श्रीलंका के नये राष्ट्रपति निर्वाचित हुए रानिल विक्रमसिंघे, प्रदर्शनकारियों ने इस्तीफे की मांग की |

श्रीलंका के नये राष्ट्रपति निर्वाचित हुए रानिल विक्रमसिंघे, प्रदर्शनकारियों ने इस्तीफे की मांग की

श्रीलंका के नये राष्ट्रपति निर्वाचित हुए रानिल विक्रमसिंघे, प्रदर्शनकारियों ने इस्तीफे की मांग की

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:10 PM IST, Published Date : July 20, 2022/9:36 pm IST

कोलंबो, 20 जुलाई (भाषा) श्रीलंका के सांसदों ने एक अभूतपूर्व कदम के तहत कार्यवाहक राष्ट्रपति एवं अनुभवी नेता रानिल विक्रमसिंघे को बुधवार को देश का नया राष्ट्रपति निर्वाचित किया। इससे नकदी के संकट से जूझ रहे इस द्वीपीय देश को उबारने के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ चल रही वार्ता के जारी रहने की उम्मीद की जा सकती है।

हालांकि इस घटनाक्रम ने सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों को नाराज कर दिया है और उन्होंने विक्रमसिंघे के इस्तीफे की अपनी मांग दोहरायी है।

कार्यवाहक राष्ट्रपति और छह बार प्रधानमंत्री रह चुके विक्रमसिंघे (73) अपने पूर्ववर्ती गोटबाया राजपक्षे के देश से चले जाने के बाद संसद द्वारा राष्ट्रपति निर्वाचित किए गए। राजपक्षे देश में ईंधन, दवा और भोजन जैसी आवश्यक चीजों की कमी के खिलाफ जारी प्रदर्शनों के बीच देश छोड़कर भाग गए थे।

श्रीलंका की 225 सदस्यीय संसद में विक्रमसिंघे को 134 वोट मिले, जबकि उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी एवं सत्तारूढ़ दल के असंतुष्ट नेता डलास अल्हाप्पेरुमा को 82 वोट मिले। वामपंथी जनता विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) के नेता अनुरा कुमारा दिसानायके को महज तीन वोट मिले।

संसद अध्यक्ष महिंदा यापा अभयवर्धने द्वारा मतदान के परिणामों की घोषणा किए जाने के तुरंत बाद पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के प्रमुख सहयोगी, राष्ट्रपति विक्रमसिंघे ने अपने भाषण में दो दावेदारों-डलास अल्हाप्पेरुमा और अनुरा कुमारा दिसानायके को धन्यवाद दिया तथा सांसदों से देश को और संकट से बचाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया।

विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘लोग हमसे पुरानी राजनीति के लिए नहीं कह रहे हैं। मैं विपक्षी नेता सजित प्रेमदासा और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे तथा मैत्रीपाला सिरिसेना सहित अन्य विपक्षी दलों से एकसाथ काम करने का अनुरोध करता हूं।’’

उन्होंने लोकतांत्रिक प्रथाओं को बनाए रखने के लिए संसद को धन्यवाद दिया और अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ-साथ पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे तथा मैत्रीपाला सिरिसेना दोनों से समर्थन मांगा।

विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘देश की मौजूदा स्थिति के बारे में मुझे बताने की जरूरत नहीं है कि यह कितनी मुश्किल है। युवा बदलाव की मांग कर रहे हैं। दुनिया में कई समस्याएं हैं। हमें बिना उलझे आगे बढ़ना है।’’ उन्होंने कहा कि सभी संबंधित पक्षों को ‘नया कार्यक्रम बनाने’ के लिए एकजुट होना चाहिए।

विक्रमसिंघे ने कहा, ‘‘मैंने इस संसद में 45 साल तक काम किया है। मेरा जीवन यह संसद है। मुझे यह सम्मान देने के लिए मैं संसद का आभारी हूं।’’ उन्होंने अध्यक्ष से संसद में शपथ लेने की अनुमति देने का अनुरोध किया, जो उनके किसी पूर्ववर्ती ने नहीं किया है।

