नयी दिल्ली, 17 नवंबर (भाषा) देश से तेल खली का निर्यात चालू वित्त वर्ष के पहले सात माह यानी अप्रैल-अक्टूबर के दौरान 38.45 प्रतिशत बढ़कर 19.84 लाख टन हो गया। तेल खली का निर्यात पशु चारे के रूप में होता है।
तेल उद्योग के प्रमुख संगठन सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) ने बृहस्पतिवार को बताया कि यह वृद्धि रैपसीड खली के निर्यात में भारी बढ़ोतरी के कारण संभव हुई है।
पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में देश ने 14.33 लाख टन तेल खली का निर्यात किया था।
एसईए के अनुसार, चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान कुल खली निर्यात में से रैपसीड खली का निर्यात दोगुना होकर 13.41 लाख टन हो गया, जो एक साल पहले की समान अवधि में 6.58 लाख टन था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि रिकॉर्ड फसल और पेराई के परिणामस्वरूप इस जिंस की उपलब्धता बढ़ने से रैपसीड मील का निर्यात तेजी से बढ़ा।
मौजूदा समय में भारत… दक्षिण कोरिया, वियतनाम, थाइलैंड और अन्य सुदूर पूर्व देशों को 295 डॉलर प्रति टन एफओबी (बोर्ड पर माल ढुलाई) पर रैपसीड मील का सबसे प्रतिस्पर्धी आपूर्तिकर्ता है, जबकि रैपसीड मील हैम्बर्ग का मिल पर भाव 363 डॉलर प्रति टन है।
अप्रैल-अक्टूबर के दौरान मूंगफली खली का निर्यात भी बढ़कर 9,632 टन हो गया, जो एक साल पहले की समान अवधि में 1,390 टन था।
हालांकि, उक्त अवधि में अन्य तिलहनों के निर्यात में गिरावट आई।
वित्त वर्ष 2022-23 की अप्रैल-अक्टूबर अवधि के दौरान सोयाबीन खली का निर्यात घटकर 1.62 लाख टन रह गया, जो एक साल पहले की समान अवधि में 1.76 लाख टन रहा था।
इसी तरह चावल छिलका खली का निर्यात पहले के 4.01 लाख टन से घटकर 2.81 लाख टन रह गया, जबकि अरंडी खली का निर्यात 1.96 लाख टन से घटकर 1.89 लाख टन रह गया।
तेल खली के प्रमुख निर्यात गंतव्य दक्षिण कोरिया, वियतनाम, थाइलैंड, बांग्लादेश और ताइवान थे।
भाषा राजेश राजेश अजय
अजय
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