दूसरे विश्वयुद्ध में यौन दासता झेलने वाली दक्षिण कोरियाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र से इंसाफ मांगी |

दूसरे विश्वयुद्ध में यौन दासता झेलने वाली दक्षिण कोरियाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र से इंसाफ मांगी

दूसरे विश्वयुद्ध में यौन दासता झेलने वाली दक्षिण कोरियाई महिला ने संयुक्त राष्ट्र से इंसाफ मांगी

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:32 PM IST, Published Date : March 21, 2022/9:17 pm IST

सोल, 21 मार्च (एपी) दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान की युद्धकालीन सेना द्वारा अपहरण, दुष्कर्म और जबरन वेश्यावृत्ति का दंश झेलने वाली ली योंग-सू ने 30 साल पहले अपनी कहानी दुनिया को बताकर इंसाफ की आशा की थी लेकिन उन्हें लग रहा है वक्त रेत की तरह उनकी बंद मुट्ठी से फिसलता जा रहा है।

यौन दासता की शिकार रह चुकी दक्षिण कोरियाई महिलाओं के लिए 93 वर्षीय ली इंसाफ मांगने वाला वह चेहरा हैं, जो 1990 के दशक की शुरुआत से ही मांग कर रही हैं कि जापान सरकार अपनी युद्धकालीन सेना के अपराध स्वीकार करे और बिना शर्त माफी मांगे।

ली की ताजा और संभवत: आखिरी कोशिश दक्षिण कोरिया और जापान पर संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता से फैसला लेने का दबाव बनाना है, ताकि उन्हें न्याय मिल सके।

ली यौन दासता की शिकार रही महिलाओं और उनके हक की आवाज बुलंद करने वाले लोगों के एक अंतरराष्ट्रीय समूह का नेतृत्व कर रही हैं, जिसने बीते हफ्ते संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के मानवाधिकार जांचकर्ताओं को एक अर्जी भेजी है कि वे सोल और तोक्यो पर मामले को संयुक्त रूप से अंतरराष्ट्रीय न्याय अदालत (आईसीजे) में ले जाने का दवाब बनाएं।

इस समूह में फिलीपीन, चीन, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी तिमोर की पीड़िताएं शामिल हैं।

समूह चाहता है कि अगर तोक्यो मामले को आईसीजे में ले जाने के लिए सहमत नहीं होता है तो सोल संयुक्त राष्ट्र के एक पैनल के साथ, जापानी सेना द्वारा दी गई यातनाओं के मामले में मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करे।

हालांकि, फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि एक मई को शपथ ग्रहण करने वाली दक्षिण कोरिया की नयी सरकार इस मामले को संयुक्त राष्ट्र में उठाने पर विचार करेगी या नहीं, क्योंकि वैश्विक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि में उसपर जापान के साथ संबंधों में सुधार करने का दबाव है।

न्याय पाने के लिए धीरज धरना अब ली के लिए संभव नहीं है क्योंकि यौन दासता की त्रासदी झेलने वाली पीड़िताओं की एक-एक करके मौत हो रही है।

दक्षिण कोरिया की ली को यह चिंता सता रही है कि अगर उन्हें न्याय नहीं मिला तो धीरे-धीरे संभवत: दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान यौन दासता झेलने वाली महिलाओं की यातनाओं को भुला दिया जाएगा या फिर उन्हें कमतर करके आंका जाएगा, यहां तक कि जापान उसे स्कूली किताबों से भी गायब कर सकता है।

जापान की इंपीरियल आर्मी द्वारा कैसे 16 साल की उम्र में उन्हें घर से खींचकर जबरन ले जाया गया और दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने तक वह ताइवान में जापानी सेना के कोठे पर रहीं। ली ने 1992 में जब पहली बार इस यातना की कहानी सुनाई थी तो उनकी आंखों से आंसू सूखने का नाम नहीं ले रहे थे।

ली ने यहां ‘एपी’ को बताया, ‘‘दक्षिण कोरिया और जापान, दोनों हमारे मरने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन मैं अंत तक लड़ती रहूंगी।’’

ली ने कहा कि उनका प्रयास/अभियान जापान पर इसकी पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करने और अतीत में उसकी सेना की यौन दासता को युद्ध अपराध का दर्जा देने और किताबों तथा स्मारकों के माध्यम से इस प्रताड़ना की जानकारी जनता को देने के लिए दबाव बनाने की है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि वक्त ने अभी तक मेरे लिए इंतजार किया है ताकि मैं पूरे धैर्य के साथ इस मुद्दे का समाधान निकालने के लिए हर संभव प्रयास कर सकूं।’’

एपी अर्पणा उमा

उमा

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)