विक्रमसिंघे ने बृहस्पतिवार को होने वाले अपने शपथग्रहण समारोह से पहले कहा, ‘‘हम पिछले 48 घंटों से बंटे हुए थे। वह अवधि अब समाप्त हो गई है। हमें अब एकसाथ काम करना होगा।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अब चुनाव खत्म हो गया है तो हमें उस विभेद को खत्म करना होगा… अब से मैं आपसे बातचीत के लिए तैयार हूं।’’

विक्रमसिंघे ने श्रीलंकाई तमिल नेताओं से राष्ट्र के पुनर्निर्माण में उनके साथ शामिल होने का आग्रह किया जिनमें से कुछ उनकी उम्मीदवारी के विरोध में थे।

इस बीच, कोलंबो स्थित भारतीय उच्चायोग ने बुधवार को कहा कि वह लोकतांत्रिक तरीकों एवं मूल्यों, स्थापित लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा संवैधानिक ढांचे के जरिए स्थिरता और आर्थिक सुधार से संबंधित श्रीलंका के लोगों के प्रयास का समर्थन करना जारी रखेगा। भारतीय उच्चायोग का यह बयान श्रीलंकाई संसद द्वारा रानिल विक्रमसिंघे को गोटबाया राजपक्षे के उत्तराधिकारी के रूप में चुने जाने के कुछ घंटों बाद आया।

इसने एक ट्वीट में कहा, ‘श्रीलंका के एक करीबी मित्र और पड़ोसी तथा एक साथी लोकतंत्र होने के चलते हम लोकतांत्रिक तरीकों और मूल्यों, स्थापित लोकतांत्रिक संस्थाओं तथा संवैधानिक ढांचे के माध्यम से स्थिरता एवं आर्थिक सुधार के लिए श्रीलंका के लोगों के प्रयास का समर्थन करना जारी रखेंगे।’

उच्चायोग ने इससे पहले कहा था कि भारत लोकतांत्रिक तरीकों और मूल्यों, स्थापित संस्थाओं के साथ-साथ संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार श्रीलंका के लोगों की आकांक्षाओं के पूरा होने का समर्थन करता है, ‘और किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करता है।’

इस बीच, विक्रमसिंघे की जीत देश में स्थिति को एक बार फिर से भड़का सकती है क्योंकि सरकार विरोधी कई प्रदर्शनकारी उन्हें पूर्ववर्ती राजपक्षे शासन से अटूट रूप से जुड़ा मानते हैं, जिन्हें 1948 में आजादी के बाद से देश के सबसे खराब आर्थिक संकट के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। विक्रमसिंघे ने 13 जुलाई को कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।

राजपक्षे तब मालदीव भाग गए थे जब हजारों प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति आवास और अन्य प्रतिष्ठित सरकारी भवनों पर धावा बोलकर उनके इस्तीफे की मांग की थी। मालदीव से वह सिंगापुर चले गए थे।

राष्ट्रपति राजपक्षे को देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर करने वाले प्रदर्शनकारियों ने बुधवार को उनके उत्तराधिकारी विक्रमसिंघे के इस्तीफे की भी मांग की। विरोध समूह ‘अरागलया’ के प्रवक्ता फादर जीवनंत पीरिस ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘उन्हें लोगों की इच्छा के खिलाफ चुना गया है। राजपक्षे उन्हें लाये हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘हम विक्रमसिंघे के इस्तीफा देने तक अपना विरोध प्रदर्शन जारी रखेंगे।’’

कई प्रदर्शनकारी इस बात पर जोर देते हैं कि सरकार के पूर्ण बदलाव से ही उनकी मांगें पूरी हो सकती हैं।

प्रदर्शनकारियों ने उनके निजी घर को जला दिया था और उनके नेतृत्व के खिलाफ प्रदर्शनों में कोलंबो में उनके प्रधानमंत्री कार्यालय पर भी धावा बोला गया था।

विक्रमसिंघे ने अपने संबोधन में कहा कि देश एक खतरनाक स्थिति में है और युवा बदलाव की मांग कर रहे हैं।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के साथ महत्वपूर्ण वार्ता का नेतृत्व कर रहे विक्रमसिंघे ने पिछले हफ्ते कहा था कि बातचीत अंतिम दौर में है और अन्य देशों के साथ सहायता के लिए चर्चा भी आगे बढ़ रही है।

