बरुण सखाजी
CAA Notification नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी-2019) पर जिस तरह का हाहाकार मचा हुआ है वह लोकतंत्र की सबसे कमजोर नब्ज है। चुनावी व्यवस्था में भ्रम और कुहरे को भी सत्ता तक पहुंचने का सहयोगी माना जाता है। नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 का समर्थन और विरोध सीधा-सीधा भाजपा या गैर-भाजपा में बंटने से इतर एक संप्रभु राष्ट्र का भी विषय है। इसके सबसे अहम पहलू जिस पर राजनीति गर्म है। हल्ला, शोर-गुल जारी है उसे समझा ही नहीं जा रहा न समझाया जा रहा। अब यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भारत के मुसलमानों के कंधों पर है कि वे इसे खुद भी समझें और बरगलाने वालों को भी मुंहतोड़ जवाब दें। साथ ही यह जिम्मेदारी सरकार के कार्यकरण में लगे लोगों पर भी है कि वे इसे सुलझे ढंग से लोगों के बीच ले जाकर समझाएं ताकि भरोसे के साथ यह कार्य किया जा सके।
*हल्ला- यह मुसलमानों के विरुद्ध है।*
*सच* – यह भारत के मुस्लमानों और हिंदुओं में कोई फर्क नहीं करता।
*हल्ला- मुसलमानों को नागरिकता सिद्ध करना पड़ेगी।*
*सच*- इससे किसी भारतीय मुसलमान या हिंदू से कोई कागजात नहीं मांगे जाएंगे।
*हल्ला- मुसलमान छोड़कर कोई भी व्यक्ति भारत में बस सकेगा।*
*सच*- ऐसा बिल्कुल नहीं, क्योंकि यह सिर्फ 3 ऐसे देशों पर आधारित है, जहां के संविधान में स्टेट रीलिजियन इस्लाम है। वे हैं पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानस्तान। जब वहां का स्टेट रिलीजियन इस्लाम है तो मुसलमानों को भी छूट देने का मतलब पूरे देश को भारत में बसा लेना होगा।
*हल्ला- तो श्रीलंका के तमिल और नेपाल के मध्येशियों से क्या दुश्मनी है।*
*सच*- तमिल और सिंहली झड़पें क्षेत्रीय जातिए विवाद हैं। यह धार्मिक भेद नहीं। मध्येशी और मूल नेपाली भी एक ही ईष्ट के उपासक हैं। यहां धार्मिक झड़पें नहीं हैं।
*हल्ला- मुस्लमानों को क्यों सहूलियत नहीं।*
*सच*- क्योंकि, इन तीन देशों का स्टेट रिलीजियन इस्लाम है। ऐसा करने से पूरे देश के देश भारत के नागरिक बन सकते हैं। यह कैसे संभव होगा।
*हल्ला- तो हिंदू भी क्यों आने दिए जा रहे हैं।*
*सच*- हिंदू मेजोरिटी स्टेट भारत ही है। चूंकि बांग्लादेश, पाकिस्तान विधिवत हिंदू-मुसलमान की बुनियाद पर बने हैं, जबकि अफगान ऐतिहासिक रूप से इस बुनियाद पर ही बसा है। ऐसे में यह प्राकृतिक और विधिक न्याय की दृष्टि से सही है कि वहां के सिर्फ गैर-मुस्लिम भारत में आसानी से रह सकें। क्योंकि मुसलमान वहां आसानी से रह ही रहे हैं।
*हल्ला- यूएससीआईआरएफ (USCIRF) ने आंखे तरेरी, मायने यह गलत है।*
*सच*- यूएससीआईआरएफ को बोलने का हक नहीं, क्योंकि अमेरिका में तो खान शब्द सुनते ही टेरेरिस्ट की दृष्टि से देखने का वहां के समाज में चलन है और व्यवस्था में आशंका। इसके शिकार हमारे बॉलीवुड सितारे सलमान खान, शाहरुख खान, आमिर खान कई बार हो चुके हैं। शाहरुख खान की फिल्म माय नेम इज खान तो इसी पर केंद्रित है। तो यह सिवाय आंतिरक मामले में चौधराहट दिखाने की हिम्मत से अधिक कुछ नहीं। इसी संस्था ने चीन में भी बोला था। चीन और भारत इस पर एक हो सकते हैं।
*हल्ला- भारत का मुसलमान डर रहा है।*
