राम-सीता विवाह और गीता के ज्ञान के लिए भी जाना जाता है कार्तिक-अगहन माह | Karthik-Aghan month special

राम-सीता विवाह और गीता के ज्ञान के लिए भी जाना जाता है कार्तिक-अगहन माह

राम-सीता विवाह और गीता के ज्ञान के लिए भी जाना जाता है कार्तिक-अगहन माह

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:05 PM IST, Published Date : November 18, 2020/7:30 am IST

रायपुर। देश के साथ छत्तीसगढ़ में भी कार्तिक-अगहन माह का काफी महत्‍व है। इस महीने में पूजा-पाठ, व्रत-त्योहार और मंदिरों में धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। कार्तिक महीने में भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। कार्तिक महीने में सूर्योदय से पहले शीतल जल का स्नान करना सबसे उत्तम है। कार्तिक माह में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करने से धरती के जितने तीर्थ स्थान है, उनका पुण्य मिलता है।

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कार्तिक माह में पूर्ण निष्ठा और भक्ति भाव से पूजा अर्चना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कार्तिक महीने में बड़े और मुख्य तीज-त्योहार पड़ते हैं। कार्तिक महीने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से हो जाती है। इसके बाद करवा चौथ, धनतेरस, रूप चौदस, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भैया दूज, देव उठनी एकादशी आदि पर्व मनाए जाते हैं। कार्तिक महीने का समापन गुरू नानक पूर्णिमा पर होता है। कार्तिक महीने में देवउठनी एकादशी के अवसर पर एक बार फिर शुभ एवं मांगलिक कार्यों की शुरुआत होगी। विवाह, शादी, गृह प्रवेश, मुहूर्त आदि का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा।

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क्या करें और क्या नहीं

शास्त्रों के मुताबिक इस महीने में मांस-मछली व मट्ठा का त्याग करना चाहिए। इसके साथ ही पूरे महीने संयम से रहना चाहिए। इसके अलावा व्रत-उपवास और नियम के साथ तप करना चाहिए। धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक मास में सबसे प्रमुख काम दीपदान करना बताया गया है। इस महीने में नदी, पोखर, तालाब आदि में दीपदान किया जाता है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। इस महीने में तुलसी पूजन करने तथा सेवन करने का विशेष महत्व बताया गया है।

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वैसे तो हर मास में तुलसी का सेवन व आराधना करना श्रेयस्कर होता है, लेकिन कार्तिक में तुलसी पूजा का महत्व कई गुना माना गया है। भूमि पर सोना कार्तिक मास का प्रमुख काम माना गया है। भूमि पर सोने से मन में सात्विकता का भाव आता है तथा अन्य विकार भी समाप्त हो जाते हैं। कार्तिक महीने में केवल एक बार नरक चतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) के दिन ही शरीर पर तेल लगाना चाहिए।

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कार्तिक मास में अन्य दिनों में तेल लगाना वर्जित है। द्विदलन निषेध कार्तिक महीने में द्विदलन अर्थात उड़द, मूंग, मसूर, चना, मटर, राई आदि नहीं खाना चाहिए।  ब्रह्मचर्य कार्तिक मास में ब्रह्मचर्य का पालन अति आवश्यक बताया गया है। इसका पालन नहीं करने पर पति-पत्नी को दोष लगता है और इसके अशुभ फल भी प्राप्त होते हैं। व्रती को चाहिए कि वह तपस्वियों के समान व्यवहार करें। अर्थात कम बोले, किसी की निंदा या विवाद न करे, मन पर संयम रखें आदि।

कार्तिक मास का महत्व
हिंदू पंचांग के 12 मास में कार्तिक भगवान विष्णु का मास है। इसमें नक्षत्र-ग्रह योग, तिथि पर्व का क्रम धन, यश-ऐश्वर्य, लाभ, उत्तम स्वास्थ्य देता है। प्राचीन काल में अलग-अलग महीनों में वर्ष की शुरूआत होने का उल्लेख मिलता है, लेकिन आधुनिक काल में वर्ष का आरम्भ भारत के विभिन्न भागों में कार्तिक या चैत्र मास में होता है।

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इसी मास में शिव पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर राक्षस का वध किया था, इसलिए इसका नाम कार्तिक पड़ा, जो विजय देने वाला है। कार्तिक महीने का माहात्म्य स्कन्द पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण में भी मिलता है।  कार्तिक मास के लगभग बीस दिन मनुष्य को देव आराधना द्वारा स्वयं को पुष्ट करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसलिए इस महीने को मोक्ष का द्वार भी कहा गया है। शास्त्रों में कहा गया है कि कार्तिक मास में मनुष्य की सभी आवश्यकताओं, जैसे- उत्तम स्वास्थ्य, पारिवारिक उन्नति, देव कृपा आदि का आध्यात्मिक समाधान बड़ी आसानी से हो जाता है।

कृष्ण ने अर्जुन को दिया था गीता का ज्ञान, राम-सीता का हुआ था विवाह

मार्गशीर्ष माह को अगहन भी कहा जाता है। शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिए इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है।

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ऋषि कश्यप ने इसी माह कश्मीर की स्थापना की थी। मार्गशीर्ष मास में शुक्ल पंचमी को विवाह पंचमी कहा जाता है। माना जाता है प्रभु श्रीराम का सीता से विवाह इसी दिन संपन्न हुआ था। यह दिन मांगलिक कार्यों के लिए बहुत शुभ माना जाता है। इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से है। इसी वजह से इस मास को मार्गशीर्ष मास नाम से जाना जाता है। इस माह में पवित्र नदियों में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। इस माह गंगा में स्नान करने से रोग, दोष और पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है। इस माह आने वाली उत्पन्ना एकादशी को भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास किए जाते हैं। इस मास की अमावस्या पर पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध कर्म करने की परंपरा है। इस मास की पूर्णिमा को दत्त पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन भगवान दत्तात्रेय की पूजा करनी चाहिए। इस माह अपने पूर्वजों को याद करते हुए उनके प्रति आभार प्रकट करें।

 

 

 
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