‘हिरू न्यूज’ ने आईएमएफ की प्रबंध निदेशक क्रिस्टलीना जॉर्जीवा के हवाले से कहा, ‘‘आईएमएफ श्रीलंका के साथ जल्द से जल्द बातचीत पूरी करने की उम्मीद करता है और जैसे ही वहां सरकार का गठन हो जाएगा, हम अपनी चर्चा जारी रख सकते हैं तथा हमारी टीम वहां होगी।’’

नए राष्ट्रपति के पास पूर्व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे का शेष कार्यकाल पूरा करने का जनादेश है। राजपक्षे का कार्यकाल नवंबर 2024 तक था।

विक्रमसिंघे ने राष्ट्रपति पद की दौड़ में एक करीबी बढ़त बनाए रखी क्योंकि कई सांसदों ने उन्हें अपना समर्थन देने का वादा किया था, जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी अल्हाप्पेरुमा को विपक्षी दलों के साथ-साथ उनकी मूल पार्टी – श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के अधिकतर सांसदों से महत्वपूर्ण समर्थन मिला।

लगभग पांच दशकों तक संसद में रहे विक्रमसिंघे को मई में प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था। उनकी यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) अगस्त 2020 में हुए आम चुनाव में एक भी सीट जीतने में विफल रही थी।

विक्रमसिंघे को राजनीतिक हलकों में व्यापक रूप से एक ऐसे व्यक्ति के रूप में स्वीकार किया जाता है जो दूरदर्शी नीतियों के साथ अर्थव्यवस्था का प्रबंधन कर सकता है।

वह उस अर्थव्यवस्था को ठीक करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि वह मई में उनकी नियुक्ति के समय ध्वस्त हो गई थी।

विक्रमसिंघे को भारत और उसके नेताओं का करीबी माना जाता है। साढ़े चार दशक के अपने करियर के दौरान उन्होंने कई अहम पद संभाले हैं।

देश में 44 वर्ष में ऐसा पहली बार हुआ है जब श्रीलंका की संसद ने सीधे राष्ट्रपति का चुनाव किया है। 1982, 1988, 1994, 1999, 2005, 2010, 2015 और 2019 के राष्ट्रपति का चुनाव लोकप्रिय वोट से हुआ था।

इससे पहले 1993 में कार्यकाल के बीच में ही राष्ट्रपति का पद तब खाली हुआ था, जब तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी गई थी। उस वक्त डी बी विजयतुंगा को संसद ने सर्वसम्मति से प्रेमदासा का कार्यकाल पूरा करने का जिम्मा सौंपा था।

आर्थिक संकट के चलते देश में सरकार के खिलाफ जनता के विद्रोह से एक राजनीतिक संकट भी उत्पन्न हो गया था। श्रीलंका को अपने 2.2 करोड़ लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए अगले छह महीनों में करीब पांच अरब डॉलर की जरूरत है।

वहीं, सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) के असंतुष्ट नेता डलास अल्हाप्पेरुमा ने कहा कि सांसदों का प्राथमिक कार्य अभूतपूर्व आर्थिक संकट को दूर करना और देश की राजनीतिक व्यवस्था में जनता के विश्वास का पुनर्निर्माण करना होना चाहिए।

चुनाव परिणामों के बाद संसद को संबोधित करते हुए 63 वर्षीय अल्हाप्पेरुमा ने कहा कि उन संवैधानिक संशोधनों को राष्ट्रीय एजेंडे की तुलना में अधिक महत्व दिया गया जिसने व्यक्तिगत और राजनीतिक पार्टी के एजेंडे को प्राथमिकता दी, इसने नागरिकों की संप्रभुता को धोखा दिया।

अल्हाप्पेरुमा ने सांसदों के अथक समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया और इस हार को ‘उत्साहजनक मार्गदर्शन’ करार दिया।

पूर्व मंत्री ने कहा कि उन्होंने श्रीलंका के इतिहास में पहली बार ‘व्यावहारिक सहमति वाली सरकार’ स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति चुनाव लड़ा था।

भाषा अमित नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

Flowers