नई दिल्ली । हम जब कभी नजरें उठाकर चांद को निहारते हैं तो एक अजीब सी आकृति नजर आती है। वैज्ञानिक और चांद की तस्वीरें कहती हैं कि वहां बड़े- बड़े गड्ढे हैं। ऑक्सीजन और तरल पानी नहीं है। वायुमंडल बहुच झीना सा है। गुरुत्वाकर्षण कम होने की वजह से एक समान चाल नहीं रह सकती है। यदि कुछ और ग्रहों की बात की जाए तो वहां भी प्राणियों के लिए आवश्यक परिस्थितियां नहीं है। चलिए अब लौटते हैं अपनी धरा पर, ये सब आपको बताना इसलिए जरुरी था क्योंकि जो चींजें हमारे पास सुलभ होती हैं हमें उनकी ज्यादा परवाह नहीं करते, लेकिन यदि जंगल में कहीं भटक जाएं तो बेर भी सेव दिखती है, पोखर का पानी भी अमृत सा नजर आता है। हमारी धरती जो आदि से लेकर अंत तक जो हमें सब कुछ देती है। बावजूद इसके हम उसे कुछ लौटा नहीं पाते। अब जब शिक्षा का स्तर बढ़ा है तो बदलाव भी आना चाहिए।
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पृथ्वी दिवस को आयोजित करने का एक ही मकसद है, लोगो में हमारे सबसे खूबसूरत ग्रह को बचाए रखना इसमें जीवन के लिए जरुरी पर्यावरण को संभलना सहेजना। 22 अप्रैल को दुनिया भर में पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्थन प्रदर्शित करने के लिए आयोजित किया जाता है। बता दें कि इसकी स्थापना अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 में एक पर्यावरण शिक्षा के रूप की थी। अब इसे 192 से अधिक देशों में प्रति वर्ष मनाया जाता है। यह तारीख उत्तरी गोलार्द्ध में वसंत और दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद का मौसम है। पूरे विश्व में इस दिन सेमीनार और दूसरे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं । वैज्ञानिक और समाजसेवी बदल रह धरती पर चिंतन मनन कर पृथ्वी की बेहतरी के लिए अपने सुझाव देते हैं । जिस पर विभिन्न वैश्विक संगठन जागरुकता अभियान चलाते हैं। विभिन्न देशों में सरकारों के माध्यम से पृथ्वी के संरक्षण के लिए कई सारे कार्यो को भी अंजाम दिया जाता है ।
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22 अप्रेल को पृथ्वी दिवस को मनाने का यही लक्ष्य है कि बदल रहे इस पर्यावरण पर गंभीरता चिंतन मनन किया जाए। कुछ ऐसा संतुलन बनाया जाए कि सब सुखी रहे नए युग के साथ कदमताल भी हो और पर्यावरण भी दुरुस्त रहे। विचार कीजिए क्या किया जा सकता है। मोबाइल की हमें आदत लग चुकी है। तो क्या हम कैसे तरंगों के जाल से पक्षियों को बचाएंगे। कच्ची मिट्टी के आंगन और सड़कें अब पिछड़ेपन की निशानी माने जाते तो कैसे पानी को जमीन के नीचे पहुंचाएंगे। कुंआ, बाबली, तालाब को तो हमने पाट के उस पर घर बना लिया है, तो अब पानी कैसे रसातल में जाएगा। हमारे बोर में पानी कैसे आएगा। जमीन भी तो प्यासी है। तो क्या हम उसके गले के बाद पेट तक को सुखा देंगे। आखिर जमीन में नीचे पानी जाएगा नहीं तो फिर उससे हम निकालेंगे कैसे। जैसे बना रिचार्च के मोबाइल नेट नहीं चलाता है वैसे धरती को रिचार्ज किए बिना उससे पानी नहीं नहीं लिया जा सकता है। बोर से पानी चाहिए या गर्म हवा, फैसला आपका आपको करना है।
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हम सब धरती की संतान हैं, और जब हम सब की बाद होती है तो पहले वो आते हैं जो माटी से पैदा होते हैं। जिनकी जड़ें मिट्टी में वैसे ही जकड़े रहती हैं जैसे हम नाभी के जरिए अपनी मां की कोख से भोजन– पानी पाते हैं। मां यदि खाना पीना छोड़ तो बच्चा नहीं पनप सकता है। वैसे ही यदि धरती सूखी रही तो उसके पेड़-पौधे भी नहीं बढ़ सकते । यदि बच्चे मां– बाप का सहारा ना बने तो उनका बुढ़ापा मुश्किल में पड़ जाता है । वैसे ही धरा पर पेड़- पौधे ना रहे तो उनकी धरती मां झुलस जाती है। ये पेड़ –पौधे ही आपको ऑक्सीजन देते हैं और आपकी कार्बन डायक्साइड को रिसाइकिल करते हैं। फैसला आपका ऑक्सीजन का कृत्रिम सिलेंडर लगाते हैं या प्रकृति से निशुल्क शुध्द वायु लेते हैं।
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जमाने की बदलती जरुरतों को खत्म नहीं किया जा सकता है। हालांकि समझदार प्राणी प्रकृति और आवश्यकता के बीच तालमेल जरुर बैठा सकता है। अब देखिए ना भले ही हम धूल की वजह से आंगन मिट्टी का ना रखें पर उसमें सोकपिट तो बनवा ही सकते हैं। छत के पानी को सोकपिट में भेजकर कम से कम अपने बोर केलिए तो कुछ पानी जुटा सकते हैं। ऐसे ही बड़े पेड़ के लिए भले ही घर में जगह ना बना पा रहे हों पर क्यारी की जगह तो छोड़ ही सकते हैं, जिसमें छोटे पेड़ पौधे लगाए जा सकें। माना की बहुत गर्मी है पर जरुरी नहीं की एसी ही लगाया जाए विन्डो कूलर भी घर को ठंडा कर देता है और बिजली की खपत कई गुना कम होती है। साफ- सफाई रखना जरुरी है पर हर बार शैम्पू और साबुन से ही स्नान किया जाए ये भी ठीक नहीं । शरीर और धरती दोनों के लिए ये केमीकल नुकसानदायक होते हैं। तेज आवाज के पटाखों से बचा जा सकता है। ये केवल तेज आवाज ही करतें हैं जिनसे पक्षियों के अंडों को नुकसान पहुंचता है। ऐसे अनेक विषय हैं जिन पर हम ध्यान दें तो भविष्य में होने वाले नुकसानों को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।