गुकेश की मां ने कहा, हम काफी आगे के बारे में नहीं सोच रहे |

गुकेश की मां ने कहा, हम काफी आगे के बारे में नहीं सोच रहे

गुकेश की मां ने कहा, हम काफी आगे के बारे में नहीं सोच रहे

:   Modified Date:  April 22, 2024 / 10:06 PM IST, Published Date : April 22, 2024/10:06 pm IST

(आयुष गुप्ता)

चेन्नई, 22 अप्रैल (भाषा) माइक्रोबायोलॉजिस्ट पदमा कुमारी ने सोमवार शाम को जब फोन उठाया तो उनकी आवाज भावनाओं से भरी हुई थी। शायद टोरंटो में कैंडिडेट्स शतरंज टूर्नामेंट में उनके बेटे डी गुकेश की ऐतिहासिक जीत ही भावनाएं अब भी हावी थी।

जब चार साल पहले कोरोना वायरस का भयंकर प्रकोप था तब पदमा ने उल्लेखनीय संयम दिखाया और शहर के एक अस्पताल में नियमित रूप से बीमार रोगियों की परीक्षण रिपोर्ट की जांच की जिससे उनके ग्रैंडमास्टर बेटे गुकेश बेहद चिंतित हो गए थे।

शतरंज में अपने धैर्य के लिए पहचाने जाने वाले गुकेश संकट के समय में अपनी मां के काम करने के तरीके से आश्चर्यचकित रह जाते थे।

लेकिन सोमवार अलग दिन था क्योंकि 17 वर्षीय गुकेश विश्व खिताब के लिए चुनौती देने वाले सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बने और उन्हें महान गैरी कास्परोव के 40 साल पहले बनाए गए रिकॉर्ड को तोड़ दिया।

भावुक पदमा ने पीटीआई से कहा, ‘‘वह विश्व चैंपियनशिप का इंतजार कर रहा होगा। यह शतरंज के सबसे बड़े टूर्नामेंटों में से एक है। लेकिन हम बहुत आगे के बारे में नहीं सोच रहे हैं क्योंकि हम अभी इस जीत का जश्न मनाएंगे। हमें पहले इसे ध्यान में रखना होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘उसके प्रदर्शन और उपलब्धि से बेहद खुशी महसूस हो रही है। यह उसके द्वारा की गई कड़ी मेहनत का एक उदाहरण है। कैंडिडेट्स को जीतना उसके सपनों में से एक था और यह शानदार अहसास है।’’

तमिलनाडु ने विश्वनाथन आनंद, आर प्रज्ञानानंदा और अरविंद चिदंबरम जैसे शीर्ष ग्रैंडमास्टर्स देश को दिए हैं लेकिन यह 2013 में मैग्नस कार्लसन के खिलाफ आनंद का विश्व चैंपियनशिप मुकाबला था जिसने गुकेश को इस खेल को अपनाने के लिए प्रेरित किया।

पदमा ने याद करते हुए कहा, ‘‘जब वह सात साल का था तो उसने परिवार के कुछ सदस्यों को खेलते हुए देखकर यह खेल खेलना शुरू किया। उसी वर्ष उसने विश्वनाथन आनंद और मैग्नस कार्लसन के बीच विश्व चैंपियनशिप प्रतियोगिता देखी और तभी वह विशी को देखकर इसे खेलने के लिए प्रेरित हुआ।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह खेल जल्द ही उनका जुनून बन गया और हमने उसे इसे जारी रखने की अनुमति दी। यह एक अच्छा निर्णय साबित हुआ क्योंकि उसे कदम-दर-कदम हर छोटी उपलब्धि हासिल की है।’’

गुकेश की यात्रा आसान नहीं थी क्योंकि उनके परिवार ने अपनी बचत को खर्च किया और उनके सपने को पूरा करने के लिए ‘क्राउड-फंडिंग’ (लोगों से पैसे जुटाना) का भी सहारा लिया।

पदमा ने कहा कि 2019 में गुकेश के ग्रैंडमास्टर बनने के बाद ही वित्तीय समस्याएं हल हुईं।

उन्होंने कहा, ‘‘वित्तीय रूप से कुछ कठिनाइयां थीं। लेकिन ग्रैंडमास्टर बनने के बाद उन्हें सुलझा लिया गया। वह कड़ी मेहनत कर रहा था और हम भी ऐसा ही कर रहे थे ताकि जिस तरह भी संभव हो उसका समर्थन कर सकें।’’

गुकेश ने शतरंज पर ध्यान केंद्रित करने के लिए चौथी कक्षा के बाद पूर्णकालिक स्कूल जाना भी बंद कर दिया।

हालांकि यह निर्णय लेना कठिन था। पदमा ने गुकेश के सबसे बड़े समर्थकों में से एक होने के लिए उनके स्कूल (चेन्नई में वेलाम्मल विद्यालय स्कूल) को धन्यवाद दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘सबसे बड़ी चुनौती उसकी पढ़ाई और शतरंज के बीच निर्णय लेना था। हमें (उसकी पढ़ाई) बलिदान देना पड़ा और यह एक कठिन निर्णय था।’’

पदमा ने कहा, ‘‘उनका स्कूल सबसे बड़ा समर्थक है। जब भी वह किसी टूर्नामेंट में जाना चाहता था तो वे इजाजत देते थे। वह जब भी खाली होता तो परीक्षा देता था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बीच में हमने उसके शतरंज खेलने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखने के बारे में भी सोचा था। लेकिन अब से मेरा मानना है कि यह उसके लिए पूर्णकालिक शतरंज है।’’

भाषा सुधीर आनन्द

आनन्द

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)