प्रियजन की मौत से सालों पहले ही शोक में चले जाते हैं परिजन |

प्रियजन की मौत से सालों पहले ही शोक में चले जाते हैं परिजन

प्रियजन की मौत से सालों पहले ही शोक में चले जाते हैं परिजन

:   Modified Date:  February 23, 2024 / 02:02 PM IST, Published Date : February 23, 2024/2:02 pm IST

( लीसा ग्राहम- वाइजनर और आड्रे राउल्सटन, क्वीन्स यूनिवर्सिटी, बेलफास्ट )

बेलफास्ट, 23 फरवरी (द कन्वरसेशन) बहुत से लोगों के लिए अपने प्रियजन के किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की खबर इतनी सदमा पहुंचाने वाली होती है कि वे उसकी मृत्यु से कई साल पहले ही शोकग्रस्त हो जाते हैं।

फिर चाहे यह अग्रिम चरण का कैंसर हो, डिमेंशिया हो, हृदय संबंधी बीमारी या पार्किन्सन हो । मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्तर पर शोक की प्रक्रिया मरीज की मौत से कई महीनों पहले या कई सालों पहले भी शुरू हो सकती है। भविष्य में अपने प्रिय को खोने की आशंका से ग्रसित होकर हर रोज उसका दुख मनाना, अग्रिम शोक कहा जाता है।

हालांकि हर किसी को इसका अनुभव नहीं होता, प्रत्याशित दुःख शोक प्रक्रिया का एक सामान्य हिस्सा है और इसमें परस्पर विरोधी, अक्सर बहुत से कठिन विचार और भावनाएं शामिल हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, प्रियजन को खोने की भावनाओं के साथ-साथ, कुछ लोग अपने प्रियजन के दर्द से मुक्त होने की इच्छा रखने या उनके मरने के बाद जीवन कैसा होगा, इसकी कल्पना करने से अपराधबोध का अनुभव कर सकते हैं।

लेकिन इसे परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। प्रत्याशित दु:ख पर शोध अध्ययनों की एक व्यवस्थित समीक्षा में मृत्यु पूर्व दु:ख के 30 से अधिक विभिन्न विवरणों की पहचान की गई।

एक जानी मानी विशेषज्ञ थेरेसा रैंडो कहती हैं कि प्रत्याशित शोक मृत्यु के लिए तैयार होने में मदद कर सकता है और साथ ही यह मृत्यु के बाद दुख को सहन करने की दिशा में सकारात्मक रूप से परिजनों को तैयार कर सकता है। और जब वास्तव में प्रियजन से बिछुड़ने की वह घड़ी आती है तो शोक व्यक्ति को बहुत गहराई तक प्रभावित नहीं करता।

लेकिन मृत्यु पूर्व शोक से यह जरूरी नहीं है कि मृत्यु के बाद इससे गुजरना आसान होगा। कुछ शोध इस बात का सबूत हैं कि संभव है कि मृत्यु पूर्व शोक बहुत अधिक होने के बावजूद वह मृत्यु पश्चात शोक के लिए संबंधित व्यक्ति को तैयार न करे।

देखभाल करने वालों को मदद लेनी चाहिए :

जानलेवा बीमारियों से जूझ रहे मरीजों की देखभाल करने वाले लोग अपने प्रियजन की दिन ब दिन बिगड़ती हालत के गवाह बनते हैं और यह प्रक्रिया बहुत ही तनावपूर्ण और भावनात्मक रूप से दुखी करने वाली होती है।

इसलिए आवश्यक हो जाता है कि देखभाल करने वाला स्वयं अपने भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य पर ध्यान दे और आसपास के लोगों से मदद ले क्योंकि अपने किसी बेहद प्रिय व्यक्ति की उसके अंतिम क्षणों में देखभाल करना स्वयं एक अंधी सुरंग से गुजरने जैसा हो सकता है।

जहां तक संभव हो, इस समय का इस्तेमाल देखभाल करने वाला व्यक्ति अपने प्रियजन को उसके जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं पर विचार करने, उसके अधूरे काम को पूरा करने और अंतिम यात्रा को लेकर उनकी पसंद नापसंद को जानने के लिए कर सकता है।

इस समय में मरीज के मित्रों और रिश्तेदारों को बुलाकर उनसे उनकी मुलाकात भी करायी जा सकती है, कानूनी और वित्तीय मामलों को ठीक ठाक करने, उनकी बीमारी के बारे में बात करने और आगे की देखभाल की योजना बनाने में भी इस समय का सदुपयोग किया जा सकता है।

बात करना ही समाधान है :

बदले हुए पारिवारिक माहौल और अनिश्चितता के साथ रहना परिवार के सभी सदस्यों के लिए कष्टकारी हो सकता है। जब यह पता है कि प्रियजन की मौत करीब आती जा रही है और उससे बचना मुश्किल है तो भावनात्मक तनाव पर नियंत्रण रख पाना और मृत्यु के बारे में बातें करना आसान नहीं होता ।

लेकिन आसन्न मृत्यु की स्थिति में बातचीत करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। बुजुर्ग लोगों की देखभाल करने वाले विशेषज्ञ और पेशेवर जानते हैं कि इन विषयों पर कैसे बात करनी है, जिसमें बच्चों को मृत्यु के बारे में बताना भी शामिल है।

अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुँचे व्यक्ति के साथ खुलकर बात करना भावनात्मक संबंध को मजबूत कर सकता है ।

जो लोग मृत्यु के करीब हैं – और जो अपने प्रियजन को खोने के आसन्न नुकसान का शोक मना रहे हैं – उनके प्रति सहानुभूति और समझ बढ़ाने से एक ऐसे दयालु समुदाय का निर्माण करने में मदद मिलेगी जो मृत्यु और शोक का अनुभव करने वाले लोगों की मदद करता है।

द कन्वरसेशन नरेश

नरेश मनीषा

मनीषा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)