*सच*- क्यों डर रहा है। क्या वह पाकिस्तान, बांग्लादेश या अफगान का निवासी है। जब वह भारत का है तो उससे कौन पूछने जा रहा है नागरिकता। उसकी हयात, मजहबी हक इत्यादि पर कोई असर नहीं। वह समझदारी दिखाए। राजनीतिक कुहांसे और कथित हल्लाबाजों के बहकावे में आने की बजाए अपना दिमाग लगाए। 80 साल से भारत का हिस्सा है, जिसे खुद गांधी ने स्वतंत्रता पूर्वक रहने देने के लिए अनशन करके बसाया है। अगर भय है तो वह नासमझ है। और देश नासमझ मुसलमान बहुत कम हैं।
*हल्ला- पूर्वोत्तर विरोध कर रहा है।*
*सच*- कुछ राजनीतिक आशंकाएं हैं, जिन्हें दूर किया जाना चाहिए। पहली तो पूर्वोत्तर के 4 राज्य संविधान की अनुसूची-6 के तहत विशेष क्षेत्र हैं। यहां की आदिवासी आबादी के पास कई बड़े अधिकार हैं। जिला परिषदों के जरिए उनके पास राज्य सरकारों के समान हक हैं। यह बिल इन चार राज्यों आसाम, मिजोरम, मेघालय और त्रिपुरा के ऐसे जनजातिए क्षेत्रों में सीएबी-2019 से प्राप्त नागरिकता के बाद भी बसने की इजाजत नहीं देता। इसमें आसाम का बड़ा हिस्सा और शेष 3 राज्यों का पूरा हिस्सा इसके दायरे में है। तब इन राज्यों को क्यों डरना। दूसरी बात आईएलपी (इनर लाइन परमिट) के तहत अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड भी इससे संरक्षित हैं। आईएलपी के तहत यहां बिना सरकारी अनुमति के नहीं जाया जा सकता एवं अनुमति में दिए गए समय से अधिक रुका नहीं जा सकता। यहां जमीन की खरीदी, मकान लेने, बसने के अधिकार गैर आईएलपी को नहीं। तो सीएबी-2019 से इन्हें तब भी खतरा नहीं। अब बचा मणिपुर, जिसे केंद्र ने जल्द ही आईएलपी में लाने का आश्वासन दिया है। वहां के सीएम ने इस संबंध में बयान भी दिया है।
*हल्ला- असम के एनआरसी समर्थक भी नहीं चाहते कि यह लागू हो।*
*सच*- पहली बात असम का एक बड़ा हिस्सा लगभग 60 फीसदी से अधिक संविधान की अनुसूची-6 के तहत बाहरियों को निषेधित करता है। वह चाहे भारत के किसी भी हिस्से के और कोई भी हों। तो असम स्वतः ही सीएबी से ज्यादा प्रभावित नहीं होगा। अब बचे 40 फीसदी हिस्से में पहले से ही लोग रह सकते हैं। यानी सीएबी न भी हो तो भी यहां कोई भी बस सकता है। जबकि सीएबी-2019 के तहत कोई इकट्ठा यहां बसाहट की कोई बात नहीं है। वैसे भी वहां रोजगार, श्रम, साधन बढ़ेंगे तो कोई भी बस सकता है तो सीएबी नहीं भी लागू होता तो भी असम के उस हिस्से में गैर असमिया बस सकते हैं। जबकि वर्तमान भी बड़ी तादाद में बंगाली, बिहारी यहां हैं, तो यह महज एक राजनीतिक भ्रम है। सीएबी-2019 से इसका कोई लेना-देना नहीं।
*हल्ला- यह तो संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन है।*
*सच*- संविधान का अनुच्छेद-14 भारत के नागिरकों में धर्म, जाति, रंग, क्षेत्र इत्यादि के आधार पर भेद नहीं करता। इसमें गौर करिए, भारत के नागरिक। यानी यह भारत के नागरिकों पर लागू होता है। जबकि सीएबी-2019 या नागरिकता कानून-1955 (पुराना) दोनों में ही नागरिक तो वे बाद में कहलाएंगे। तब भेद कहां हुआ? नागरिक बनने के बाद अगर धर्म के आधार पर भेद होता तो इस अनुच्छेद का उल्लंघन कहलाता। भारत का संविधान पाकिस्तान, अफगान या बांग्लादेश में लागू होता नहीं।
*हल्ला- कोई विदेशी मुसलमान भारत में बस ही नहीं सकता।*
*सच*- सीएबी-2019 में नागरिकता दी जाने वाली पूर्ववर्ती शर्तों में संशोधन नहीं किया गया है। इसके तहत कोई भी अभारतीय व्यक्ति चाहे वह किसी भी धर्म का हो, भारत में 11 से 14 साल तक सही आचरण के साथ रहता है तो उसे पहले की ही तरह नागरिकता दी जा सकती है।
*हल्ला- दुनियाभर के गैर-मुसलमान भारत में आएंगे।*
