लाहौर। हिंदुस्तान में जन्मीं पाकिस्तान की मशहूर शायरा और मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़हमीदा रियाज़ का लंबी बीमारी के बाद 21 नवंबर को लाहौर में निधन हो गया। उन्होंने एक दर्जन से ज्यादा किताबें लिखी हैं। उनका नाम साहित्य में एक ऊंचे दर्जे पर माना जाता है। उन्होंने अल्बानियन लेखक इस्माइल कादरी और सूफ़ी संत रूमी की कविताओं का उर्दू में अनुवाद भी किया था।
फ़हमीदा का जन्म 28 जुलाई 1945 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ था। चार साल की उम्र में ही उन्होंने पिता का साया खो दिया था। उनका पालन-पोषण उनकी मां ने किया। बचपन से ही उन्हें साहित्य में रुचि रही। फ़हमीदा ने कम उम्र में ही उर्दू, सिन्धी और फ़ारसी भाषाएं सीख लीं थीं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने रेडियो पाकिस्तान में बतौर न्यूज़कास्टर काम किया। शादी के बाद कुछ साल यूके में रहने के बाद वे तलाक़ के बाद पाकिस्तान लौट आईं। यहां उनकी दूसरी शादी ज़फ़र अली उजान से हुई।
फ़हमीदा ने अपना खुद का प्रकाशन ‘आवाज़’ के नाम से शुरू किया, लेकिन उदारवादी विचारों के कारण उसे बंद कर दिया गया और ज़फ़र को जेल भेज दिया गया। पाकिस्तान में जिया उल हक के शासनकाल में फ़हमीदा पर उनके राजनीतिक विचारों के कारण 10 से ज़्यादा केस चले। तब अमृता प्रीतम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से बात कर उनके लिए भारत में रहने की व्यवस्था करवाई थी।
पाकिस्तान लौटने से पहले फ़हमीदा और उनके परिवार ने लगभग 7 साल निर्वासन की स्थिति में भारत में बिताए। इस दौरान वे दिल्ली के जामिया विश्वविद्यालय में रहीं और यहां उन्होंने हिन्दी पढ़ना सीखा। 72 साल की शायरा की निधन की ख़बर से साहित्य जगत में शोक व्यापत है।
यह भी पढ़ें : आचार्य प्रमोद कृष्णम का बड़ा बयान- देश को अटल की बीजेपी नहीं, गुजरात का गैंग चला रहा है
संभवत: भारत में 7 साल रहने के दौरान ही फ़हमीदा ने अपनी मशहूर नज़्म लिखी, जिसका शीर्षक है तुम बिल्कुल हम जैसे निकले।
पढ़िए फहमीदा रियाज़ की मशहूर नज़्म
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
अब तक कहाँ छिपे थे भाई
वो मूरखता, वो घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुँची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई।
प्रेत धर्म का नाच रहा है
कायम हिंदू राज करोगे ?
सारे उल्टे काज करोगे !
अपना चमन ताराज़ करोगे !
तुम भी बैठे करोगे सोचा
पूरी है वैसी तैयारी
कौन है हिंदू, कौन नहीं है
तुम भी करोगे फ़तवे जारी
होगा कठिन वहाँ भी जीना
दाँतों आ जाएगा पसीना
जैसी तैसी कटा करेगी
वहाँ भी सब की साँस घुटेगी
माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्या हमने दुर्दशा बनाई
कुछ भी तुमको नजर न आई?
कल दुख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आई
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई।
मश्क करो तुम, आ जाएगा
उल्टे पाँव चलते जाना
ध्यान न मन में दूजा आए
बस पीछे ही नजर जमाना
भाड़ में जाए शिक्षा-विक्षा
अब जाहिलपन के गुन गाना।
आगे गड्ढा है यह मत देखो
लाओ वापस, गया ज़माना
एक जाप सा करते जाओ
बारम्बार यही दोहराओ
कैसा वीर महान था भारत
कैसा आलीशान था-भारत
फिर तुम लोग पहुँच जाओगे
बस परलोक पहुँच जाओगे
हम तो हैं पहले से वहाँ पर
तुम भी समय निकालते रहना
अब जिस नरक में जाओ वहाँ से
चिट्ठी-विठ्ठी डालते रहना।