तेलंगाना में सबसे ज्यादा सुखी किसान, फिर छत्तीसगढ़ में खुशहालीः टिकैत

किसानों के लिए सबसे अच्छा फॉर्मूला तेलंगाना का, बघेल सरकार भी कर रही है अच्छाः राकेश टिकैत

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:59 PM IST, Published Date : April 27, 2022/7:13 pm IST

Barun and Tikait

Barun Sakhajee and Rakesh Tikait exclusive interview

0 राकेश टिकैत का टकाटक इंटरव्यू

रायपुर.

बुधवार को रायपुर पहुंचे किसान नेता राकेश टिकैत आईबीसी-24 के दफ्तर पहुंचे। उन्होंने कहा मैं तो सिर्फ किसानों का नेता हूं। चुनाव कौन हारता है कौन जीतता है मेरा क्या लेना-देना। टिकैत ने विभिन्न मुद्दों पर बात की। उनसे एक्सक्लूसिव बात की है आईबीसी-24 के एसोसिएट एक्जेक्यूटिव एडिटर बरुण सखाजी ने।

मैं डरता नहीं….

प्रश्न- छत्तीसगढ़ में आप आते हैं तो इतना डर-डरकर क्यों बोलते हैं?

उत्तरः सरकार, पार्टी, मुद्दे अलग-अलग चीजें हैं। यहां की सरकार बातचीत तो करती है कम से कम।

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प्रश्न- लेकिन बात तो वो लोग भी कर रहे थे। मिठाई भी आपने खाई थी?

उत्तरः नहीं वो लोग बात नहीं कर रहे थे। वो तो डिजीटल ही बात करते थे।

प्रश्न- आप लोग तो दिल्ली में सरकार के लंच में भी गए थे, मिठाई के खाने के बाद सुर भी बदल गए थे?

उत्तरः नहीं, हम तो अपना खाना बांधकर ले गए थे। 13 महीने तक बात नहीं की। बाद में उन्हें समझ में आया। 13 महीने बाद उन्हें समझ में आया। हमने कहा था तीन काले कानून वापस ले लो, तब वे समझे नहीं।

बघेल किसानों की सुनते हैं…

प्रश्न- छत्तीसगढ़ की सरकार किसानों के लिए कैसा कर रही है?

उत्तरः पार्टी अलग चीज है। जब वह सरकार में आती है तो वह फंस जाती है। मुआवजा देने की बात आती है तो फिर कागजों में घुमाने लगते हैं। नया रायपुर में भी यही समस्या है। किसान कह रहे हैं जो बातें आप विपक्ष में रहते हुए करते थे वही अब कर दो। बस इतनी सी बात है।

प्रश्न- क्या आपने सरकार से बात की?

उत्तरः नहीं, अभी मैं आया हूं। दो दिन रहूंगा।

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प्रश्न- लेकिन आप तो पहले भी दो बार आ चुके हैं?

उत्तरः हां मैंने बात की थी उस समय। सरकार ने अच्छी तरह से सुना है। उसके लिए एक कमेटी बनाई गई है। वह इस पर काम कर रही है।

प्रश्न- ऐसी ही कमेटियां जब केंद्र सरकार बनाती थी तो आप उसे मानते नहीं थे, यहां कैसे मान रहे हैं?

उत्तरः यहां पर भी हमने बात की है। फर्क ये है कि बघेल सरकार ने आंसू गैस के गोले नहीं चलाए तो बात हो रही है। कमेटियां काम कर रही हैं। वो लोग ऐसा सब करते थे।

खेती में सुधार का महामंत्र

प्रश्न- आपके पास कृषि, किसान से जुड़ी समस्याओं के लिए समधान के मंत्र क्या हैं?

उत्तरः हम चाहते खेती पर 25 साल की खेती की नीति बने। गांव की नीति बने। योजनाओं में सालों साल तक एक क्रम हो। मैं तो कहता हूं खेती पर एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए।

प्रश्न- वही तो मैं पूछ रहा हूं कि ऐसे 5 बिंदु, 3 बिंदु या 2 बिंदु क्या हों जिससे हल निकले?

उत्तरः आप तो 1967 को आधार मानकर महंगाई को कैल्कुलेट कर लीजिए। उस समय 3 क्विंटल गेहूं में एक तौला सोना आ जाता था। आज भी आने लगे बस। यही हम कह रहे हैं। फसलों के रेट तय कर दो। किसान को दाम दिलाओ दो फिर जो टैक्स बाकी लोगों पर लगाते हैं वह हम पर लगाइए। जिस अनुपात में बाकी उत्पादों के दाम बढ़े हैं वैसे ही अनाज के दाम बढ़ जाएं।

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प्रश्न- लेकिन इससे तो आर्थिक असंतुलन पैदा हो जाएगा?

उत्तरः क्यों होगा, आपकी सैलरी बढ़ती रहे लेकिन किसान को दाम न मिलें, ये क्या बात हुई।

दाम दे दो फिर किसान पर लगा देना टैक्स

प्रश्न- दाम बढ़ें, लेकिन क्या आम उपभोक्ता तब 5 हजार का गेहूं, 6 हजार का आटा, 10 हजार की दाल खा पाएगा?

उत्तरः क्यों भई, जींस के दाम बढ़ते हैं, मोबाइल के दाम बढ़ते हैं तब कोई दिक्कत नहीं। किसान से ही आप मीडिया वालों को असली में दिक्कत है।

प्रश्न- जींस, मोबाइल सबमें हर तरह की रेंज हैं। आप रेमंड का कुर्ता पहने हैं तो बाजार में 200 रुपए का कुर्ता भी है, लेकिन अनाज के दाम में ऐसी रेंज नहीं हो पाएगी?

उत्तरः नहीं हो पाएगी तो क्या हुआ।

प्रश्न- टिकैत साहब आप जुमले अच्छे बोलते हैं, यह किसानों को ख्याल कमसिन लगेगा, लेकिन व्यवहारिक कहां है?

उत्तरः क्यों नहीं है। लागू तो करें सरकारें। पेपर के रेट बढ़ें, जींस के रेट बढ़ें, आपकी सेलरी बढ़े तब कोई दिक्कत नहीं। लेकिन किसान से आपको तकलीफ है।

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जींस, शर्ट के दाम बढ़ें तो मीडिया को दर्द नहीं होता

प्रश्न- खेती हर उत्पाद का बेस सेक्टर है। अगर यहां दाम बाकियों की तरह होने लगे तब तो फिर महंगाई सातवें आसमान पर जा पहुंचेगी। आप खेती में लागत कम करने के कोई सुझाव क्यों नहीं देते?

उत्तरः आपकी गलती नहीं है। असल में किसानों से सबको दिक्कत है। ये जुमले नहीं हैं। आप सब्सिडी दो। सुविधाएं बढ़ाए सरकारें। बिजली फ्री कर दो। बघेल ने एथनॉल पर अच्छा कहा है। उनकी बात केंद्र को माननी चाहिए। आखिर मान लेने में बुराई क्या है। इन कृषि उत्पादों से एथनॉल बनाएंगे तो किसानों की फसलों के दाम भी बढ़ जाएंगे। तो अच्छा ही है न।

प्रश्न- ये तो अच्छा है ही, लेकिन आप एथनॉल, खेती लागत, फर्टिलाइजर्स की कीमत आदि तो बात करते नहीं हो, सिर्फ एमएसपी को लेकर बैठ जाते हो?

उत्तरः करते हैं न। लेकिन सरकार सुने तो। हम तो सब बात करने तैयार हैं।