*सच*- नहीं, यह सिर्फ 3 देशों के लिए है। वहां से भी जो 31 दिसंबर-2014 से पहले भारत में आ चुके हैं सिर्फ उन्हीं को विशेष रियायत होगी। इसके बाद आने वालों के लिए यथा-नागरिकता कानून-1955 के मुताबिक ही रहेगा।
*हल्ला- यह तो एनआरसी में छूट गए 14 लाख हिंदुओं को भारतीय बनाने के लिए लाया गया है।*
*सच*- यह सच है, किंतु गलत नहीं। क्योंकि बांग्लादेश में धार्मिक आधार पर हिंदुओं अथवा गैर मुस्लमानों की आबादी लगातार घट रही है। इसका अर्थ है कि यहां पर धार्मिक भेदभाव हो रहा है और हिंसा भी। ऐसे में भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां हिंदू आबादी सर्वाधिक है। जबकि मुस्लिम नंबर-2 की सर्वाधिक आबादी है। ऐसे में भारत में धार्मिक भेदभाव दुनिया की अपेक्षा शून्य है। 14 लाख छूटे हिंदुओं को अगर बांग्लादेश लेने तैयार होता तो दिक्कत कहां थी।
*हल्ला- पहले रोहिंग्याओं के साथ भारत ने कड़ाई बरती अब मुसलमानों के विरुद्ध।*
*सच*- रोहिंग्याओं के साथ भारत ने कड़ाई बरती इसमें कोई शक नहीं, किंतु मुसलमानों के विरुद्ध कड़ाई बरत रहा है ऐसा नहीं। क्योंकि फिर से वही बात भारत के मुसलमानों पर कोई खतरा नहीं। न उनसे कोई पूछने जा रहा। न आगे ऐसा कुछ हो सकता। क्योंकि आधारकार्ड डाटा सबके पास है। दूसरी बात रोहिंग्या भी भारत में बस सकते हैं, बशर्ते वे नागरिकता की तय शर्तें और समयावधि व आचरण का अनुपालन करें।
*हल्ला- इससे हिंदू-मुसलमान के बीच खाई बढ़ेगी।*
*सच*- बढ़ेगी के स्थान पर बढ़ाई जाएगी कह सकते हैं, क्योंकि यह एक वोट बैंक के तहत मुसलमानों को बरगलाया जाएगा। लेकिन यह मुसलमानों के ऊपर है कि वह कितनी समझदारी दिखाते हैं। साथ ही हिंदुओं पर भी निर्भर रहेगा कि वे अपना प्यार दिखाते रहें।
*हल्ला- भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की तैयारी है।*
*सच*- भारत संवैधानिक रूप से पंथ-निरपेक्ष राष्ट्र है। इसे हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए ऐसे नागरिकता कानूनों की बजाए 2 तिहाई राज्यों की विधानसभा से पारित संविधान की मूल आत्मा प्रिएम्बल “हम भारत के लोग…” में बदलाव के साथ ही देश के दोनों सदनों से भारीमत के साथ पारित संशोधन विधेयक की जरूरत है। यह फिलहाल संभव नहीं।
*हल्ला*- *मुसलमानों का भरोसा खो देगा देश।*
*सच*- बिल्कुल नहीं खोएगा, क्यों खोएगा क्या वे स्वयं भारत नहीं। जब वे स्वयं भारत हैं तो कौन किसका भरोसा खोएगा समझना मुश्किल है। वे मेहमान नहीं मालिक हैं। भरोसे की बात क्यों की जाए।
*हल्ला- यह तो सुप्रीम कोर्ट स्क्रैप कर देगा, क्योंकि संविधान के विरुद्ध है।*
*सच*- नहीं, क्योंकि कोर्ट इसकी सुनवाई सिर्फ आर्टिकल-14 यानी भारतीय नागरिकों के साथ लिंग, धर्म, क्षेत्र, जाति आदि आधार पर भेदभाव न करने पर ही कर सकता है, लेकिन यह भारतीय नागरिक पर लागू है। मतलब जिन्हें नागरिकता दी जानी है वे भारत के नागरिक नहीं हैं। इसलिए यह उन पर लागू ही नहीं होता।
*हल्ला*– *हम तो मोदी के विरोधी हैं, भाजपा सांप्रदायिक दल है।*
*सच*– भारत का संविधान संप्रदाय के आधार पर न दल बनाने की इजाजत देता है न इस आधार पर चुनाव लड़ने की। अगर हम संविधान को मानते हैं तो यह सच नहीं। मोदी विरोधी हैं, इसीलिए बिल का विरोध है यह सच है। मोदी विरोधी या समर्थक होना निजी अधिकार है। उससे कोई फर्क नहीं। सिवाय इसके इस बिल के विरोधियों के पास कोई विधिक, तार्किक अथवा मानने योग्य साधन, संसाधन या बातें नहीं।
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1 week ago