रायपुर। प्रदेश में संविलियन की बाट जो रहे शिक्षाकर्मियों का गुस्सा एक बार फिर सरकार पर फूटा है। शिक्षाकर्मी मोर्चा के प्रदेश संचालक संजय शर्मा और मीडिया प्रभारी विवेक दुबे ने बयान जारी कर राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाए हैं। शिक्षाकर्मियों की मानें तो सरकार चाहती ही नहीं कि शिक्षाकर्मियों का संविलियन हो।
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प्रदेश संचालक संजय शर्मा का कहना है कि 2007 में शिक्षाकर्मियों के मंच से स्वयं वर्तमान मुख्यमंत्री डॉक्टर रमन सिंह ने घोषणा की थी कि 20-20% कर प्रदेश के पूरे शिक्षाकर्मियों का संविलियन कर दिया जाएगा, अगर उन्होंने अपने वादे का पालन किया होता तो आज प्रदेश में शिक्षाकर्मी नामक कोई व्यवस्था ही नहीं रहती।
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शिक्षाकर्मियों का नाम तो बदला परंतु उनकी सुविधाओं में कोई परिवर्तन नहीं आया और आज भी वह समय-समय पर वेतन, भत्ता, अनुकंपा नियुक्ति, खुली स्थानांतरण नीति, महंगाई भत्ता जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए अधिकारियों के चक्कर लगाने को विवश है दिखावे के लिए नियम तो बनाए गए हैं पर साथ में इतनी सारी बंदिशें लागू की गई है की शिक्षाकर्मियों को इसका लाभ मिल ही नहीं पाता।
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मीडिया प्रभारी विवेक दुबे के मुताबिक संविलियन की घोषणा करने के बजाए यहां बीते 5 माह से कमेटी का खेल खेला जा रहा है, 3 महीने के लिए बनाई गई हाई पावर कमेटी 5 माह के बाद भी अपनी रिपोर्ट नहीं सौंप सकी है और डिजिटल इंडिया के दावे के बीच में अन्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था के अध्ययन के लिए सरकारी पैसे खर्च कर बकायदा टीम भेजी जा रही है जिससे समझा जा सकता है कि सरकार शिक्षाकर्मियों के मामले को लेकर कितनी गंभीर है। मध्यप्रदेश का हवाला देते हुए शिक्षाकर्मियों ने कहा है अगर राज्य का विभाजन नहीं होता है, तो आज हमें भी संविलियन की सौगात मिल चुकी होती।
वेब डेस्क, IBC24
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