी जैसे मुद्दे भी घोषणा पत्र से निकल कर संसद में आने के लिए छटपटा रहे हैं।

यहीं से ये सवाल भी उठता है कि क्या पूर्ण बहुमत मिल जाने से किसी दल को अपना एजेंडा लागू करने का अधिकार मिल जाता है? इस अधिकार को ही विपक्ष मोदी-शाह की तानाशाही के रूप में परिभाषित करता है। बेशक विपक्ष को मोदी-शाह का रवैया तानाशाही भरा लगे, परन्तु देखा जाए तो वस्तुतः ये तानाशाही का लोकतांत्रिक स्वरूप है। घोषणा पत्र में अपने मतदाताओं से किए गए वादों को पूरा करना ना केवल उस पार्टी का कर्त्तव्य, बल्कि उसका अधिकार भी है। ये अधिकार दंभता ही शायद लोकतांत्रिक तानाशाही है। अगर ये तानाशाही भाजपा के मतदाताओं को रास आ रही है तो इसमें दीगर दलों को कोई आपत्ति होनी भी नहीं चाहिए। भाजपा समर्थक तो कहते भी हैं कि उन्होंने आलू,प्याज और टमाटर के लिए मोदी को थोड़ी ना चुना है, जिस काम के लिए चुना है,उसे वो पूरा कर रहे हैं।

विपक्ष का नागरिक संशोधन बिल को लेकर छाती पीटना लाजिमी है। आखिर भाजपा ने इस बिल के जरिए तगड़ा सियासी दांव जो चला है। दो तीर से एक निशाना। और निशाने पर है वोटबैंक। CAB का तीर चल चुका है, NRC का चलना बाकी है। NRC से ‘घुसपैठी’ वोटबैंक की बेदखली होगी तो CAB से ‘शरणार्थी’ वोट बैंक की इंट्री। नागरिक संशोधन बिल के विरोध और समर्थन के पीछे दरअसल वोटबैंक के इसी सियासी जोड़-घटाव की कहानी छिपी है। बिल पारित होने के बाद हिंदू शरणार्थी कैंपों से आने वाली जश्न की तस्वीरों में समर्थकों की आकांक्षाएं तो पूर्वोत्तर से आने वाली प्रदर्शनों की तस्वीरों में विरोधियों की आशंकाएं समाहित हैं।

CAB से भाजपा को मिलने वाले वोटबैंकीय फायदे के चलते ही विपक्ष नागरिक संशोधन बिल को मुस्लिम विरोधी के तौर पर प्रचारित कर रहा है। लेकिन वो ये समझा नहीं पा रहा कि इस्लामिक देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक प्रताड़ना सहने वाले ‘वहां के अल्पसंख्यकों’ को उनके मूल वतन में वापसी का मौका देना ‘यहां के अल्पसंख्यकों’ के साथ अन्याय कैसे हो गया? ओवैसी और TMC जैसों का CAB के विरोध में उतरना उनके वोटबैंक की मजबूरी के लिहाज से तो फिर भी समझ में आता है, लेकिन कांग्रेस का विरोध में झंडा उठाना सियासी नादानी ही नजर आया है।

कांग्रेस एक बार फिर भाजपा के ध्रुवीकरण के फंदे से बनाए गए ट्रेप में फंस चुकी है। भाजपा ये मान्यता स्थापित करने में सफल रही है कि CAB का विरोध यानी हिंदुओं का विरोध। और CAB का विरोध करके कांग्रेस ने पिछले सालों में मेहनत से गढ़ी गई अपनी साफ्ट हिंदुत्व की छवि पर बट्टा लगा लिया है। कांग्रेस ने CAB को धर्म आधारित नागरिकता देने वाला बिल बताकर अंजाने में खुद को ही कटघरे में खड़ा कर लिया है। टू नेशन थ्योरी के लिए सावरकर को जिम्मेदार ठहराने वाली कांग्रेस से संसद में गृहमंत्री अमित शाह की ओर से पूछा गया ये सवाल लोगों को तार्किक लगा है कि – ‘ठीक है कि सावरकर ने धर्म आधारित टू नेशन थ्योरी दी, लेकिन कांग्रेस ने इसे कबूल किया क्यों?’ ये सवाल गोविंदा के बनियान वाले उस विज्ञापन की याद दिलाता है – ‘ठीक है मैंने धक्का दिया, लेकिन तूने लिया क्यूं?’ सियासत में इस तरह के वन लाइनर सवालों का जवाब देने में हजारों लाइनें भी नाकाफी साबित होती हैं।

कुल मिलाकर संसद से अनुच्छेद 370 के खात्मे और सुप्रीम कोर्ट से अयोध्या विवाद के निबटारे के बाद पैदा हुए ध्रवीकरण के वैक्यूम को भाजपा ने नागरिकता संशोधन बिल से मचे बवंडर से भर लिया है। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी, महंगाई जैसे जनसरोकार के बुनियादी मुद्दों को छोड़कर विपक्ष अगर भाजपा के अनुकूल मुद्दों पर उलझा है तो इसके लिए भाजपा नहीं बल्कि वो खुद जिम्मेदार है। अब विपक्ष को कौन समझाए- इसमें तेरा घाटा, भाजपा का कुछ नहीं जाता।

वैसे महंगाई से याद आया- प्याज क्या रेट चल रहा है?

सौरभ तिवारी

असिस्टेंट एडिटर, IBC24

 
Flowers