रायपुर: छत्तीसगढ़ के मुखिया सीएम भूपेश बघेल ने भारतीय वन अधिनियम 1927 में केंद्र सरकार द्वारा संशोधन करने और आदिवासियों के अधिकार समाप्त करने की कोशिश पर टिप्पणी करते हुए केद्रीय वनमंत्री हर्षवर्धन सिंह को पत्र लिखकर भारतीय वन अधिनियम 1927 में प्रस्तावित संशोधन पर बदलाव करने की मांग की है। सीएम बघेल ने किए गए संशोधन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारतीय वन अधिनियम में बदलाव करते हुए आदिवासियों आदिवासियों के अधिकारों को शामिल करने की मांग की है। उन्होंने प्रस्तावित संसोधन को छत्तीसगढ़ के आदिवासियों की प्रथाओं के विपरीत बताते हुए वन अधिकार अधिनियम 2006 द्वारा मिले अधिकारों का भी उल्लंघन करना बताया है।
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बता दें कि बीते दिनों छत्तीसगढ़ किसान सभा ने भी केंद्र सरकार द्वारा किए इस बदलाव का जमकर विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि इससे भाजपा सरकार का आदिवासी विरोधी और कॉर्पोरेट परस्त चरित्र खुलकर सामने आ गया है। सभा ने छत्तीसगढ़ सरकार से इस वन कानून संशोधन को खारिज करने की मांग की थी। किसान सभा के महासचिव ऋषि गुप्ता ने कहा था कि यदि इन संशोधनों को स्वीकार कर लिया जाता है, तो इससे आदिवासी वनाधिकार कानून और पेसा कानून पूरी तरह से निष्प्रभावी हो जाएंगे, क्योंकि प्रस्तावित संशोधन अधिकारियों को वन क्षेत्र में रहने वाले लोगों को प्रताड़ित करने, उनकी सहमति के बिना उन्हें विस्थापित करने का अवसर देगा।
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गौरतलब है कि 13 फरवरी को न्यायमूर्ति मिश्रा, न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति इंदिरा बनजीर् की पीठ ने 16 राज्यों के करीब 11.8 लाख आदिवासियों के जमीन पर कब्जे के दावों को खारिज करते हुए राज्य सरकारों को आदेश दिया था कि वे अपने कानूनों के मुताबिक जमीनें खाली कराएं।
न्यायालय ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश जारी करके कहा था कि वे 24 जुलाई से पहले हलफनामा दायर करके बताएं कि उन्होंने तय समय में जमीनें खाली क्यों नहीं कराईं? राज्यों की ओर से दायर हलफनामों के अनुसार, वन अधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों द्वारा किए गए भूमि स्वामित्व के दावों को विभिन्न आधारों पर खारिज कर दिया गया है। इनमें वे लोग शामिल हैं, जो यह सबूत नहीं दे पाये कि कम से कम तीन पीढ़ियों से भूमि उनके कब्जे में थी।