जल संकट से बचने के लिए वैश्विक रूप से सोचना लेकिन स्थानीय आधार पर काम करना ही कारगर |

जल संकट से बचने के लिए वैश्विक रूप से सोचना लेकिन स्थानीय आधार पर काम करना ही कारगर

जल संकट से बचने के लिए वैश्विक रूप से सोचना लेकिन स्थानीय आधार पर काम करना ही कारगर

:   Modified Date:  March 21, 2024 / 04:53 PM IST, Published Date : March 21, 2024/4:53 pm IST

(शफीकुल इस्लाम, टफ्ट्स यूनिवर्सिटी, मेडफोर्ड)

मेडफोर्ड (अमेरिका), 21 मार्च (360 इंफो) दक्षिण अफ्रीका ने 2018 में एक जल आपदा को टाला था, जिससे इसी तरह के संकट का सामना कर रहे शहरों को सबक मिला। लेकिन केप टाउन में अपनाये गए हर तरीके को अपनाने की सलाह नहीं दी जा सकती।

दक्षिण अफ्रीका के 2018 में आए ‘डे जीरो’ को अक्सर एक उपयुक्त मानक के रूप में देखा जाता है। हालांकि, कई गलत कदमों ने केप टाउन को आपदा के कगार पर पहुंचा दिया, लेकिन इसके निवासी पानी के प्रति समझदार हो गए, तकनीकी सुधार किए गए और फिर कभी ‘डे जीरो’ नहीं आया।

केप टाउन में जल स्तर अत्यधिक गिर जाने और जल संकट गहराने की स्थिति को ‘डे जीरो’ कहा गया।

जल संकट के बारे में बात करते हुए उसके ‘समाधान’ के बजाय उससे पार पाने के बीच एक सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण अंतर है। यह रेखांकित करता है कि खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा परिवर्तन, जलवायु परिवर्तन और राजनीतिक इच्छाशक्ति सहित अन्य वैश्विक चुनौतियों के साथ जल संकट कितने जटिल और परस्पर तरीके से जुड़ा हुआ है।

दशकों से विशेष रूप से 1981, 2006, 2018 और 2024 में चेतावनियों और कार्रवाई के आह्वान के बावजूद ठोस प्रगति दिखी नहीं। विश्व में जल संबंधी समस्याएं केवल भविष्य का खतरा नहीं हैं, बल्कि वर्तमान की एक चुनौती हैं और इनके बारे में अलग तरह से सोचने और काम करने की जरूरत है।

अलग तरह से सोचना:

वैश्विक आबादी वर्ष 1800 से एक अरब से बढ़कर 8 अरब से अधिक हो गई है। लेकिन डायनासोर युग के समय से उपलब्ध ताजा जल की मात्रा में कोई बदलाव नहीं हुआ है।

बढ़ती जनसंख्या और पानी की अधिक खपत की प्रवृत्तियों पर गहराई से नजर डालें तो तो यह पता चल सकता है कि 1900 से वैश्विक तौर पर ताजे जल की खपत छह गुना क्यों बढ़ गई है।

ताजे जल की निश्चित मात्रा की बढ़ती मांग से पानी से जुड़े कई विवाद पैदा हो रहे हैं।

लेकिन अधिकतर जल संबंधी समस्याएं स्थानीय हैं, वैश्विक नहीं।

जल संकट को फिर से परिभाषित करने का एक तरीका पानी को एक परिवर्तनशील और उपयोगी संसाधन के रूप में देखना है, जिसका अर्थ है कि इसकी उपलब्धता और उपयोग अत्यधिक परिवर्तनशील, भौगोलिक और मौसमी है।

उदाहरण के लिए बांग्लादेश में पूरे साल की 90 प्रतिशत बारिश 100 दिन में 100 घंटे की अवधि में होती है। बाकी के 265 दिन देश में सूखे के हालात होते हैं।

इसके विपरीत अमेरिका के बोस्टन शहर में साल के पूरे 12 महीनों में लगभग एक जैसी बारिश होती है और करीब 1200 मिलीमीटर वर्षा होती है। इन दोनों स्थानों के लिए जल संकट का प्रबंधन स्थानीय स्थितियों तथा मौसम की विविधता को ध्यान में रखते हुए करना आवश्यक है।

ब्राजील में दुनिया के किसी भी देश से अधिक ताजा जल है, लेकिन इस देश में स्थित दक्षिण अमेरिका के सबसे अमीर और सबसे बड़े शहर साओ पाउलो को 2015 में जल संकट का सामना करना पड़ा था। लेकिन यह संकट केप टाउन के 2018 के जल संकट से अलग था। वहीं, भारतीय शहर भुवनेश्वर में पानी की समस्या साओ पाउलो और केप टाउन दोनों से ही अलग है जहां 1973 से 2023 के बीच कंक्रीट से किये जाने वाले निर्माण कार्यों में दस गुना वृद्धि होने की वजह से भूजल स्तर 80 प्रतिशत तक गिर गया।

वैश्विक जल संकट के रूप में पानी की इन समस्याओं के बारे में बात करना उचित नहीं लगता। इन तथाकथित जल संकटों का कोई कार्रवाई योग्य समाधान नहीं है और प्रत्येक समस्या स्थानीय संदर्भ में ही सुलझाई जा सकती है।

साल 2022 में अमेरिका में सिर्फ पांच हफ्तों में 1,000 साल की पांच बाढ़ें आईं। पाकिस्तान में 2022 में आई बाढ़ वहां सबसे भयावह आपदाओं में से एक थी जो एक दशक से कुछ अधिक समय के अंतराल पर आई 1,000 वर्ष में दूसरी बाढ़ थी।

पाकिस्तान में बाढ़ से एक तिहाई से अधिक हिस्सा प्रभावित हुआ और अनुमान है कि इससे हुआ नुकसान 10 अरब डॉलर से अधिक हो सकता है।

जैसे-जैसे जल संकट दुनियाभर में सामने आ रहे हैं- चाहे वह सूखे कारण हो या बाढ़ से संबंधित, इनके समाधान के लिए स्थानीय स्तर पर व्यावहारिक कदम वैश्विक संकट के बारे में बातचीत करने की तुलना में अधिक प्रभावी होंगे। दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील नहीं है। ना ही अमेरिका, पाकिस्तान है। सूखा और बाढ़ एक जैसे संकट नहीं हैं।

(360इंफो.ओआरजी) वैभव सुभाष

सुभाष

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)