‘बौद्धिक अक्षमता’ के कारण दीप्ति को ताने देने वाले विश्व चैम्पियन बनने के बाद कर रहे तारीफ |

‘बौद्धिक अक्षमता’ के कारण दीप्ति को ताने देने वाले विश्व चैम्पियन बनने के बाद कर रहे तारीफ

‘बौद्धिक अक्षमता’ के कारण दीप्ति को ताने देने वाले विश्व चैम्पियन बनने के बाद कर रहे तारीफ

:   Modified Date:  May 20, 2024 / 06:01 PM IST, Published Date : May 20, 2024/6:01 pm IST

… फिलेम दीपक सिंह …

नयी दिल्ली, 20 मई (भाषा) दीप्ति जीवनजी के माता-पिता को लंबे समय तक गांव के लोग ‘मानसिक रूप से कमजोर’ बच्चे के लिए ताने मारते रहे लेकिन जापान के कोबे में पैरा एथलेटिक्स विश्व चैम्पियनशिप में विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतने के बाद उनकी तारीफ करते नहीं थक रहे हैं।  दीप्ति की जीत के बाद तेलंगाना के कलेडा गांव में स्थित छोटे से घर के बाहर बड़ी संख्या में लोग जश्न मना रहे हैं। तेलंगाना के वारंगल जिले में दिहाड़ी मजदूरों के घर जन्मी 20 वर्षीय दीप्ति ने सोमवार को महिलाओं की 400 मीटर टी20 वर्ग दौड़ में 55.07 सेकंड के विश्व रिकॉर्ड समय के साथ स्वर्ण पदक जीता। उन्होंने आगामी पेरिस पैरालंपिक के लिए भी क्वालीफाई किया। टी20 श्रेणी उन एथलीटों के लिए है जो बौद्धिक रूप से कमजोर हैं। दीप्ति के कोच नागपुरी रमेश ने कहा कि उसके माता-पिता को गांव वालों के तानों का सामना करना पड़ता था। रमेश ने हैदराबाद से पीटीआई-भाषा को बताया, ‘दीप्ति के माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे और वे परिवार चलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। इसके अलावा उन्हें ग्रामीणों से लगातार ताने भी सुनने पड़ते थे कि मानसिक रूप से कमजोर लड़की की शादी नहीं हो सकती है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ पिछले साल हांगझोऊ एशियाई पैरा खेलों में दीप्ति के स्वर्ण पदक जीतने के बाद चीजों में बदलाव आना शुरू हुआ। अब वही गांव वाले दीप्ति की उपलब्धि के लिए उसके माता-पिता की तारीफ कर रहे हैं। उन्होंने मुझे बताया कि पैरा एशियाई खेलों के बाद उनके हैदराबाद आने के बाद से चीजें बदल गयी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उन्होंने मुझे बताया कि क्षेत्र के जिला कलेक्टर और राजनीतिक दलों के नेता भी उनके घर आए थे, जो उनके लिए चौंकाने वाला था।’’ दीप्ति ने हांगझोउ पैरा एशियाई खेलों में 400 मीटर टी20 वर्ग में 56.69 सेकेंड के एशियाई रिकॉर्ड समय के साथ स्वर्ण पदक जीता था। दीप्ति के पिता जे यादगिरी और मां जे धनलक्ष्मी इतने गरीब थे कि उनके पास अपने बच्चे को वारंगल से हैदराबाद भेजने के लिए बस का किराया वहन करने के लिए भी पैसे नहीं थे। रमेश ने कहा कि जब मैंने दीप्ति को प्रशिक्षण देने का फैसला करने के वाकये को याद करते हुए कहा, ‘‘उन्हें वारंगल में एक ‘पीईटी’ शिक्षक के माध्यम से एक स्कूल मीट में देखा गया था। जब मैंने उनसे दीप्ति को भेजने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा कि उनके पास बस किराए के लिए पैसे नहीं है। मैंने उनसे कहा कि वे बस में चढ़ जाएं और परिचालक से मेरी बात करा दें।’’ रमेश ने बताया कि दीप्ति को खेलों में आगे बढ़ाने के लिए उसके पिता को अपनी जमीन बेचनी पड़ी थी लेकिन एशियाई पैरा खेलों के बाद दीप्ति को मिली पुरस्कार राशि से उन्होंने फिर से उतनी जमीन खरीद कर खेती शुरू कर दी। दीप्ति जब हैदराबाद आयी थी तब वह नौंवी कक्षा में थी। उनका नामांकन हैदराबाद के भारतीय खेल प्राधिकरण में हुआ, जहां वह रमेश की देख रेख में अभ्यास करती थी। रमेश भारतीय जूनियर एथलेटिक्स टीम के कोच हैं। दीप्ति के करियर में मुख्य राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद की भी भूमिका रही। यह गोपीचंद ही थे जिन्होंने रमेश को उन्हें हैदराबाद में बौद्धिक विकलांगता वाले व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए राष्ट्रीय संस्थान में ले जाने का सुझाव दिया था। चिकित्सा परीक्षणों के बाद, उसे ‘मानसिक रूप से कमजोर’ के रूप में प्रमाणित किया गया और इससे उसे पैरा प्रतियोगिताओं में प्रतिस्पर्धा करने की अनुमति मिल गई। भाषा आनन्द सुधीरसुधीर

 

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