वाशिंगटन, 20 मई (एपी) अमेरिका के बाल रोग विशेषज्ञों के समूह ने सोमवार को आमूल-चूल नीतिगत बदलाव करते हुए कहा कि एचआईवी से संक्रमित महिलाएं अपने बच्चों को स्तनपान करा सकती हैं बशर्तें उनके द्वारा ली जा रही दवा से एड्स का कारण बनने वाला विषाणु निष्प्रभावी हो गया है।
अमेरिकी बाल रोग विशेषज्ञ अकादमी ने नयी रिपोर्ट में 1980 के दशक में एचआईवी महामारी के दौरान की गई अनुशंसा को बदल दिया है।
कोलोरोडो विश्वविद्यालय में बाल एचआईवी विशेषज्ञ और शोधपत्र की प्रमुख लेखिका डॉ.लीजा अबुओगी ने कहा कि यह स्वीकार किया गया है कि नियमित रूप से ली जाने वाली दवा स्तनपान के जरिये एचआईवी संक्रमण के प्रसार के खतरे को एक प्रतिशत से भी कम कर देती है।
अबुओगी ने कहा, ‘‘अब दवाएं इतनी अच्छी हैं, जच्चा एवं बच्चे के लिए इतनी लाभदायक हैं कि हम उस अवस्था में हैं जहां साझा निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।’’
उन्होंने कहा कि एंटीरिट्रोवायरल थेरेपी के तौर पर जानी जाने वाली दवा स्तनपान के जरिये एचआईवी के प्रसारित होने के खतरे को पूरी तरह से खत्म नहीं करती और स्तनपान कराने से रोकना केवल वायरस का प्रसार होने से रोकने के अन्य तरीकों में से एक है।
उन्होंने कहा कि इसके साथ ही अभिभावक को बच्चे को शुरुआती छह महीने तक केवल स्तनपान ही कराना चाहिए क्योंकि अनुसंधान इंगित करते हैं कि स्तनपान और बाहरी दूध अदल-बदल कर पिलाने से बच्चे की पाचन क्रिया प्रभावित होती है और एचआईवी संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।
अबुओगी ने कहा कि अमेरिका में हर साल करीब पांच हजार एचआईवी संक्रमित महिलाएं बच्चे को जन्म देती हैं। इनमें से करीब सभी वायरस को निष्प्रभावी बनाने के लिए दवाएं लेती हैं। हालांकि, दवा रोकने की स्थिति में वायरस फिर से प्रभावी हो सकता है।
एलिजाबेथ ग्लेसर पैड्रियाटिक एड्स फाउंडेशन में सलाहकार लिन मेफेनसन ने कहा कि एचआईवी की दवा से पहले करीब 30 प्रतिशत संक्रमण मां से उसके बच्चे को स्तनपान के जरिये होता था। उन्होंने बताया कि 1990 के दशक के शुरुआत में करीब दो हजार बच्चे मां से स्तनपान के जरिये संक्रमित होते थे और आज यह संख्या घटकर 30 प्रतिशत से कम रह गई है।
एपी धीरज मनीषा
मनीषा
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